Monday, March 30, 2009

मेरी दांडी यात्रा ............



दांडी की पगडंडियों पर आज चले हम पहली बार ,
गाँधी जी के पावन चरणों में लाखों नमन बार-बार .
पगडंडियों पर चलते -चलते हमने ,
महात्मा के पद-चिन्हों को महसूस किया हर बार।
वक्त की चली आंधियां हजारों मगर ,
निशान महात्मा के और भी स्पष्ट हुए हर बार ।
दांडी की पगडंडियों पर आज चले हम पहली बार ,
यात्रा के संस्मरण सुना रहे हैं होकर भावः विभोर,
इस बार जाना है हमको पोरबंदर की ओर।
गाँधी और गुजरात से अपना कोई नाता है ज़रूर ।
वरना अपने घर से कौन आता है इतनी दूर ।

मित्र कल्पेश जी का हम ह्रदय से व्यक्त करतें हैं आभार,
जिनके कारण दांडी जाने का सपना हुआ साकार।
दांडी की पगडंडियों पर आज चले हम पहली बार,
गाँधी जी के पावन चरणों में लाखों नमन बार-बार

Friday, March 27, 2009

मेरी कविताओं की व्याख्या करनी है अगर तुम्हें .......



मेरी कविताओं की व्याख्या करनी है अगर तुम्हें,
मेरे शब्दों के अर्थ सारे समझने होंगें तुम्हें।
तो आ जाओ करीब मेरे मेरी कविताओं की प्रेरणा बनकर,
अर्थ सारे ख़ुद ही समझ में आने लगेगें तुम्हें ।
मेरे परों की उड़ान देखनी है अगर तुम्हें, नये आकाश बनाने होंगें तुम्हें।
तो आ जाओ साथ मेरे उड़ने के लिए आकाश में ,
मेरी बातों पर यकीन आ जायेगा तुम्हे ।
मेरे साथ ज़िन्दगी अगर बितानी है तुम्हें,
मेरी बीती हुई ज़िन्दगी में जाना होगा तुम्हें,
तो आ जाओ मेरे वर्तमान में , मेरा भविष्य बनकर ।
मेरे ज़िन्दगी की कोरी तस्वीरों में रंग भरने होंगें तुम्हें।
मेरे संग दोस्ती अगर करनी है तुम्हें,
मेरे दुश्मनों को भी जानना होगा तुम्हें।
तो आ जाओ इस दुश्मन दुनिया में मेरे दोस्त बनकर,
दोस्ती के नये आयाम मिलेंगें तुम्हें।

Monday, March 23, 2009

फूलों पर ओंस की बूंदों जैसी होती हैं बेटियाँ


बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जायेगा।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।
जीने को तो, जी ही लेंगे हम मगर ......
बिना साँसों के फिर कैसे जिया जायेगा।
कुछ ही दिनों में वो लम्हा भी करीब आ जायेगा।
सोने के रथ पर हो कर सवार , आयेगा सपनों का राजकुमार।
ले जायेगा तुमको सात समुन्दर पार, हर शक्स बस देखता रह जायेगा ।
बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जाएगा ।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।
नाजुक सी टहनियों पर , फूलों की लड़ियाँ ।
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ ।
माता-पिता की अनमोल धरोहर हैं बेटियाँ ।
अपने घर में भी मेहमान होती हैं बेटियाँ ।
फूलों पर ओंस की बूंदों जैसी होती हैं बेटियाँ ।
विदा करके उनको निभाना है दस्तूर।
फिर उम्रभर बहुत याद आतीं हैं बेटियाँ ।
बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जाएगा ।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।
आखों में मोती बनकर हमेशा के लिए ,
बस यादों का सिलसिला रह जायेगा।
बेटी के बिना पापा का दिल कब तक रह पायेगा।
आखों में आंसुओं के समुन्दर उमड़ आयेगें ,
कलेजे के टुकड़े को जब बाबुल, ख़ुद अपने हाथों से विदा करके आयेगें ।
बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जाएगा ।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।
बहना तुमसे अब कभी नहीं लडूंगी मैं, खिलोने सारे अपने तुम्हे दे दूंगी मैं।
हमेशा तुम्हारा कहना मानूंगी मैं ........
खिलोनों की अलमारी में रखी मेरी गुडिया को अब कौन सजायेगा ?
गुडिया-गुड्डे का ब्याह रचाना बहुत याद आयेगा ।
मिटटी के बर्तनों में खाना बनाना , बहुत याद आयेगा ।
बचपन का हर लम्हा , बार-बार रुलाएगा ।
अब मुझे पढ़ाई की बातें कौन बतायेगा ?
बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जाएगा ।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।
जीवन आपका संगीतमय हो जायेगा .....
आपके गीतों को नया सुर मिल जायेगा ......
जब आपको , आपके मन का मीत मिल जायेगा।
शुभकामनाएं है हमारी आपको .......
खुशियों से भरा रहे आपका आँचल .....
फूलों से महकता रहे आपका नया आँगन ।
जिंदगी का हर सपना सच हो जायेगा।
आपका जीवन चंदन हो जायेगा।
जिस घर में तुम जाओगी , वो घर मन्दिर हो जायेगा।
बहना तेरे जाने से, घर हमेशा के लिए सूना हो जाएगा ।
मानों आँगन से तुलसी का पौधा चला जायेगा।

