Sunday, November 28, 2010

"अगर, आज तुम ना आए तो......."



अगर, आज तुम ना आए तो.....
मेरी प्रतीक्षा के क्षण,
कण -कण करके टूट कर बिखर जायेंगे ।
शायद , फिर कभी समेट नहीं पाऊंगा
आंखों से बहते हुए ज़ज्बातों को ...
गुजरते हुए इंतज़ार के लम्हों को
अगर, आज तुम ना आए तो.....
ज़िन्दगी की बेरंग तस्वीर में ,
कोई रंग नहीं भर पाऊंगा ,
अगर, आज तुम ना आए तो.....
पहले भी जिया है ,
हर लम्हा , कई बार मर-मर के ......
इस तरह अब और ,
मै जी नहीं पाऊंगा ।
अगर, आज तुम ना आए तो.....

"आज दिल की सारी बातें कहने दो .."

"बातों का यह सिलसिला चलने दो ।
आज दिल की सारी बातें कहने दो ।
कह लेना तुम भी अपने दिल की बातें ,
वक्त थोडा ज़रा और गुजरने दो ।
पहली बार ज़िन्दगी में मिला कोई अपना ,
इस ख़ुशी में आज मुझे , जी भर के रोने दो । "

Friday, November 26, 2010

"जब भी आता है 26 नवम्बर, दिल के जख्म उभर आतें हैं"



जब भी आता है 26 नवम्बर ,
दिल के जख्म उभर आतें हैं ।
बिछुड़ गये जो हमसे,
वह सब बहुत याद आते हैं ।
ना जाने कब थमेगा,
इसी तरह बिछुड़ने का सिलसिला ,
पूछते है सब , यह एक-दूसरे से...
उत्तर मगर किसी से नहीं पाते हैं ।
जब भी आता है 26 नवम्बर ,
दिल के जख्म उभर आतें हैं ।
क्या जीयेगें इसी तरह ,
मर-मर के हम ज़िन्दगी ,
यही सोच कर , लोग सिहर जाते हैं ।
घर के चिराग जिनके बुझ गये,
हमारी ज़िन्दगी बचाने में,
चलो, आज हम सब मिलकर
उनके घर होकर आते हैं ।
देश पर मिटने वालों का घर,
होता है सच्चा मंदिर,
आज उनके घर पर जाकर ,
अपना शीश झुका कर आते हैं ।
जब भी आता है 26 नवम्बर ,
दिल के जख्म उभर आतें हैं ।

Wednesday, November 24, 2010

मेरी जिंदगी तूने मुझे , बहुत आजमाया है।



मेरी जिंदगी तूने मुझे , बहुत आजमाया है।
सिर्फ़ खोया ही है आज तक “राज ” ने ,
नही कुछ पाया है।
लौट गई खुशियाँ बीच राह में से ही,
मील के पत्थरों ने आंसुओं से भीगा हुआ ,
यह संदेशा भिजवाया है।
अब न कभी आयेंगीं बहारें ,
चमन की डालियों ने , सिसकते हुए यह बताया है ।
बरसात के मौसम में भी न बरसेंगें बादल,
तपती धरती ने हर बार की तरह ,
फिर अपने दिल को समझाया है ।
बर्फ कैसे गिरेगी मेरी घर की छत पर ,
आग के शोलों पर , जब हमने घर बनाया है ।
क्यों आ जाते हम हर किसी की बातों में ,
गैरों से ज्यादा हमें , अपनों ने रुलाया है।”

Monday, November 22, 2010

"चेहरे की उड़ी- उड़ी रंगत , कह रही है कहानी आपकी।"



चेहरे की उड़ी- उड़ी रंगत , कह रही है कहानी आपकी।
बहुत मजबूर, ग़मों से चूर लग रही है सूरत आपकी।
बोझिल पलकें बता रहीं हैं , कई रातों से नीदें अधूरी हैं आपकी।
चेहरे की उड़ी- उड़ी रंगत , कह रही है कहानी आपकी।
तितली की तरह उड़ना था आपको आकाश में
एक कमरे में सिमट कर रह गई है ज़िन्दगी आपकी।
कुछ ढूँढ रहीं है आपकी बैचेन निगाहें,
शायद कोई चीज खो गई है आपकी।
चेहरे की उड़ी- उड़ी रंगत , कह रही है कहानी आपकी।
टूट कर चकना चूर हो गई , दिल के कानिस पर
जो रखी थी ख्वाबों की तस्वीर आपकी।
कहने को तो मुस्करा रहें हैं आप, मगर सच कहते हैं हम।
पहले जैसी , वो मुस्कराहटें अब नहीं है आपकी।
चेहरे की उड़ी- उड़ी रंगत , कह रही है कहानी आपकी।

Saturday, November 20, 2010

"आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ ...."



