Wednesday, September 29, 2010

कोई "तुमको" कुछ कहता है, दर्द मुझे क्यों होता है ?

मैंने माना , आज "रिश्ते" बहुत बदल गये हैं। मगर , कहीं ना कहीं आज भी "रिश्ते" अपनेपन का अहसास लिये हैं । कुछ "रिश्ते" बहुत "ख़ास" होते हैं... रजनीगंधा के फूलों की खुशबू की तरह महकते हैं। भले ही यह "रिश्ते" गुमनाम हैं मगर इन महकते हुये "रिश्तों" की कहानी कुछ अलग है। जो इस अहसास को महसूस करता है बस वही इन "रिश्तों" की अहमियत जानता है।

कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
अपनेपन का अहसास हो जहाँ ,
शायद ऐसा तब होता है।
इस अजनबी दुनिया में,
हर कोई नहीं अपना होता है।
सुख-दुःख मिलकर बाँटे जिनसे,
वो ही बस अपना होता है।
कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
खून के रिश्तों से गहरे हैं मन के बंधन ,
बंधा है इन बंधनों में जो
वो इंसान बड़ा खुशनसीब होता है।
ऐसा क्यों मेरे साथ हर बार होता है ?
समझता है जिसे दिल अपना ,
वही क्यों नजरों से दूर होता है।
कोई "तुमको" कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?
जरा सी बात पर छलक जाते हैं आंसू ,
दर्द मुझसे अब किसी का सहन नहीं होता है।
चोट लगे तुमको, रो देती हैं आँखें मेरी .......
यह अहसास भी ,
हर किसी को नहीं नसीब होता है।
कोई तुमको कुछ कहता है,
दर्द मुझे क्यों होता है ?

Sunday, September 26, 2010

"यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें.."

अभी भी समय है , संभाल लें
हम बिखरते हुये इन "रिश्तों" को ।
वर्ना , यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।
इस भागती - दौड़ती ज़िन्दगी में ,
कुछ पल तो "दूसरों" के लिये रखो दोस्तों ।
दिल खोल कर हँसों और खुल कर मिलो सबसे ।
संवेदनशील बनाओं अपनी भावनाओं को ,
वरना अपने भी पराये होते रहेगें,
यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।
सूरज अपना चक्र कम कर दे अगर,
यह दिन के उजाले भी जाते रहेगें।
चाँद जल्दी घर जाने लगे अगर,
सपने अधूरे हमारी आखों में ही रहेगें।
खुल कर ना बरसें बादल अगर,
धरा पर हम सब फिर प्यासे रहेगें।
अभी भी समय है , संभाल लें .
हम बिखरते हुये इन "रिश्तों" को ।
वरना अपने भी पराये होते रहेगें,
यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।

Sunday, September 19, 2010

"अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं .."

कई बार दिल में आता है,
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं ।
किताब के हर पन्नों पर ,
पन्नों की सारी पंक्तियों पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखूं मैं ।
कई बार दिल में आता है,
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं ।
ख़ुद से खूब बातें करूँ मै ,
बातों मै सिर्फ़ तुम्हारा ज़िक्र करूँ मैं ।
चाय का प्याला देते समय ,
पहली बार मुझे छुआ था तुम्हारी उँगलियों ने।
उस स्पर्श को आज भी महसूस करूँ मै ।
कई बार दिल में आता है,
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मै ।
प्यार की बारिश में भीगे थे हम और तुम ,
बारिशों के मौसम में आज भी रिमझिम बूंदों में,
अपनेपन का अहसास करूँ मैं ।
इस अहसास पर कुछ लिखने का साहस करूँ मैं।
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं ।
किताब के हर पन्नों पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम लिखूं मैं ।
कई बार दिल में आता है,
अपनी ज़िन्दगी पर एक किताब लिखूं मैं ।

Wednesday, September 15, 2010

"ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊं ..."

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार...!
"किसी की पथराई आँखों के लिए ,
ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊं।
चाहे अगले ही पल बह जाऊं।
एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊं,
चाहे अगले ही पल फ़ना हो जाऊं। "
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
एक तारा हूँ टूटा हुआ,
किसी की मुराद बन जाऊं मैं।
हालातों की तेज़ तपन में ,
किसी पथिक के लिए ,
शीतल पवन बन जाऊं मैं।
जो समझे मुझे सच्चा दोस्त अपना,
उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं । "

आप सही कहते हैं...., जीवन जीना वही सार्थक है.... जो जीवन किसी के काम आ जाये ....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

Tuesday, September 14, 2010

"ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका .."