Saturday, March 21, 2009

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......



अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाए पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......

Tuesday, March 17, 2009

बातों बातों में ये क्या कह गए तुम .....



बातों बातों में ये क्या कह गए तुम, जो तुमको कहना ना था
क्यों आने का वादा किया तुमने, जब तुमको आना ना था ।
जिंदगी के सफर में मिले थे हम अजनबी बनकर,
तुम्ही हो मेरी मंजिल, यह अहसास हुआ था तुमसे मिलकर ।
क्यों पकड़ा था हाथ मेरा, जब साथ निभाना ना था ।
बातों बातों में ये क्या कह गए तुम, जो तुमको कहना ना था ।
तुम्हारी भोली-भाली बातों में आकर,
तूफानों में ज़िन्दगी की कश्ती उतार दी मैंने।
क्यों आए किनारे तक तुम साथ हमारे, जब उस पार तुम्हे जाना ना था ।
बातों बातों में ये क्या कह गए तुम, जो तुमको कहना ना था ।
पीला रंग कनेर का, गुलाबी रंग गुलाब का ।
आसमानी रंग अहसास का, लाल रंग प्यार का ।
क्यों घोले थे सारे रंग तुमने , जब ज़िन्दगी को सतरंगी बनाना ना था ।
बातों बातों में ये क्या कह गए तुम, जो तुमको कहना ना था ।

Sunday, March 15, 2009

मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त ......


मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त, जो तुमने मुझको लिखा था ।
मुझे याद है तुम्हारा दूसरा ख़त, जो तुमने मुझको लिखा था।
इस तरह पाँच ख़त तुमने मुझको लिखे थे ।
सारे खतों में एक प्यारा सा अहसास था ,
सारे ख़त थे कोरे कागज , लिफाफे पर बस मेरा नाम था ।
फिर छठे ख़त में तीन शब्द लिख पाये तुम ।
"क्या चाकलेट खाओगे" मेरे साथ तुम ।
वो पहली चाकलेट जो हमने आधी-आधी खायी थी ।
वो चाकलेट पचास पैसे की आयी थी ।
अपनी गुल्लक से जो तुम लाई थी ।
उस चाकलेट का रैपर मैंने रख लिया था ।
कई ख़त मैंने भी तुमको लिखे, पर सारे ख़त मेरे पास ही रहे ।
और वो आखरी ख़त , जो तुमने मुझको लिखा था ।
इस बार कोरा कागज नहीं था वह ,
जीवन का उसमें था सार लिखा, प्रेम का सारा हाल लिखा।
ना मिल पायेगें हम, यह बार-बार लिखा ।

कई बार दिल में आता है ..........


कई बार दिल में आता है, अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मै ।
किताब के हर पन्नों पर , पन्नों की सारी पंक्तियों पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखूं मै।
कई बार दिल में आता है ...........
ख़ुद से खूब बातें करूँ मै , बातों मै सिर्फ़ तुम्हारा ज़िक्र करूँ मै।
चाय का प्याला देते समय पहली बार मुझे छुआ था तुम्हारी उँगलियों ने।
उस स्पर्श को आज भी महसूस करूँ मै ।
कई बार दिल मै आता है , अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब ............
प्यार की बारिश में भीगे थे हम और तुम ,
बारिशों के मौसम में आज भी रिमझिम बूंदों में,
अपनेपन का अहसास करूँ मैं ।
इस अहसास पर कुछ लिखने का साहस करूँ मैं।
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं ।
किताब के हर पन्नों पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखूं मैं ।

Thursday, March 12, 2009

चार रातें चार शहरों में ......

