I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Wednesday, September 28, 2011
"लहरें..."
लहरों की भी हम कहाँ सुनते हैं ।
बहुत मुश्किल है हमको समझाना ।
अपनी तो आदत है तूफानों से टकराना ।
और भवंर से भी कश्ती को निकाल ले जाना ।
Wednesday, September 21, 2011
"एक पेड़......"
"परिंदे...."
Saturday, September 17, 2011
"बचपन के दिन याद आते हैं.."
Thursday, September 15, 2011
"मन की तितलियों को उड़ने दिया करो ..."
कभी-कभी अपने दिल की भी सुना करो ।
मन की तितलियों को उड़ने दिया करो ।
ये माना , काम में बहुत मसरूफ हो मगर,
कभी-कभी कुछ लम्हे खुद को भी दिया करो ।
कभी-कभी बारिशों के मौसम में भी भीगा करो।
उदास ज़िन्दगी में , इन्द्रधनुषी रंग भरा करो ।
कभी-कभी दिल कहे अगर, तो खुल कर भी हँसा करो ।
तितलियों को किताबों में मत रखा करो।
उनके संग-संग आसमां में उड़ा करो।
कभी-कभी अपने दिल की भी सुना करो।
Tuesday, September 13, 2011
"खामोशियाँ बोलने लगी हैं..."
खामोशियाँ बोलने लगी हैं।
"राज" सारे खोलने लगी हैं।
कान्हा के होठों का,
बांसुरी को सहारा क्या मिला,
गोपियाँ प्रेम-गीत गाने लगी हैं।
"राज" सारे खोलने लगी हैं।
कान्हा के होठों का,
बांसुरी को सहारा क्या मिला,
गोपियाँ प्रेम-गीत गाने लगी हैं।
Monday, September 12, 2011
"एक नयी कहानी लिखेंगें ज़रूर .."
गुलशन, गुलज़ार है कलियों से...
फूल खिलेंगे ज़रूर।
यकीन है पूरा मुझको,
ब्लॉग के सब साथी ,
एक दिन मिलेंगें ज़रूर।
अपनेपन का अहसास लिये,
फूलों की नाज़ुक कलियाँ,
सब मिल कर,
एक नयी कहानी लिखेंगें ज़रूर ।
खिल जाएँ फूल,
तो आप सब , बस इतना करना।
उन फूलों को संभाल कर,
अपने दिल की किताब में रखना।
यकीन है पूरा मुझको,
ता-उम्र उस किताब से,
खुशबू आयेगी ज़रूर।
फूल खिलेंगे ज़रूर।
यकीन है पूरा मुझको,
ब्लॉग के सब साथी ,
एक दिन मिलेंगें ज़रूर।
अपनेपन का अहसास लिये,
फूलों की नाज़ुक कलियाँ,
सब मिल कर,
एक नयी कहानी लिखेंगें ज़रूर ।
खिल जाएँ फूल,
तो आप सब , बस इतना करना।
उन फूलों को संभाल कर,
अपने दिल की किताब में रखना।
यकीन है पूरा मुझको,
ता-उम्र उस किताब से,
खुशबू आयेगी ज़रूर।
Friday, September 9, 2011
"घर का आँगन और बच्चों का बोलना..."
चलते समय घर में सबसे मिलना ।
बहुत मुश्किल है आंसुओ को रोकना ।
ना जाने फिर कब होगा मिलना ।
बार-बार फिर याद आता है मुझको,
घर का आँगन और बच्चों का बोलना ।
बहुत मुश्किल है आंसुओ को रोकना ।
ना जाने फिर कब होगा मिलना ।
बार-बार फिर याद आता है मुझको,
घर का आँगन और बच्चों का बोलना ।
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