शहर में रह कर भी अनजान सा हूँ । अपनों के बीच भी गुमनाम सा हूँ । पत्थरों का मोल लगाती है यह दुनिया, हीरों के शहर में भी बे-भाव सा हूँ । सुबह हो न सकी जिस दिन की कभी, उस दिन की ढलती शाम सा हूँ । वक्त की गर्द क्या चढ़ी नयी किताब पर, दिखता आजकल पुरानी किताब सा हूँ।