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
गुमसुम से रहने वाले , मेरे शब्दों को आपने मुस्कराना सिखाया है। मेरी कविताओं को आपने, अपने दिल में स्थान दिया है।
मेरे द्वारा प्रेषित की गयी, हर कविता और विचारों को आपने, अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है। यही मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
चलने में असमर्थ मेरे "शब्द" ; आपकी संजीवन प्रतिक्रियाओं की उंगली पकड़कर , हौले-हौले अब चलने लगे हैं। दिल की बातें कहने लगे हैं....
"मनभावन कविताओं से सज गया है ब्लॉग आपका ।
आपकी "प्रतिक्रियाओं" से "श्रंगार " हुआ कविताओं का ।
शब्दों को नया जीवन मिला, पाकर साथ आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
अभी तो सृजन हुआ है मन में नवीन भावों का ,
निखर जायेगें , संवर जायेगें , बिगड़े हैं तो सुधर जायेगें ।
कुछ ऐसा लिख जायेगें, एक धरोहर बन जायेगें ।
उम्र भर अगर मिल जाये , "शब्दों" को साथ आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
लाखों ब्लॉग हैं इन्टरनेट पर, आप को ही साथी बनाया ।
अजनबी रिश्तों के बीच, पहचान है अपनेपन की .....
अनुपम संग्रह है , जीवन के सच्चे अनुभवों का ।
अनगिनत कैक्टसों के मध्य, खिलते "गुलाब" सा ब्लॉग आपका।
ह्रदय से व्यक्त करते हैं हम आभार आपका ।
कुछ ना कुछ रिश्ता ज़रूर है "हमारा" और "आपका" ।
संग-संग ले चलिये , या बीच राह छोड़ दीजिये ।
हमें स्वीकार है , हर निर्णय आपका ।
प्रभु से करते हैं ,प्रार्थना हम बार-बार ।
अटूट रहे रिश्ता "हमारा" और "आपका" ।
आपका ही,
शलभ गुप्ता

Sunday, September 12, 2010

"जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं.....

अक्सर मैं यह महसूस करता हूँ, कि मेरी कवितायेँ ही मेरी सबसे प्यारी "दोस्त" हैं........
मेरे जीवन के हर खुशनुमा और ग़मगीन पलों में , हमेशा मेरे साथ रहती हैं....
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"जब भी कभी तन्हा महसूस करता हूँ मैं,
अपनी कविताओं से , खूब बातें करता हूँ मैं ।

बातों में, फिर तेरा ज़िक्र करता हूँ मैं .
ज़िक्र तेरा आते ही , मेरी कविताओ के
खामोश शब्द बोलने लगते हैं ,
फिर घंटों मुझसे , तेरी बातें करते हैं
मेरी कविताओं के शब्द तुमने ही तो रचे है
तुम्हारी ही तरह “शब्द” भावुक है ....
बातें मुझसे करते है , और नैनों से बरसते रहते है
जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं
अपनी कविताओं से बातें करता हूँ मैं ।
अर्ध -विराम सहारा देतें है शब्दों को ,
मात्राएँ , शब्दों के सर पर हाथ रखती हैं ।
हिचकियाँ लेते शब्दों को पंक्तियाँ दिलासा देतीं है ।
फिर सिसकियाँ लेते हुए शब्दों को ,
मै सीने से लगाकर , बाहों में भर लेता हूँ,
शब्द मुझमे समां जाते है , मुझको रुला जाते है ।"

Thursday, September 9, 2010

"चाहे, हौले-हौले चल ....."

अपने क़दमों पर कर भरोसा ,
एक ही रास्ते पर चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
उबड़-खाबड़ देख कर,
रास्ता ना बदल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
गिरकर, संभलता चल ।
ठोकरों से सीखता चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
रंग-बिरंगी कारें देख कर,
मन ना मचल ।
समय तेरा भी आयेगा ,
जरा सब्र तो कर ।
मिल ही जायेगी मंजिल,
आज , नहीं तो कल !
अपने क़दमों पर कर भरोसा ,
एक ही रास्ते पर चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।

Monday, September 6, 2010

"वह सब "आंसू" कह जातें हैं....."

बातें ख़ुशी की हों या गम की,
मेरे आंसू छलक ही जातें हैं।
जो बातें, मैं कह नहीं पाता...
वह सब "आंसू" कह जातें हैं।
"आंसू", फिर शब्द बनकर
मेरी कविता में ढल जाते हैं।
कभी "सिसकतें" हैं शब्द मेरे,
और कभी "मुस्कारते" हैं ।
अपनेपन का "अहसास" हो जहाँ,
दिल की बातें , हम उन्हीं को बताते हैं।
जो बातें, मैं कह नहीं पाता...
वह सब "आंसू" कह जातें हैं
बातें ख़ुशी की हों या गम की,
मेरे आंसू छलक ही जातें हैं

Friday, September 3, 2010

"हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है।"

हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
सुबह का सूरज कब निकलेगा ,
बीत रही है रात , मगर थोडी अभी बाकी है ।
रात भर बहुत रोई है रात , आपको याद करके .......
दोपहर तक फूलों पर , ओस अभी बाकी है ।
हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।

अभी बहुत कुछ आपसे , मुझे सीखना बाकी है ।
अभी बहुत सारी दिल की बातें करना बाकी है ।
हालातों से जूझ रहा हूँ , थोडी जान अभी बाकी है ।
"वह" शायद बुला लेंगें मुझको , थोडी आस अभी बाकी है ।
अभी तो आगाज़ हुआ है सफ़र का , ठहरना कैसा ...
मिलना होगा तो मिल कर रहेगें एक दिन,

मीलों का सफ़र अभी बाकी है ।
लिखता रहूँगा निरंतर, यह "राज" का सबसे वादा है ।
मेरी लेखनी में, उम्मीदों की "रोशनाई अभी बाकी है।

"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना ।



जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मुझे तो आदत है खंडहरों में रहने की,
मेरे लिए नया आशियाना आप बनाते क्यों हैं ?
हो गई है आदत अब तन्हाईयों की मुझे,
अपनी महफिल में , आप मुझे बुलाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मंजिल पर जाकर ही रुकना था मुझको मगर,
ज़िन्दगी में मेरी , इतने मोड़ आते ही क्यों हैं ?
"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना ।
चंद साँसे बाकी हैं मेरी , आप मुझे अब बचाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?