कोई किसी को याद नहीं करेगा ,
यह ग़लत कहते है लोग।

ज़िन्दगी भर याद आयेगें ,
मुझे आप सब लोग।

शायद मुझे भी याद करेंगे ,
मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।

जब खामोश हो जाऊंगा मै ,

तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।

चला जाऊंगा इस शहर से जब मै,
मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।

मैं हूँ एक पेड़ चंदन का,
इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।

पत्थर पर घिस कर, जब मिट जाऊंगा मै,
तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।

आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ,
एक दिन टूट जाऊंगा मै ।

खुशी बहुत है , इस बात की "राज" को मगर

देखकर मुझे, अपनी मुरादें पूरी कर लेंगे लोग।

Thursday, November 18, 2010

"ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊँ मैं ..."



"किसी की पथरायी आँखों के लिए ,

ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊँ मैं ।

चाहे अगले ही पल बह जाऊँ मैं ।

एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊँ मैं ,

चाहे अगले ही पल फ़ना हो जाऊँ मैं

(फोटो आभार - गूगल)

"सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं ....."



सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।
कुछ कवितायें अधूरी रहीं,
कुछ कवितायें लिख ना सके।
कुछ कवितायें तुम सुन ना सके,
कुछ कवितायें हम सुना ना सके।
वक्त गुजर गया कुछ कवितायें कहने का,
कुछ कवितायें तुमको सुनाने का ,
अभी वक्त आया ही नहीं।
सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।
कई कवितायें ,
अभी तुम पर लिखनी बाकी हैं।
कई अधूरी कवितायें
अभी पूरी करनी बाकी हैं।
हो जायेंगी एक दिन सब कवितायें पूरी ,
जीवन अनंत है आस है पूरी ।
इन्तजार लंबा है मगर, अनेकों जीवनकाल हैं।
तब तक, एक सर्वश्रेष्ठ कविता भी बन जायेगी।
सिर्फ़ तुम पर, बस तुम पर ही लिखी हैं .....
सारी कवितायें मैंने ,
एक दिन सब तुमको ही सुनानी हैं।

Tuesday, November 16, 2010

"मत सुनो आज कोई कविता मुझसे...."




मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो

क्यों सुनाता हूँ मै कविता तुम्हें,
ख़ुद से आज पूछने दो

कभी- कभी लगता है,
प्रश्नों की किताब है ज़िन्दगी

जिंदगी के सारे प्रश्नों को ,
आज मुझसे हल करने दो,

ना जाने कैसी यह किताब है जिंदगी की ?
सारे प्रश्न हल भी ना हो पाते है,
कुछ नए प्रश्न हर बार जुड़ जाते हैं

कहाँ से आते है यह प्रश्न ,
किस्सा सारा आज मुझे समझने दो

मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो

यहाँ छोटे प्रश्नों के उत्तर भी ,
पूरे विस्तार से लिखने होते हैं

खाली स्थान वाले प्रश्नों मै भी ,
सही शब्द ही भरने होते हैं

यूँ तो आने वाले नए प्रश्नों के भी ,
सारे उत्तर हैं मेरे पास
...
मगर पहले ,
अधूरे प्रश्नों को आज मुझे हल करने दो

मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो ।

Sunday, November 14, 2010

क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ? (Happy Children Day)



