Wednesday, October 26, 2011

"दीपावली" की हार्दिक शुभकामनाएँ ..."





"दीपावली" की हार्दिक शुभकामनाएँ,
आशाओं के नये दीप जलायें ।
साकार हो सारी संकल्पनाएँ,
जीवन को सार्थक करके दिखलायें।
एक-दूसरे के प्रति जाग्रत हो संवेदनायें,
सुख-दुःख बाटें, मानवता का सच्चा धर्म निभायें ।
"दीपावली" की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Thursday, October 20, 2011

"ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?"



ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
दो कदम आगे चलता हूँ, चार कदम पीछे कर देता है।
जब भी कश्ती उतारता हूँ, समुन्दर में तूफान खड़ा कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
एक-एक करके बड़ी लगन से , खुशियों के बीज बोता हूँ।
खिल भी ना पाते हैं फूल, कि हर मौसम को पतझड़ कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
मुस्कराते हुए लम्हे ना जाने कहाँ खो गये,
एक-एक करके सब मुझसे जुदा हो गये।
भीड़ भरी सड़कों पर भी तन्हा कर देता है।
ऐ - वक्त , तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
लिखना चाहता हूँ बहुत कुछ , कहना चाहता हूँ बहुत कुछ..
लिखने बैठता हूँ जब भी मगर, मुझे नि: शब्द कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?