Saturday, July 30, 2011

"एक नई इबारत लिख रहा..."

रात का आखरी प्रहर है,
तेज़ी से गुज़र रहा।
आने वाले कल के लिए,
नई इबारत लिख रहा।
इस भागती - दौड़ती दुनिया में ,
हर इंसान अपना मुकाम तलाश रहा ।
"राह" का पत्थर था जो अब तलक,
अब "मील" का पत्थर बन रहा ।

Wednesday, July 27, 2011

"इस शहर के लोग मुझे...."

"इस शहर के लोग मुझे,
प्यार बहुत करते हैं।
जब भी मिलते हैं मुझसे,
खुले दिल से मिलते हैं।
क्यों ना करूँ मैं हर पल ,
अब ख्याल उन सबका,
अच्छे लोग इस दुनिया में,
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। "

Thursday, July 21, 2011

कुछ पंक्तियाँ हैं अपनेपन का अहसास लिये....

नये लोग मिले हैं, नये ख्यालात मिले हैं।
मेरे शब्दों को नये अलंकार मिले हैं ।
और जब से मिले हैं आप सब मुझे ,
जीने के मुझे नये आयाम मिले हैं।

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"किसी की पथरायी आँखों के लिए ,
ख़ुशी का "एक आंसू" बन जाऊँ मैं ।
चाहे अगले ही पल बह जाऊँ मैं ।
एक पल में कई ज़िन्दगी जी जाऊँ मैं ,
चाहे अगले ही पल फ़ना हो जाऊँ मैं ।

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बरसात के मौसम में भीगना मुझे यूँ अच्छा लगता है ।
हम कितना भी रो लें, किसी को क्या पता चलता है ।

Monday, July 11, 2011

"गुब्बारेवाला हमारी गली में अब आता नहीं..."



खिलोनों से अब दिल बहलता नहीं,
बातों से अब मन मानता नहीं।
पापा,आपको है कसम हमारी ,
हमसे मिलने अब आना यहीं।
गुब्बारेवाला हमारी गली में अब आता नहीं।
बर्फ की चुस्कीवाला भी दूर तक नज़र आता नहीं,
सबको मालूम है, पापा हमारे यहाँ रहते नहीं।
पापा आपको है कसम हमारी ,
हमसे मिलने अब आना यहीं।
दादी जी को दवाएं और चाहियें नहीं,
आपको देखकर ठीक हो जायेंगी वहीँ।
दादा जी चश्मे का नम्बर बदलवाते नहीं,
कहते हैं, अब उसकी जरुरत नहीं।
बाईक पर बैठा कर दूर ले जाना कहीं,
रास्ते में हम कुछ और मांगेंगे नहीं।
पापा, आपको है कसम हमारी ,
हमसे मिलने अब आना यहीं।
छोटे भाई की पुरानी साईकल भी कोई ठीक करता नहीं,
मैं हूँ तो बड़ा पर इतना नहीं ,
छोटे को बैठा कर अभी मुझसे चला जाता नहीं।
पापा , आपको है कसम हमारी ,
हमसे मिलने अब आना यहीं।
मम्मी की मुस्कराहटें तो खो गयी कहीं।
"गाजर के हलुए" में मिठास अब होती नहीं।
पापा, आपको है कसम हमारी ,
हमसे मिलने अब आना यहीं।

Sunday, July 3, 2011

"पापा, जल्दी घर आ जाना ..."


परिवार को छोड़कर दूसरे शहर जाना ।
बच्चों का, छज्जे से हौले-हौले हाथ हिलाना।
और कहना "पापा, जल्दी घर आ जाना ।
बहुत मुश्किल होता है, आंसुओं को रोक पाना ।