Tuesday, March 29, 2011

"अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम .."



जिस समुन्दर को रोज देखा करते थे हम ।
लहरों से खूब बातें किया करते थे हम ।
अब उन किनारों को दूर छोड़ आये हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
दिल में आता हैं , सब कुछ भूल जाएँ हम ।
ना किसी को याद करें, ना किसी को याद आयें हम ।
मगर इन "यादों" को कहाँ ले जाएँ हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
"यादें" सहारा होती है जीवन का ,
मेरे साथ रहती हैं हमेशा "यादें" और "हम" ।
पहले भी तन्हा थे और आज भी तन्हा हैं हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
शिकवा नहीं किसी से ना शिकायत है कोई,
चलो, कुछ लम्हों के लिए तो मुस्करा लिये हम ।
उनकी "ख़ामोशी" , सब कुछ समझ गये हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।

Sunday, March 27, 2011

"Life is too short so live it...."



If it happens it happens.

Life is too short so live it and have no regrets because if you make excuses or are afraid, you might miss out on something that you may really love and regret it that you never did it.

Embrace every single moment in your life and every single person you meet because you never know when they will suddenly stop being in your life ...forever.

Real true friends are people that come into your life and take up a special place in your heart, never to be replaced or forgotten even as time passes.

"Hearts will never be practical until they are made unbreakable.

The reason it hurts so much to separate is because our souls are connected.

"Just don't give up trying to do what you really want to do. Where there's love... and inspiration, I don't think you can go wrong."

Tuesday, March 22, 2011

हमारे घर का "उत्सव" - हमारा प्यारा "शानू"....


ना गुब्बारे , ना खिलोने , ना उसे मिठाई चाहिये।
हमसे ना उसको कोई तोहफा चाहिये ।
खुशियों का बस उसे साथ चाहिये ।
आप सबकी दुआओं में असर चाहिये ।
खूब भीगता है वह , बारिशों के मौसम में ;
इन्द्रधनुष के रंगों को देखने के लिए मगर,
आखों में "उसे" रौशनी चाहिये।
आप सबकी दुआओं में असर चाहिये ।
लिखे हुए से ज़्यादा कोई जी सकता नहीं,
अपनी ज़िन्दगी के सारे लम्हें ,
चाहकर भी मैं उसे दे सकता नहीं...
बस में होता हमारे अगर,
फिर कोई कभी मरता नहीं,
कुदरत का कोई करिश्मा चाहिये।
आप सबकी दुआओं में असर चाहिये ।
हारना उसने ना सीखा है कभी,
मुस्कारते हुए जीता है वह हर लम्हें सभी,
ज़िन्दगी जीने की उस जैसी ,बस ललक चाहिये।
आप सबकी दुआओं में असर चाहिये

Saturday, March 19, 2011

"कई दिनों के बाद जब हम अपने घर आये...."



कई दिनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये

घर की हर चीज़ ने पूछा, मेरे करीब आकर
आप क्यों इतने महीनों बाद आये ।
दीवारें भी मिली जी भर के गले मुझसे,
फिर देर रात आसमान से चंदा और तारे
मुझसे मिलने मेरे घर की छत पर आये ।

कई दिनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये ।

Monday, March 14, 2011

"भीड़ भरे रास्तों पर अजनबी सी शाम है...."




गुमसुम सी है दिल की धडकनें ,
और खोयी-खोयी सी शाम है ।
तन्हाई है अब साथी मेरी,
आंसुओं में भीगी हुई सी शाम है ।
दो कदम चलकर ठहर गये उनके कदम ,
भीड़ भरे रास्तों पर अजनबी सी शाम है ।
गहराने लगा है अँधेरा अब उदासियों का ,
"राज" से बिछुड़ती हुई सी शाम है ।
ज़िन्दगी में अब साँसों का भरोसा नहीं,
रेत की तरह हाथों से फिसलती हुई सी शाम है ।
गुमसुम सी है दिल की धडकनें ,
और खोयी-खोयी सी शाम है

Saturday, March 12, 2011

"तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग......."


