Friday, April 29, 2011

"परदेस में कहाँ अपने हैं...."

भीगी -भीगी सी यादें हैं ।
बिखरे-बिखरे से सपने हैं ।
सच कहते हैं लोग,
परदेस में कहाँ अपने हैं ।

Wednesday, April 27, 2011

"मेरी कवितायें अब वो पढ़ते नहीं हैं.."

सब "तस्वीरे" ना जाने कहाँ खो गयी हैं ।
मेरी कवितायें बहुत उदास हो गयी हैं ।
"तस्वीरो" के बिना, कविताओं में रंग नहीं हैं।
मेरी कवितायें अब वो पढ़ते नहीं हैं ।
जो मेरी "कविता" के मन को भाये,
ढूंढता हूँ बहुत, मगर "तस्वीर" मिलती नहीं हैं ।
मेरी कवितायें तन्हा हो गयी हैं ।
सागर की लहरें , अब किनारे तक आती नहीं हैं ।
मेरे मन को अब बहलाती नहीं हैं ।
खोया हूँ अपनी तन्हाईओं में इस कदर ,
कब ढलता है दिन, कब होती है रात ...
मुझे कुछ पता चलता नहीं हैं ।
मेरी कवितायें अब वो पढ़ते नहीं हैं ।
फिर भी उनमे ना जाने क्या बात है ।
उनके सिवा , कुछ याद रहता नहीं है ।
"तस्वीरों" के बिना कविताओं में रंग नहीं हैं ।
मेरी कवितायें अब वो पढ़ते नहीं हैं ।

"फिर भी कोई याद नहीं करता ..."

यहाँ कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता ।
मरने वाले के साथ कोई नहीं मरता ।
सुना है लोग भूल जाते हैं मौत के बाद ,
यहाँ तो जिन्दा हैं फिर भी कोई याद नहीं करता ।

Friday, April 22, 2011

"आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने...."

आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
आखों में आंसू आने की अब कोई बात नहीं,
अपनों से ख़ुद को अलग कर लिया मैंने।
जिन चिरागों को जलाने में जल गया हाथ मेरा,
उन चिरागों को आज बुझा दिया मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
अब ना लगे दिल पर कोई चोट नई,
यह सोचकर , दिल को पत्थर कर लिया मैंने।
डूबती है तो डूब जाने दो मंझधार में,
तूफानों में अपनी कश्ती को उतार दिया मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
ना रह पायेंगें आप सब के बिना ,
फिर भी यह कदम उठा लिया मैंने।
जिन दोस्तों की जान थे हम,
उन दोस्तों को आज छोड़ दिया हमने।
ऐ मेरे खुदा, अब तू ही बता क्या गुनाह किया था मैंने।
ऊँची- ऊँची इमारतों में रहने वालों के, कद हमेशा छोटे देखे मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।

Wednesday, April 20, 2011

"तेरी यादों के कुछ पन्नों को ..."

कल शाम तेरी यादों के कुछ पन्नों को ,
समुन्दर में बहा दिया मैंने ।
अपने संग-संग, समुन्दर को भी रुला दिया मैंने ।
कुछ पन्नों को बहुत संभाल कर रखा है मैंने ।
सबकी नज़रों से छुपा कर रखा है मैंने ।
आंसुओं से लिखा है तेरी यादों पर,
ओंस की बूँदें हैं जैसे गुलाब पर ।
बहुत सारे पन्ने अभी लिखे बाकी हैं ।
मगर, कुछ बातें चाहकर भी लिख नहीं सकते ।
लगता है , अब सारे पन्ने कोरे ही रह जायेगें ।
यूँ तो हर रोज ही लिखता हूँ कुछ पन्ने मगर,
रोज कुछ नये पन्ने जुड़ जातें हैं तेरी यादों के ,
किताब लिख रहा हूँ तुम्हारी यादों पर,
मगर लगता नहीं कि किताब पूरी हो पायेगी ।
दिल की बातें दिल में ही रह जायेगीं ।
बहुत कुछ लिखना है तुम पर मगर,
मेरी यह ज़िन्दगी कम रह जायेगी ।

Tuesday, April 19, 2011

"घर में नहीं, अब मन लगता है..."

घर अब खाली सा लगता है ।
तुलसी का पौधा भी मुरझाया सा लगता है ।
ना जाने कैसी खामोशी है घर में ,
क्या हो गया यह कुछ ही दिन में ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।
घर अब खाली सा लगता है ।
दिल है मगर धड़कन नहीं ,
साज है मगर आवाज़ नहीं ,
सब कुछ सूना सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।
जीवन के इस नाजुक मोड़ पर,
तुम साथ छोड़ कर चले गये ।
बीते लम्हें जब याद आते हैं ,
आखों में आंसुओं का मेला लगता है ।
सब कुछ सूना सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है।
जीने को तो जी ही लेंगे हम मगर,
बिना तुम्हारे, यह जीवन
अब बोझिल सा लगता है ।
घर अब खाली सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।