Thursday, June 30, 2011

"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा...




मेरी प्रिय "मंजरी",
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
ना जाने कैसे अपने आप,
बिन बुलाये मेहमान की तरह,
काटों से भरे ये जिद्दी पौधे,
उग आते हैं मेरे घर में,
लहुलुहान कर देते हैं हाथ मेरे,
रोज़ ही हटाता हूँ उन पौधों को,
मगर अगले दिन,
और भी ज़्यादा उग आतें हैं ।
और अब तो,
मेरे मन को भी चुभने लगे हैं।
हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
जीवन कष्टों में ही बीत गया,
वक्त, सचमुच मुझसे जीत गया।
कुछ पल खुशियों के अब देने ही होंगें।
उम्र भर "तपती रही" ज़िन्दगी को,
अब "तपोवन" बनना ही होगा।
मेरी प्रिय "मंजरी",
इसीलिए,
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।

Sunday, June 26, 2011

"जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ..."




माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
याद है मुझको बचपन में ,
जब नींद नहीं मुझको आती थी ,
तुम्ही तो लोरी गाकर ,
मुझको रोज सुलातीं थीं।
धीरे - धीरे समय बीत गया,
वक्त की आपा-धापी में ,
लोरियां सब भूल गया।
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में ,
नींदें मुझसे रूठ गयीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
माना , यह वक्त लोरियों का नहीं है...
चक्रव्यहू से निकलना मगर,
मुझको आता नहीं है।
याद है मुझको बचपन में ,
बिना कहे ही सब पहचान लेतीं थी,
क्यों परेशान हूँ मैं ,
सब कुछ जान लेती थीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
नींदों में स्वप्न सलोने दे जाना।

Friday, June 24, 2011

"नींव का पत्थर बनना है मुझे..."





गुम्बद में नहीं लगना है मुझे,
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
सब अगर गुम्बद में ही लगेंगे,
नींव में फिर कौन से पत्थर लगेंगे ।
आसमान नही छूना है मुझे,
धरती में ही बस रहना है मुझे।
ख़ुद खामोश रहकर सबको
मुस्कराते हुए देखना है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
देवता के चरणों में नही अर्पित होना है मुझे।
फूलों की माला नहीं बनानी है मुझे।
शूल बनकर फूलों की हिफाज़त करनी है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
कहीं दूर नहीं जाना है मुझे,
कश्ती में ही रहना है मुझे।
मांझी बनकर , सबको पार ले जाना है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।

Friday, June 17, 2011

"पहले जैसे इन्द्रधनुष , अब बनते नहीं हैं...."



ऐसा नहीं कि , बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं।
आती हैं घटायें , किसी अजनबी की तरह।
पहले की तरह अब बरसती नहीं हैं।
पहले जैसे इन्द्रधनुष , अब बनते नहीं हैं।
बूंदों में अब, अपने पन का अहसास नहीं हैं।
ऐसा नहीं कि , बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं।
बदल गया है वक्त बदल गया ज़माना ,
खुले मन से अब "दोस्त" मिलते नहीं हैं ।
पहले जैसे इन्द्रधनुष , अब बनते नहीं हैं ।

Wednesday, June 15, 2011

"मुझे अजनबी रहने दो....."



ना चिराग जलाओ राह में,
बस अँधेरा रहने दो ।
ना देखो प्यार भरी निगाहों से ,
मुझे अजनबी रहने दो ।
तुम सदा खुश रहो मुस्कराओ ,
मेरी आखों में आंसू रहने दो ।
"एक दिन हम उनके हो जायेगें"
मुझे यह गलतफहमियाँ रहने दो ।
प्यार किया था हमसे किसी ने ,
बस यही अहसास उम्रभर,
अब मेरे साथ रहने दो ।
ना चिराग जलाओ राह में,
बस अँधेरा रहने दो ।
"एक दिन हम उनके हो जायेगें"
मुझे यह गलतफहमियाँ रहने दो ।

Sunday, June 12, 2011

"मेरी आखों पर पहरे हैं ..."

तुम्हारी यादों के आंसू,
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।

Friday, June 10, 2011

"उसके घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता है..."

उसके घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता है।
ना जाने कैसा शख्स है वो,
जो अपने ही घर में कैद रहता है।
खिड़कियाँ भी बंद हैं और रौशनदान भी ,
ना जाने कैसा शख्स है वो,
जो दिन में भी अँधेरा किये रहता है।
उसके घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता है।
जमाना हो गया उसको देखे हुए,
ना जाने कैसे वो ख़ुद को,
दुनिया से छुपाये रखता है।
उसके घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता है।
शायद बहुत मजबूर है वो,
अपनों से क्यों दूर है वो ....
चलो, आज उसके घर हो आऊं मैं ।
दरवाज़े पर उसके हौले से एक दस्तक दे आऊं मैं।
अंधेरे जीवन में उसके , उजाला कर आऊं मैं।
दुःख: दर्द सब बाँट लूँ उसका....
मुस्कराहटों के कुछ गुलदस्ते , आज उसे दे आऊं मैं।
यूँ तो मैं कुछ लगता नहीं उसका मगर,
दिल में हमेशा उसका ख्याल रहता है।
ना जाने कैसा शख्स है वो,
जो अपने ही घर में कैद रहता है।
उसके घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता है।

Tuesday, June 7, 2011

"दिखता आजकल पुरानी किताब सा हूँ ...."





शहर में रह कर भी गाँव सा हूँ ।
अपनों के बीच भी गुमनाम सा हूँ ।
पत्थरों का मोल लगाती है यह दुनिया,
हीरों के शहर में भी बे-भाव सा हूँ ।
सुबह हो न सकी जिस दिन की कभी,
उस दिन की ढलती शाम सा हूँ ।
वक्त की गर्द क्या चढ़ी नयी किताब पर,
दिखता आजकल पुरानी किताब सा हूँ।

"आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती .... "





आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
बारिशों के मौसम में भी अब कविता नहीं बनती ।
कोई कह दे उनसे जाकर , मैं उनका हो नहीं सकता ।
मेरी हथेलियों में अब मिलन की लकीरें नहीं बनती।
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
ख़ुद ही रचा था मैंने , अपनी तबाही का मंजर ।
आंसुओं से भरी आँखें , गवाह बनी थी मेरी ।
दिल पर पत्थर रख कर जब , तुमको रुखसत किया था मैंने।
क्यों निगाहें आज फिर , तुम्हारा इंतज़ार हैं करतीं ?
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....

Monday, June 6, 2011

"जन्म-दिन की हार्दिक शुभकामनायें ..."





नदियाँ जब तक बहतीं रहें,
सूर्योदय जब तक होतें रहें।
जन्म-दिन तब तक मनातीं रहो,
दुआ है मेरी सदा मुस्कराती रहो।
फूल चमन में जब तक खिलते रहें,
खुशबूं से फिजायें जब तक महकती रहें।
जन्म-दिन तब तक मनातीं रहो,
दुआ है मेरी सदा मुस्कराती रहो।
बारिशें जब तक बरसती रहें,
इन्द्रधनुष जब तक बनते रहें।
जन्म-दिन तब तक मनातीं रहो,
दुआ है मेरी सदा मुस्कराती रहो।
चंदा में जब तक चांदनी रहे,
तारों में जब तक जगमगाहट रहे।
जन्म-दिन तब तक मनातीं रहो,
दुआ है मेरी सदा मुस्कराती रहो।

Saturday, June 4, 2011

"अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह .."

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है जो, पागल कर दे मुझको पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।