Tuesday, October 26, 2010

"जन्म-जन्मान्तर के रिश्ते है ..."

यूँ ही दिल को नहीं अच्छा लगता कोई ।
हर रोज सपनों में नहीं आता कोई ।
यूँ तो दुनिया में हजारों हैं लोग,
पर ज़िन्दगी का एक से ही जुड़ता है संजोग ।
जन्म-जन्मान्तर के रिश्ते है "राज"।
इन्हें तोड़ नहीं सकता कोई ।
"एक नज़र" के लिए तलाशते उम्रभर ,
उम्रभर के लिए फिर बस वही "एक प्यारी" सी नज़र ।
सिमट जाती है दुनिया,
याद नहीं रहता फिर कोई ।
जन्म-जन्मान्तर के रिश्ते है "राज"।
इन्हें तोड़ नहीं सकता कोई ।

रिश्ते पहले बन जाते हैं ,
जन्म हम बाद में पाते हैं ।
खुदा के बनाये इन रिश्तों को ,
कैसे ना माने कोई ।
एक मैं ही क्या ,
उम्रभर निभाता है हर कोई ।
जन्म-जन्मान्तर के रिश्ते है "राज"।
इन्हें तोड़ नहीं सकता कोई ।

Saturday, October 23, 2010

"चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।"



चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
सांझ ढले से ही मुझको , बस उसका इंतज़ार था।
उससे मिलने की तमन्ना में, दिल बेकरार था।
आंसमा में चमक रहा, मानों आफताब था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
छत पर बैठ कर , बतियाँ की ढेर सारी।
आखों ही आखों में गुज़र गयी रात सारी
मेरे चाँद का , जुदा सबसे अंदाज़ था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था।
चंद लम्हों में ही, कई जन्मों का साथ था।
चांदनी में उसकी , अपनेपन का अहसास था।
बिछुड़ने के वक्त, आखों में बस मेरी ....
आंसुओं का ही "राज" था।
चाँद कल रात का, वाकई बहुत ख़ास था

फोटो - आभार गूगल

Wednesday, October 20, 2010

"गुनगुनी धूप का साथ, मन को बहुत भाने लगा है .."



राह में सूरज ,
कोहरे से अठखेलियाँ करने लगा है।
इसीलिए शायद,
मेरे शहर में , देर से आने लगा है
अब मुझे देर से जगाने लगा है
गुनगुनी धूप का साथ,
मन को बहुत भाने लगा है
आओ स्वागत करें हम सब मिलकर ,
जाड़ों का मौसम अब आने लगा है

(अपने गृह नगर - उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से....)
शलभ गुप्ता
फोटो - आभार गूगल

Thursday, October 14, 2010

"लेखनी को नए विचार दो माँ ..."



शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
लेखनी को नए विचार दो माँ।
इतना मुझ पर , उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को सार्थक रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
बेरंग शब्दों में , रंग भर दो माँ।
शब्दों को नए अर्थ दो माँ।
"शलभ" को नए आयाम दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखूं, सबको निहाल कर दूँ माँ।
इतना मुझपर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।

"एक सा दिल सबके पास होता है ..."

एक सा दिल सबके पास होता है,
फिर क्यों नहीं सब पर विश्वास होता है।
इंसान चाहें कितना ही "आम" क्यों ना हो,
"वह" किसी ना किसी के लिए ज़रूर "खास" होता है।


(I read these lines from a newspaper few times back)

Saturday, October 9, 2010

"थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो ...."




थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
इस अजनबी दुनिया में पहली बार ,
"राज" को मिला कोई अपना ,
इस खुशी में आज हमें , जी भर के रो लेने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
पतझड़ के मौसम में आयीं हैं बहारें,
खुशबू फूलों की फिजा में और ज़रा महकने दो।
थोडी- थोडी है झिझक अभी,
राजे दिल ज़रा धीरे - धीरे खुलने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
कह लेना तुम भी अपने दिल की बातें ,
वक्त जरा थोड़ा और गुजरने दो।
उम्र पड़ी है अभी सारी, गिले शिकवे भी कर लेंगें
इस वक्त ना तुम कुछ कहो, ना हम कुछ कहें
बस जी भर के एक दूसरे को देखने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।

Wednesday, October 6, 2010

"मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई ....

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
मन के आँगन में गूंज रहे साज़ नए संगीत के,
दिल की दहलीज़ पर आकर दस्तक दे गया कोई।
धीरे- धीरे से चलकर, दबे पाँव करीब आकर
छ्म से पायल बजा गया कोई।
ख़ुद को भी हम लगने लगे अच्छे अब तो,
बार-बार आईने में चेहरा देख रहा कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
ज़िन्दगी की तेज तपन में,
बादल बनकर बरस गया कोई।
खोये- खोये से लम्हों को यादगार बना गया कोई।
कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
इतना घुल-मिल गया कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।

Sunday, October 3, 2010

"आपसे बिछुड़ना इतिहास बन गया ..."

"आपसे" मिलना इत्तफाक था मगर,
आपसे बिछुड़ना इतिहास बन गया,
एक पल, एक बरस और .....
एक बरस, एक शताब्दी बन गया ।

आपकी याद में बहने वाला ,
"राज" का हर एक आंसू "मोती" बन गया।
"आपसे" मिलना इत्तफाक था मगर,
आपसे बिछुड़ना इतिहास बन गया ।

Saturday, October 2, 2010

"बहुत कुछ सिखा जाती है ज़िन्दगी.."

बहुत कुछ सिखा जाती है ज़िन्दगी ,
हँसा के भी रुला जाती है ज़िन्दगी,
जी सको जितना, उतना जी लो ,
क्योंकि बहुत कुछ बाकी रहता है ,
और ख़त्म हो जाती है ज़िन्दगी । "

( A SMS from my friend)