Sunday, June 29, 2014

"पुरानी किताब.."


शहर में रह कर भी अनजान सा हूँ ।
अपनों के बीच भी गुमनाम सा हूँ ।
पत्थरों का मोल लगाती है यह दुनिया,
हीरों के शहर में भी बे-भाव सा हूँ ।
सुबह हो न सकी जिस दिन की कभी,
उस दिन की ढलती शाम सा हूँ ।
वक्त की गर्द क्या चढ़ी नयी किताब पर,
दिखता आजकल पुरानी किताब सा हूँ।

(शलभ गुप्ता "राज")

Wednesday, June 11, 2014

मेघा..

Megh, Tum Kab Aaoge Mere Desh ?
Aapki Pratiksha Me Saansen Reh Gayi Shesh :)

मेघा , तुम कब आओगे मेरे देश ?
आपकी प्रतीक्षा में साँसें रह गयी शेष।

शलभ गुप्ता "राज"