कोई किसी को याद नहीं करेगा ,
यह ग़लत कहते है लोग।

ज़िन्दगी भर याद आयेगें ,
मुझे आप सब लोग।

शायद मुझे भी याद करेंगे ,
मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।

जब खामोश हो जाऊंगा मै ,

तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।

चला जाऊंगा इस शहर से जब मै,
मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।

मैं हूँ एक पेड़ चंदन का,
इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।

पत्थर पर घिस कर, जब मिट जाऊंगा मै,
तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।

आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ,
एक दिन टूट जाऊंगा मै ।

खुशी बहुत है , इस बात की "राज" को मगर

देखकर मुझे, अपनी मुरादें पूरी कर लेंगे लोग।

बस "अपने" नहीं हैं.....

सब कुछ है परदेस में,
बस "अपने" नहीं हैं ।
कुछ दिनों से ना जाने,
क्या हुआ है मुझे ;
आखों में आंसू ,
अब रुकते नहीं हैं।
शायद, कोई नाराज़ है मुझसे;
इतने बुरे तो हम नहीं हैं ।
सब कुछ है परदेस में,
बस "अपने" नहीं हैं

Thursday, March 10, 2011

"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे..."



"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,
आँगन के पौधे बहुत याद आने लगे,
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
सूरज की तेज तपन में थोड़े झुलसे तो होंगे,
बारिशों के मौसम में बहुत भीगे तो होंगे,
जाडों की सर्द हवाओं में भी स्कूल गए तो होंगे।
लगता है वक्त की आग में तप कर ,
अब तो "सोना" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
वो मुझे बहुत याद करते तो होंगे,
कलेंडर को बार-बार देखते तो होंगे।
आंखों से आंसू थम तो गए होंगे,
लोरियों के बिना ही, अब सो जाते तो होंगे।
पर शायद कभी -कभी रातों को, वो जागते तो होंगे।
आँधियों का सामना वो करते तो होंगे,
पतझड़ के मौसम में तोडे टूटते तो होंगे,
बसंत ऋतू में हर तरफ़ महकते तो होंगे।
लगता है हर मौसम में ढल कर अब तो,
मेरे लिए "कल्पवृक्ष" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
नाज़ुक सी टहनियों पर नन्ही-नन्ही पत्तियां,
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ
उनकी खुशियों में सब खुश तो होंगे,
सारी बातों को अब वो समझते तो होंगे।
लगता है जिन्दगी के इम्तहान में पास होकर,
मेरे लिए "कोहिनूर" बन गए होंगे । "

Friday, March 4, 2011

ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,तुम मित्र मेरे !




जब वक्त के दो राहे पर,
ठहर जाते हैं कदम मेरे,
आकर रास्ता दिखा जाते हो ।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
हालातों के बिखरते हुए पलों में,
जब आंसुओं से भीगने लगते हैं नैन मेरे,
आकर मेरे लिए "कान्धा" बन जाते हो ।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
जब कभी कुछ कहते - कहते
लड़खडाने लगते हैं होंठ मेरे,
आकर "नए शब्द" दे जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !
उदासी से भरी ज़िन्दगी में,
कोई नहीं देता जब साथ मेरा,
मेरे संग होने का "आभास" दिला जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
अपनेपन का अहसास दे जाते हो।
ना जाने कहाँ से आ जाते हो ,
तुम मित्र मेरे !

"कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद..."

कल रात समुन्दर बहुत रोया है शायद,
दोपहर तक किनारे की सारी रेत भीगी हुई थी।
वह पढने लगे है अब मेरी कहानियाँ,
दिल के कागज़ पर अब तक जो लिखी हुई थी ।
सुलझने लगी है अब ज़िन्दगी की पहेलियाँ ,
बरसों से अब तक जो उलझी हुई थी ।
एक डायरी के पन्नों को लगे हैं हम पलटने,
एक जमाने से , अलमारी में जो रखी हुई थी ।