"कभी कभी उसका स्कूल से देर से,
लौटना मुझे परेशान कर देता है।
ऑफिस के काम में नहीं लगता फिर मन मेरा,
स्कूल के फ़ोन मिलाने लगता हूँ।
सड़क पर आकर फिर बस की राह देखता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
अपने वजन से ज्यादा भारी बैग अपने ,
नाजुक कन्धों पर लेकर जब वो बस से उतरता है
लपक कर वह बैग मैं , अपने हाथों में ले लेता हूँ।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
पानी की खाली बोतल , और भरा हुआ ...
लंच बॉक्स भी थमा देता है वो मेरे हाथों में।
फिर ऊँगली पकड़कर मेरी साथ-साथ बढता है
नन्हे-नन्हे पैरों से बड़े-बड़े कदम चलता है
खुश होता है वह कि मैं उसका साथ हूँ।
उससे ज्यादा खुशी मुझे होती है ,
कि वह मेरे साथ है।
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अब टॉफियाँ नहीं खाता हूँ मैं ,
खा लेता हूँ मगर, जब आधी तोड़ कर देता है वह,
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?
यूँ तो अपना होम-वर्क ख़ुद कर लेता है मगर,
"Math" में जरुरत मेरी महसूस करता है।
तब ऑफिस की लाखों की गुणा-भाग को छोड़कर,
"3" और "2" को जोड़ना अच्छा लगता है
क्योकिं बच्चे नहीं जानते, कि बच्चे क्या होते हैं ?"

Thursday, November 11, 2010

"किताब में रखे गुलाब के फूल और तितलियाँ याद आते बहुत है ।"




पुराने दोस्त याद आते बहुत है ,
तनहाइयों में रुलाते बहुत है .
राज" की जिंदगी की राहों में ,
मोड़ आते बहुत है .
किताब में रखे गुलाब के फूल
और तितलियाँ याद आते बहुत है
मै यहाँ ठीक हूँ , यह उनको है ख़बर ,
घर से दूर रहने पर मगर ,
हिचकियाँ आती बहुत है .
तनहाइयों में रुलाती बहुत है .
आंसुओं के समंदर में है , “राजकी जिंदगी
और लोग समझते है , हम मुस्कराते बहुत है "

"फोटो आभार : गूगल"

"मेरे सिरहाने आकर बैठ गए, तुम्हारी यादों के साये ..."

"कल रात हम सो नहीं पाये।
मेरे सिरहाने आकर बैठ गए,
तुम्हारी यादों के साये
यादों के बादल,
घिर-घिर के आये।
बीतें हुए लम्हों की,
चमकती रहीं बिजलियाँ।
दिल के आसमां पर,
तुम इन्द्रधनुष बन कर छाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
मेरे सिरहाने आकर बैठ गए,
तुम्हारी यादों के साये
अब इन आंसुओं को कौन समझाये ,
तुम जब याद आये,
बहुत याद आये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
राह में हम क्या ठहरे
कुछ लम्हों के लिये,
तुम बहुत आगे चले आये।
फिर कभी हम-तुम ,
मिल नहीं पाये।
फिर भी कुछ अलग है
तुम में बात, मेरे दोस्त।
हम आज तक तुम्हें भूल नहीं पाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।"

Monday, November 8, 2010

"मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त, जो तुमने मुझको लिखा था ..."




मुझे याद है तुम्हारा पहला ख़त,
जो
तुमने मुझको लिखा था
मुझे याद है तुम्हारा दूसरा ख़त,
जो
तुमने मुझको लिखा था।
इस तरह पाँच ख़त तुमने मुझको लिखे थे
सारे खतों में एक प्यारा सा अहसास था ,
सारे ख़त थे कोरे कागज ,
लिफाफे
पर बस मेरा नाम था
फिर छठे ख़त में तीन शब्द लिख पाये तुम
"क्या चाकलेट खाओगे" मेरे साथ तुम
वो पहली चाकलेट जो हमने आधी-आधी खायी थी
वो चाकलेट पचास पैसे की आयी थी
अपनी गुल्लक से जो तुम लाई थी
उस चाकलेट का रैपर मैंने रख लिया था
कई ख़त मैंने भी तुमको लिखे,
पर
सारे ख़त मेरे पास ही रहे
और वो आखरी ख़त ,
जो
तुमने मुझको लिखा था
इस बार कोरा कागज नहीं था वह ,
जीवन का उसमें था सार लिखा,
प्रेम
का सारा हाल लिखा।
ना मिल पायेगें हम,
यह
बार-बार लिखा