कल हमारे विवाह की वर्षगाँठ है। आज लिखी यह पंक्तियाँ मेरी जीवन संगनी के नाम...
"दूर रह कर भी दूर नहीं हूँ ।
क्या हुआ जो करीब नहीं हूँ ।
दूर से ही सुन रहा हूँ ,
आपके दिल की धडकनें.....
खामोश रहता हूँ मगर,
हालातों से अन्जान नहीं हूँ ।
सब ठीक होगा एक दिन ,
बस थोडा इंतज़ार करना ,
तूफानों से जो हार जाये,
मैं वो इंसान नहीं हूँ । "
I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Thursday, February 24, 2011
Friday, February 18, 2011
"मेरी आखों में आंसू भर आये ..."
कुछ दिनों के लिये मुंबई शहर क्या छोड़ आये ।
लहरें और समुन्दर के किनारे बहुत याद आये ।
अपनी भी ज़िन्दगी बड़ी अजीब है दोस्तों ,
राह में हर दिन एक नया मोड़ आये ।
न जाने कैसा चमन है यह फूलों का ,
छुआ जब, तो अहसास चुभन का आये ।
जब भी कोशिश की मैंने मुस्कराने की ,
मेरी आखों में आंसू भर आये ।
अपनी कहानी उन्हें सुनाते भी तो किस तरह ,
वह भी अपने काम में बहुत व्यस्त नज़र आये ।
अपनी भी ज़िन्दगी बड़ी अजीब है दोस्तों ,
राह में हर दिन एक नया मोड़ आये ।
Thursday, February 17, 2011
"मिट्टी के खिलोने......."
"छुपा कर रखी थी बातें सारी।
खिलोने ने कह दी कहानी सारी"
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"मेरी ज़िन्दगी के रंग,
इन्द्रधनुषी नहीं तो क्या,
मटमैले तो हैं ।
पापा के साथ मेले जा रहे बच्चे ,
खुश होते तो हैं।
"बैटरी वाली कार अच्छी नहीं",
मेरे कहने का मतलब,
बच्चे समझते तो हैं।
कार को देखकर मचलने पर,
बड़े ने छोटे को समझाया,
भैया , आगे दुकानें और भी तो हैं।
मेले से खुश होकर लौट रहे ,
मेरे बच्चों के हाथों में ,
बैटरी वाली कार नहीं तो क्या,
मिट्टी के कुछ खिलोने तो हैं।
मेरी ज़िन्दगी के रंग,
इन्द्रधनुषी नहीं तो क्या,
मटमैले तो हैं । "
Sunday, February 13, 2011
"दास्ताँ यह लम्बी है बहुत ..."
समुन्दर किनारे बैठकर , लहरों से बातें की बहुत ।
सांझ ढले अपने घर जाता सूरज, लौटते पंछी याद आये बहुत ।
बातें थी कुछ ख़ास दिल में ही रहीं, कहनी थी जो उनसे बहुत ।
खुद से करते रहे हम बातें, कभी रोये कभी मुस्कराये बहुत ।
कालेज के दिन, कैंटीन और "दोस्त" याद आये बहुत ।
दिल के बागवां से, यादों के फूल समेट लाये बहुत ।
आज भी आती है , उन फूलों से खुशबू बहुत ।
तितलियाँ, फूल और यादें , मेरे जीने के लिए हैं बहुत ।
और क्या कहें अब जाने दो , दास्ताँ यह लम्बी है बहुत ।
Wednesday, February 9, 2011
"बच्चों के संग खेलने को जी चाहता है..."
कल शाम बातों-बातों में ,
आखों से कहने लगे मेरे आंसू ;
और सब्र होता नहीं,
अब "बरस" जाने को जी चाहता है ।
परदेस में हो गये अब बहुत दिन,
अब घर जाने को जी चाहता है ।
पार्क में खेलते बच्चे,
घर की याद दिला जाते हैं ।
बच्चों के संग खेलने को जी चाहता है ।
पार्क के सामने गुब्बारे के लिये,
किसी बच्चे को रोता देखकर ,
सारे गुब्बारे उसके लिये खरीदकर,
उसको हंसाने को जी चाहता है ।
परदेस में हो गये अब बहुत दिन,
अब घर जाने को जी चाहता है ।
पार्क में खेलते हुये बच्चे जब गिर जाते हैं ।
दौड़कर उन्हें उठाने को जी चाहता है ।
खेल-खेल में जब समुन्दर किनारे पहुँच जाते हैं बच्चे,
उन्हें आवाज़ देकर रोकने को जी चाहता है ।
परदेस में हो गये अब बहुत दिन,
अब घर जाने को जी चाहता है ।
कुछ देर बच्चों के संग खेलने को जी चाहता है ।
(आभार : फोटो गूगल )
Tuesday, February 8, 2011
"शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ ..."
शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
लेखनी को नए विचार दो माँ।
इतना मुझ पर , उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को सार्थक रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
बेरंग शब्दों में , रंग भर दो माँ।
शब्दों को नए अर्थ दो माँ।
"शलभ" को नए आयाम दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखूं, सबको निहाल कर दूँ माँ।
इतना मुझपर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
Monday, February 7, 2011
"मुझ से बातें किया करो...."
हज़ार गम हैं ज़िन्दगी में,
किसी से शिकवे-शिकायत क्या करो ?
दुनिया लगे जब अजनबी सी,
मुझ से बातें किया करो ।
शायद, कुछ कह रहीं हैं धड़कने ;
कभी अपने दिल की कहानी सुना करो ।
जब नींद न आये रातों में ,
मेरी यादों को अपने सिरहाने रखा करो ।
हर रोज ख्वाबों में हम आयेगें ,
थोड़ी जगह छोड़ कर सोया करो ।
जो कुछ कहना है मुझसे,
सारी बातें कह दिया करो ।
अकेले होकर भी , अकेले नहीं हो तुम
अपने आसपास , मुझे महसूस किया करो ।
मैंने वही किया जो था मेरे लिए ज़रूरी ,
वक्त की थोड़ी मजबूरियां समझा करो ।
Saturday, February 5, 2011
"खुले मन से सबसे मिलना चाहिये...."
गहराई भी चाहिये ।
कहना ही पर्याप्त नहीं,
बातों में असर भी चाहिये।
चारों ओर दीवार बनाकर ,
बैठने से कुछ नहीं हासिल
सीमाओं से पार आकर,
नदिया जैसा उन्मुक्त बहना चाहिये।
अनन्त प्रेम पाने के लिए,
खुद को भी असीम बनना चाहिये।
हटा दो सब दीवारें,
तोड़ दो मन के बंधन सारे ...
खुले मन से सबसे मिलना चाहिये।
कल्पनाओं को सार्थक रूप देना है अगर,
निरर्थक सोच से बाहर आना चाहिये।
"राज", जीवन में सबको अपना बनाना है अगर...
"पोखर" नहीं , "महासागर" बनना चाहिये।
"एक सा दिल सबके पास होता है..."
एक सा दिल सबके पास होता है,
फिर क्यों नहीं सब पर विश्वास होता है।
इंसान चाहें कितना ही "आम" क्यों ना हो,
किसी ना किसी के लिए "वह", ज़रूर "खास" होता है।
Wednesday, February 2, 2011
"मेरी आंखों में है समंदर ,किसी ने न जाना ...
टूटने से है अच्छा है बिखर जाना ।
ऐ-मेरे "दोस्त" अब मुझे ,
कभी महफिल में ना बुलाना ।
टूटे हुए टुकड़े, फिर आंखों में चुभते हैं ,
बहुत मुश्किल होता है फिर ,
आंसुओं को रोक पाना ।
“फ़रिश्ता ” बनकर तो, न जा सकेंगे;
बुरा बनकर हो जाएगा आसान,
सबके लिए फिर मुझे भूल जाना ।
टूटने से बेहतर है , बिखर जाना।
लहरों की भी हम कहाँ सुनते हैं ,
अपनी तो आदत है ,
तूफानों में कश्ती ले जाना ।
चाँद बेवजह ही खुश है ,
उधार की रौशनी पर ,
“सूरज” की तो आदत है ,
शाम होते घर जाना ।
मुस्कारते हुए लब तो देखे है सबने ,
मेरी आंखों में है समंदर ,किसी ने न जाना ।
टूटने से है अच्छा है बिखर जाना ।
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