ऐसा हुआ हमारे साथ इस बार, चार रातें चार शहरों में गुजरीं पहली बार।
"मुंबई", "सूरत", "अहमदाबाद" और 'माउंट आबू" जाना हुआ हमारा इस बार।

यात्राओं तो चलती रहेंगीं लगातार, संग हमारे मित्र "शंकर नारायण" थे इस बार।


मुंबई में एक रात गुजारी, सुबह एक कार्यशाला में भाग लिया

विषय था "जीव-जंतुओं" पर कैसे रुके अत्याचार।

मांसाहार का त्याग करें, जीवन में अपनाएँ शाकाहार।


सूरत में दूसरी रात गुजारी, सुबह अहमदाबाद की थी तैयारी ।

गाँधी जी के आश्रम में जाना हुआ हमारा पहली बार।


आश्रम की धरती को नमन किया, मन भाव-विभोर हुआ बार- बार।

महात्मा को करीब से जानने का प्रयास किया हमने पहली बार


अहमदाबाद में तीसरी रात गुजारी, "नंदन जी" का आतिथ्य किया स्वीकार।

ह्रदय से व्यक्त करतें है हम उनके प्रति अपना आभार।

सुबह ही कर ली हमने , फिर माउंट आबू जाने की तैयारी ।

धीरे-धीरे चलती हुई पहाडों पर पहुँच ही गयी बस हमारी।

अत्यंत सुन्दर थी "दिलवाडा मंदिर" की कलाकारी ।

कई मंदिरों में दर्शन किये, नक्की झील की खूबसूरती थी प्यारी।



"ॐ शान्ति भवन" में जाकर फिर आत्मा से वार्तालाप हुआ।

सांझ ढले सूरज अपने घर जाने को था, चंदा के आने की थी अब बारी।

माउंट आबू में चौथी रात गुजारी, सुबह घर लौटने की थी बारी।

यात्राओं में नया अध्याय जुडा है, सबको सुनायेंगे हम बारी-बारी ।

Friday, March 6, 2009

कोई तुमको कुछ कहता है ......



कोई तुमको कुछ कहता है, दर्द मुझे क्यों होता है ?
अपनेपन का अहसास हो जहाँ , शायद ऐसा तब होता है।
इस अजनबी दुनिया में, हर कोई नहीं अपना होता है।
सुख-दुःख मिलकर बाँटे जिनसे, वो ही बस अपना होता है।
कोई तुमको कुछ .......... .........
खून के रिश्तों से गहरे हैं मन के बंधन , बंधा है इन बंधनों में जो
वो इंसान बड़ा खुशनसीब होता है।
ऐसा क्यों मेरे साथ हर बार होता है ?
समझता है जिसे दिल अपना , वही क्यों नजरों से दूर होता है।
कोई तुमको कुछ .............
जरा सी बात पर छलक जाते हैं आंसू ,
दर्द मुझसे अब किसी का सहन नहीं होता है।
चोट लगे तुमको, रो देती हैं आँखें मेरी .......
यह अहसास भी हर किसी को नहीं नसीब होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है, दर्द मुझे क्यों होता है ?

Wednesday, March 4, 2009

कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे .........



कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
लिखा है - छोटा भाई मेरा कहना मानने लगा है।
पहले आपकी उँगलियाँ पकड़कर चलते थे हम दोनों,
अब वह , मेरी ऊँगली पकड़कर चलने लगा है।
आपके पीछे हम कम झगड़ते हैं , सारे बातें ख़ुद ही निबतातें हैं।
हमे मालूम है, मम्मी हमारी शाम को किससे शिकायत करेगी ?
और यहाँ सब ठीक है मगर, मम्मी कभी-कभी बहुत उदास हो जाती है।
यूँ तो हँसा देते हैं हम उनको मगर,
तकिये में चेहरा छिपा कर फिर वो सो जाती हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त ..................
जब कभी चाचू , दादा जी का कहना नहीं मानते हैं,
उस दिन आप , सबको बहुत याद आते हैं।
आप थे तो आँगन में रखे पौधे भी, हर मौसम में हरे भरे रहते थे।
आप नहीं तो इन बरसातों में भी, सारे फूल मुरझाये से रहते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त ................
वैसे तो आपकी "बाइक" चलाना सीख गया हूँ मगर,
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं।
स्कूल की फीस , ख़ुद जमा कर देता हूँ
"रिपोर्ट कार्ड" पर भी मम्मी साइन कर देतीं हैं मगर,
"पेरेंट्स मीटिंग्स" में आप बहुत याद आते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर.......
कल बड़े बेटे का ख़त ..........
और पापा , कल तो "एच पी" की गैस भी बुक कराई मैंने
यूँ तो टेलीफोन और बिजली का बिल भी जमा कर सकता हूँ
मगर, घर से ज्यादा दूर मम्मी भेजती नहीं हैं।
यूँ तो मम्मी हर चीज दिला देती हैं, कभी-कभी हम जिद कर जाते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर ........
"डेरी मिल्क " अब कम खा पाते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त ..........
अक्सर , देर रात फ़ोन आपका आता है ।
हम जल्दी सो जाते हैं , मम्मी सुबह बताती हैं।
कभी दिन में भी फ़ोन किया करो, बच्चों की बातें सुना करो।
अच्छा , यह लिखना पापा अब कब आओगे ?
होली पर घर आ जाना ।
मम्मी को "रंग" अब नहीं भाते हैं।
"रंग" तो आप ही दिलाना।
होली पर घर आ जाना ।

Tuesday, March 3, 2009

मन में विश्वास लाकर तो देखो .......



