Tuesday, April 28, 2009

मेरी शिर्डी यात्रा ( २६ अप्रैल २००९)



रविवार को बाबा के दर्शनों का सपना साकार हुआ, मन्दिर के वातावरण में मुझे एक नई उर्जा का अनुभव हुआ। मन्दिर के पवित्र प्रांगन में बैठकर बहुत देर तक मैंने बाबा से बात की। बाबा बड़ी खामोशी से सब सुनते रहे और मुस्कराते रहे।

वहां , मैंने यह महसूस किया कि हर व्यक्ति बाबा से ही बातें कर रहा था। जिसे जो बाबा से मांगना था , मांग रहा था। सब लोग, मन्दिर से बड़ी प्रसन्नता और संतुष्ट भावः से बाहर आ रहे थे। मानों , बाबा सबके प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों और सबकी झोली भर रहे हों। सबके चेहरों पर मैंने सच्ची खुशी का अनुभव किया। लाखों भक्तों की भीड़ थी, परन्तु वहां एकदम शान्ति का वातावरण था।

सचमुच, वहां के वातावरण में एक अलोकिक शक्ति है , जो हमें जीवन में सदा अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है।

शायद, मुझे भी मेरे प्रश्नों का उत्तर मिल गया था। मैं भी, संतुष्ट भावः से मन्दिर से बाहर आने लगा था।

ॐ साईं राम ..... ॐ साईं राम .....ॐ साईं राम......

ॐ साईं राम ......ॐ साईं राम..... ॐ साईं राम......

Thursday, April 23, 2009

मेरे गुमसुम से शब्दों को आपने बोलना सिखा दिया ...


मेरे गुमसुम से शब्दों को आपने बोलना सिखा दिया।

आपकी प्यार भरी बातों ने, मुझे कविता लिखना सिखा दिया।

आपका शुक्रिया ; आपका शुक्रिया; आपका शुक्रिया।

मेरी कविताओं को, एक प्यारा सा अहसास दे दिया।

मेरी बेनाम कविताओं को , आपने एक नाम दे दिया।

आपका शुक्रिया ; आपका शुक्रिया; आपका शुक्रिया।

एक घायल पंछी को , आपने उड़ना सिखा दिया।

मेरे दिल को आपने धड़कना सिखा दिया।

आपका शुक्रिया ; आपका शुक्रिया; आपका शुक्रिया।

Wednesday, April 22, 2009

यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।



बहुत अच्छा लिखा है आपने, हम हमेशा आपके शुक्रगुजार रहेंगें।

संदेशों को पढ़कर मिटाते रहे अगर, यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।

इस भागती - दौड़ती ज़िन्दगी में , कुछ पल तो अपनों के लिये रखो दोस्तों

अधूरेपन से ना व्यक्त करो अपनी भावनाओं को ,

वरना अपने भी पराये होते रहेगें, यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।

सूरज अपना चक्र कम कर दे अगर, यह दिन के उजाले भी जाते रहेगें।

चाँद जल्दी घर जाने लगे अगर, सपने अधूरे हमारी आखों में ही रहेगें।

खुल कर ना बरसें बादल अगर, धरा पर हम सब फिर प्यासे रहेगें।

वरना अपने भी पराये होते रहेगें, यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।

Wednesday, April 15, 2009

बच्चों से मिलने के दिन जब करीब आने लगे.



बच्चों से मिलने के दिन जब करीब आने लगे।
बच्चे और भी ज्यादा याद आने लगे।
हमें बहुत याद करते तो होंगें,
दिन भर बातें हमारी करते तो होंगे,
बच्चों से ही घर होता हैं,
"मकान" से "घर" में हम जाने लगे।
बच्चों से मिलने के दिन जब करीब आने लगे।
बच्चे और भी ज्यादा याद आने लगे।
इस उम्र के दौर में, बच्चों के बिना रहना अच्छा ना लगे।
बच्चे "परदेस" में जब से रहने लगे,
हम खोये- खोये से रहने लगे,
बच्चों की तस्वीरें हम बार-बार देखने लगे।
बच्चे और भी ज्यादा याद आने लगे।
दो-चार दिनों में हम भी परदेसी हो जाएँगे,
बच्चों से मिलकर ज़िन्दगी में रंग आ जाएगें ।
बच्चों के लिये पापा ढेर सारे खिलोनें लेकर जाएगें।
बच्चे हमे देखकर बहुत खुश हो जाएँगें।
बच्चे और भी ज्यादा याद आने लगे।
आसमान में पंछी गीत मिलन के गाने लगे।
मिलने की खुशी में खामोश लब हमारे मुस्कराने लगे।
बच्चों से मिलने के दिन जब करीब आने लगे।
बच्चे और भी ज्यादा याद आने लगे।

Friday, April 10, 2009

आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....

आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
बारिशों के मौसम में भी अब कविता नहीं बनती ।
कोई उनसे कह दे जाकर , मैं उनका हो नहीं सकता
मेरी हथेलियों में अब मिलन की लकीरें नहीं बनती।
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
ख़ुद ही रचा था मैंने , अपनी तबाही का मंजर ।
आंसुओं से भरी आँखें , गवाह बनी थी मेरी ।
दिल पर पत्थर रख कर जब , तुमको रुखसत किया था मैंने।
क्यों निगाहें आज फिर , तुम्हारा इंतज़ार हैं करतीं ?
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....

Wednesday, April 8, 2009

ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं .......



ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं .......
चाँद मेरे आसमान का खो गया कहीं ।
पथरा गई हैं निगाहें कर-कर के इंतज़ार,
मेरी छत की मुंडेर पर अब कोई काग भी बोलता नहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं .......
वो जाते हुए आपका मुड़कर देखना मुझे।
यूँ तो आपके भीगे नैनो ने कह दिया था बहुत।
फिर भी कुछ बातें थी ख़ास, जो दिल में ही रहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं .......
लड़खड़ाते हुए कदम थे आपके,
थम गई थी धड़कने "राज" के दिल की।
जुदा हो रहे थे जब हम तुम,
मेरे लिए तो वो पल, शताब्दी बनकर ठहर गया वहीं।
ढूंढ़ता हूँ बहुत, मगर मिलता ही नहीं .......

Tuesday, April 7, 2009

होंगें कई चाँद और आसमानों में ........


होंगें कई चाँद और आसमानों में, एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।
कई दिनों से हो रही घनघोर बरसात आज थम गई है ।
एक भी इन्द्रधनुष नहीं मेरे आसमान में।
होंगें कई चाँद और आसमानों में, एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।
उनकी प्यार भरी बातों में आकर , दे दिए सारे सितारे भी मैंने।
अब ना चाँदनी है ना रोशनी कोई, काली स्याह रात है बस मेरे आसमान में।
रेगिस्तान में घर बनाया, ज़िन्दगी भर दिल को तड़पाया।
कह दो "राज" तुम उनसे जाकर,
बिना नीर के बादल हैं बस मेरे आसमान में।
होंगें कई चाँद और आसमानों में, एक भी चाँद नहीं मेरे आसमान में।

आसमान से चंदा और तारे, रोज मेरे सपनों में आते हैं सारे.



आसमान से चंदा और तारे, रोज मेरे सपनों में आते हैं सारे।
फिर सारी-सारी रात मुझसे , बातें तुम्हारी करते हैं सारे।
धरती पर रहते हो तुम, मगर आसमान तक चर्चे हैं तुम्हारे।
मेरी तरह चंदा और तारे, प्यार तुम्हे बहुत करते हैं सारे।
फिर सारी-सारी रात मुझसे , बातें तुम्हारी करते हैं सारे।
मेरी हो तुम यह उनको है ख़बर , इसलिए अक्सर उदास हो जाते हैं सारे।
पूनम की चाँदनी रातों में , तुम्हारे घर के आँगन में आ जाते हैं सारे।
फिर धीरे-धीरे चल कर, तुम्हारे कमरे में आकर
सारी-सारी रात तुम्हे निहारतें हैं सारे, आसमान से चंदा और तारे।
करवटें बदलती हो जब तुम, छुप जाते हैं सारे।
फिर अगले दिन मेरे सपनों में आकर बातें तुम्हारी बतातें हैं सारे।
और क्या कहें तुमसे अब हम, दिन में भी आते हैं सपने तुम्हारे।
जब चाहो नज़रें झुका कर देख लेना , दिल में ही रहते हैं हम तुम्हारे।

Monday, April 6, 2009

कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार ..........



कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
लबों पर नाम बस तुम्हारा आ गया।
नैनों से बरसनें लगे तुम याद बन कर,
बिछुड़ने का वो लम्हा फिर याद आ गया।
तुम्हारी तो तुम ही जानो, अपना तो बुरा हाल हो गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
फिर किसी काम में नहीं लगा मन मेरा,
शाम तो कट गई जैसे तैसे, रात भर का मगर फिर जागना हो गया।
बोझिल पलकों में उलझ कर रह गई फिर नीदें मेरी,
बार-बार निगाहों में चेहरा फिर तुम्हारा आ गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।
डायरी के पन्नों को पलटते रहे रात भर,
दिसम्बर में लिखा वो तुम्हारा आखरी ख़त फिर याद आ गया।
कल शाम बातों-बातों में ज़िक्र पहले प्यार का आ गया।

Friday, April 3, 2009

गुब्बारेवाला हमारी गली में अब आता नहीं.



खिलोनों से अब दिल बहलता नहीं, बातों से अब मन मानता नहीं।
पापा, आपको है कसम हमारी ,हमसे मिलने अब आना यहीं।
गुब्बारेवाला हमारी गली में अब आता नहीं।
बर्फ की चुस्कीवाला भी दूर तक नज़र आता नहीं,
सबको मालूम है, पापा हमारे यहाँ रहते नहीं।
पापा आपको है कसम हमारी , हमसे मिलने अब आना यहीं।
दादी जी को दवाएं और चाहियें नहीं,आपको देखकर ठीक हो जायेंगी वहीँ।
दादा जी चश्मे का नम्बर बदलवाते नहीं,कहते हैं, अब उसकी जरुरत नहीं।
बाईक पर बैठा कर दूर ले जाना कहीं,रास्ते में हम कुछ और मांगेंगे नहीं।
पापा, आपको है कसम हमारी , हमसे मिलने अब आना यहीं।
छोटे भाई की पुरानी साईकल भी कोई ठीक करता नहीं,
मैं हूँ तो बड़ा पर इतना नहीं ,छोटे को बैठा कर अभी मुझसे चला जाता नहीं।
पापा , आपको है कसम हमारी , हमसे मिलने अब आना यहीं।
मम्मी की मुस्कराहटें तो खो गयी कहीं।
"गाजर के हलुए" में मिठास अब होती नहीं।
पापा, आपको है कसम हमारी ,हमसे मिलने अब आना यहीं।

Thursday, April 2, 2009

कभी-कभी उसका स्कूल से देर से लौटना ....


कभी कभी उसका स्कूल से देर से लौटना ....

कभी कभी उसका स्कूल से देर से लौटना ....
मुझे परेशान कर देता है।
ऑफिस के काम में नहीं लगता फिर मन मेरा,
स्कूल के फ़ोन मिलाने लगता हूँ।
सड़क पर आकर फिर बस की राह देखता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
अपने वजन से ज्यादा भारी बैग अपने ,
नाजुक कन्धों पर लेकर जब वो बस से उतरता है ।
लपक कर वह बैग मैं , अपने हाथों में ले लेता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
पानी की खाली बोतल , और भरा हुआ लंच बॉक्स
भी थमा देता है वो मेरे हाथों में।
फिर ऊँगली पकड़कर मेरी साथ-साथ बढता है ।
नन्हे-नन्हे पैरों से बड़े-बड़े कदम चलता है ।
खुश होता है वह कि मैं उसका साथ हूँ।
उससे ज्यादा खुशी मुझे होती है , कि वह मेरे साथ है।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अपना होम-वर्क ख़ुद कर लेता है मगर,
"Math" में जरुरत मेरी महसूस करता है।
तब ऑफिस की बड़ी-बड़ी "calculations" को छोड़कर,
"3" और "2" को "sum" करना अच्छा लगता है ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?

कुछ स्वप्न अंकुरित हुए थे .....



कुछ स्वप्न अंकुरित हुए थे .....
मन की वसुंधरा में,
जब पहली बार देखा था तुम्हें।
प्रणय की धूप , विश्वास की माटी
और आस्था के जल के समन्वय से
गुलाब की पंखुडियों से भी ज्यादा
नाजुक मेरे वो स्वप्न
क्षण-क्षण पल्लवित होकर
आज वट-वृक्ष बन गये हैं।
हम-तुम जो मिल गये हैं।