Friday, July 24, 2009

"मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा"



मेरी प्रिय "मंजरी",
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
ना जाने कैसे अपने आप,
बिन बुलाये मेहमान की तरह,
काटों से भरे ये जिद्दी पौधे,
उग आते हैं मेरे घर में,
लहुलुहान कर देते हैं हाथ मेरे,
रोज़ ही हटाता हूँ उन पौधों को,
मगर अगले दिन,
और भी ज़्यादा उग आतें हैं ।
और अब तो,
मेरे मन को भी चुभने लगे हैं।
हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
जीवन कष्टों में ही बीत गया,
वक्त, सचमुच मुझसे जीत गया।
कुछ पल खुशियों के अब देने ही होंगें।
उम्र भर "तपती रही" ज़िन्दगी को,
अब "तपोवन" बनना ही होगा।
मेरी प्रिय "मंजरी",
इसीलिए,
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।

Saturday, July 18, 2009

"लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है....."



मंजिल है दूर, मगर चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
सातवें आसमान से आगे हमको जाना है।
मुड़कर ना पीछे कभी देखना है।
मंजिल ना मिले, हमे जब तक...
बस चलते जाना है, चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
अस्तित्व है हमारा , कुछ कर के दिखाना है।
जीवन हमारा व्यर्थ नहीं जाना है।
ज़िन्दगी में करने हैं अभी काम बहुत,
हर क्षेत्र में विजेता बन कर दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
बीता हुआ पल फिर नहीं आना है।
हर पल है मूल्यवान, बातों में नहीं गंवाना है।
जीवनं को सार्थक कर के दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
पल प्रति पल , जीवन और भी कठिन होते जाना है।
असफलताओं के चक्रव्यहू को तोड़ कर जाना है।
अर्थहीन जीवन को, अर्थ पूर्ण बनाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।

Friday, July 17, 2009

"कृष्ण हैं आप मेरे, मुझे सुदामा बना लेना "



आज मन्दिर में रख आया हूँ ,
"विश्वास" की मिटटी से बना हुआ,
"आशाओं" की लौ से जलता हुआ
और "आस्था" के तेल से भरा हुआ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।
अपने घर के आँगन में मेरे नाम का,
एक नन्हा सा पौधा लगा लेना।
ये माना, कोई फूल नहीं कोई खुशबू नहीं है मुझमे
और काटों से भी भरा हुआ हूँ मैं।
आप चाहो तो घर के बाहर ही लगा लेना।
आज मन्दिर में रख आया हूँ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।
अजनबी रिश्तों के बीच अपनेपन की पहचान हूँ मैं,
आस- पास ही रहता हूँ आपके हर पल,
जब चाहो आप, मुझे पुकार लेना।
दुनिया में सबसे अनोखा रिश्ता है अपना,
कृष्ण हैं आप मेरे, मुझे सुदामा बना लेना ।
आज मन्दिर में रख आया हूँ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।

Wednesday, July 15, 2009

"बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर"



बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर,
और मेरा दामन भी जला देतीं हैं अक्सर,
गम नहीं मुझे इस बात का दोस्तों,
कि वो मेरा दामन जलाती हैं ।
इस बात का भी दुःख नहीं मुझको,
कि कुछ लोग उस वक्त मेरे दामन को हवा देते हैं।
दुःख है तो "राज" को सिर्फ़ इस बात का ,
इस कोशिश में वह लोग, अपना हाथ जला बैठते हैं।

Thursday, July 9, 2009

"जीवन मेरा संवार दो माँ "



शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
लेखनी को नए विचार दो माँ।
इतना मुझ पर , उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को सार्थक रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
बेरंग शब्दों में , रंग भर दो माँ।
शब्दों को नए अर्थ दो माँ।
"शलभ" को नए आयाम दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखूं, सबको निहाल कर दूँ माँ।
इतना मुझपर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।

Thursday, July 2, 2009

"नया अध्याय शुरू हुआ है आपके साथ...."



अपने बातों ने बनाया है सजीव मेरे जीवन को,
सबसे अलग, सबसे नया, सबसे सुंदर.....
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक मै आपसे जुडा नहीं था।
नया अध्याय शुरू हुआ है आपके साथ,
हर दिन , हरेक सूर्योदय को हमने
देखा है साथ-साथ, हर किरण को महसूस किया है।
नया दिन हर बार साथ -साथ जिया है।
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक मैं आपसे जुडा नहीं था।
मेरे लिए प्रेरणा हैं , मेरे जीने का सबब हैं आप।
इतना अपनापन और आपसे रूबरू होने का इंतज़ार,
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक में आपसे जुडा नहीं था।