मन में विश्वास ला कर तो देखों ,

आत्मविश्वास से हाथों को , ऊपर उठा कर तो देखों,

आकाश तुम्हारी मुट्ठी में ख़ुद ही आ जायेगा ।

तूफानों में कश्ती चला कर तो देखों ,

हौसलों से भंवर पार कर के तो देखों,

कश्ती को तुम्हारी ख़ुद ही किनारा मिल जायेगा ।

पतझड़ के मौसम में , बहारों को बुला कर तो देखों,

बिना मौसम के भी , फूल खिला कर तो देखों,

रेगिस्तान में भी बागवां बन जायेगा ।

बीते हुए कल को भुला कर तो देखों ,

वर्तमान में एकाग्रता लाकर तो देखों,

भविष्य का हर सपना तुम्हारा ख़ुद ही साकार हो जायेगा ।

पत्थरों में आस्था जगाकर तो देखों,

एक बार मन्दिर जाकर तो देखों,

भगवान् का आशीर्वाद तुम्हें ख़ुद ही मिल जायेगा ।

Monday, March 2, 2009

"सुनीता" और "कल्पना" की उड़ान भरी है तुम्हें ....



“सुनीता” और “कल्पना” की उड़ान भरनी है तुम्हें ,

“अभिनव” जैसा लक्ष्य पाना है तुम्हें ,

पथरीले रास्तों पर चल कर ही ,

एक दिन , मिलेगी मंजिल तुम्हें ।

“ध्रुव” बन कर गगन में चमकना है तुम्हें ,

“श्रवण” बन कर दिलों में बसना है तुम्हें ।

स्कूल की परीक्षाओं से न घबराना कभी तुम ,

इनसे भी बड़ी परीक्षाओं से अभी गुजरना है तुम्हें।

उदासी के अंधेरों , में नही खोना है तुम्हें

अंधेरों में भी , मुस्कराते हुए चलना है तुम्हें ।

देख लेना फिर जिंदगी में हमेशा ,

सफलता के उजाले ही उजाले मिलेंगें तुम्हें ।

जिस्म छोड़ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है .....


जिस्म छोड़ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।

वोह शायद मना लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।

सुबह का सूरज कब निकलेगा ,

बीत रही है रात , मगर थोडी अभी बाकी है ।

रात भर शायद , बहुत रोई है रात

दोपहर तक फूलों पर , ओस अभी बाकी है ।

जिस्म छोड़ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।

वोह शायद मना लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।

अपने हैं तो , मार कर भी छाँव में ही डालेंगे ।

मेरे दोस्तों में , इतनी इंसानियत अभी बाकी है ।

अपनों का ज़हर है , ज़रा देर से असर करेगा

जान जायेगी बहुत , देर तड़पने के बाद

मेरे ग्लास में , कई घूँट ज़हर अभी बाकी है ।

जो मंजिल पर कभी पहुँच नही सकते ......


जो मंजिल पर कभी पहुँच नही सकते , उन रास्तों पर ही कदम रखे हमने ।

जो पूरे हो नही सकते , ख्वाब वही देखे हमने ,

जो हम सुना नही सकते , गीत वही लिखे हमने ।

और जब दिल को लगी प्यास , ख़ुद के आंसू पीये हमने।

जो मंजिल पर कभी पहुँच नही सकते , उन रास्तों पर ही कदम रखे हमने।

खुदा बाँट रहा था जब खुशियाँ लोगों को, नाम उसमे अपना नही लिखाया हमने ।

चंचल हवाओं ने हाथ पकड़ा तो बहुत था ,

फूलों के चमन में , खुशबुओं का मेला तो बहुत था

फिर भी कुछ गिला नहीं तुझसे मेरी जिंदगी ,

तन्हा ही यह सफर तय किया हमने ।

Sunday, March 1, 2009

यूँ तो अपने घर से आ गए हैं हम,

"यूँ तो अपने घर से आ गये हैं हम,
आँगन में खिल रहे फूलों की खुशबुओं को
अपनी साँसों में बसा लाये हैं हम.
अब, कई दिनों तक महकेंगे हम."