Friday, October 30, 2009

"अगर, आज तुम ना आए तो....."



अगर, आज तुम ना आए तो.....
मेरी प्रतीक्षा के क्षण,
कण -कण करके टूट कर बिखर जायेंगे ।
शायद , फिर कभी समेट नहीं पाऊंगा
आंखों से बहते हुए ज़ज्बातों को ...
गुजरते हुए इंतज़ार के लम्हों को
अगर, आज तुम ना आए तो.....
ज़िन्दगी की बेरंग तस्वीर में ,
कोई रंग नहीं भर पाऊंगा ,
अगर, आज तुम ना आए तो.....
पहले भी जिया है ,
हर लम्हा , कई बार मर-मर के ......
इस तरह अब और ,
मै जी नहीं पाऊंगा ।
अगर, आज तुम ना आए तो.....

Tuesday, October 27, 2009

"मंजिल की तलाश में......"

मंजिल की तलाश में ,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बीत गई है काली रात ग़मों की ,
आशाओं के पंछी चहकने से लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बरसों से रैक में रखी, धूल की परत ज़मीं
Diary के पन्नों को एक बार
फिर से हम पलटने लगे हैं।
कई बरस पहले diary में रखे,
गुलाब के फूल आज एक बार
फिर से महकने लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।

Friday, October 23, 2009

"ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?"



ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
दो कदम आगे चलता हूँ, चार कदम पीछे कर देता है।
जब भी कश्ती उतारता हूँ, समुन्दर में तूफान खड़ा कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
एक-एक करके बड़ी लगन से , खुशियों के बीज बोता हूँ।
खिल भी ना पाते हैं फूल, कि हर मौसम को पतझड़ कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
मुस्कराते हुए लम्हे ना जाने कहाँ खो गये,
एक-एक करके सब मुझसे जुदा हो गये।
भीड़ भरी सड़कों पर भी तन्हा कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ , हाले दिल बयां करना चाहता हूँ।
लिखने बैठता हूँ जब भी मगर, मुझे नि: शब्द कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?