Wednesday, October 14, 2015

पापा जी की घड़ी..

कई बार नयी घड़ी लाकर दी थी पापा जी नें ,
एक भी ठीक नहीं रख पाया मैं ,
क़ुछ ना जाने कहाँ खो गयीं ,
कुछ वक्त से पहले ही ठहर गयीं।
पापा जी अपनी घड़ी को बहुत ध्यान से रखते थे।
पिछले वर्ष, जब पापा जी हमसे बहुत दूर चले गये ,
उस वक्त भी उनके सिरहाने रखी ,
उनके हाथ की घड़ी ठीक चल रही थी ,
उस कठिन समय में भी सही समय बता रही थी।
मेरे पास आज भी , अपनी एक भी घड़ी नहीं है।
पापा जी की उस घड़ी को अब मैं ,
अपने हाथ में बांधने लगा हूँ।
शायद अब, समय की अहमियत समझने लगा हूँ।
@ शलभ गुप्ता "राज"

Sunday, August 16, 2015

"घुटन..."

"आँसू" हो या "बारिशें" ,
बरस जाएँ तो ही अच्छा है ,
वरना  घुटन बहुत हो जाती है,
दिल में हो या फिर मौसम में. 
-शलभ गुप्ता



Sunday, June 28, 2015

"तस्वीर.."

कोई एक सांस आखरी होगी,
उस लम्हा सबसे बात आखरी होगी,
रह जायेगें फिर तस्वीर बनकर,
ख़्वाबों में  ही बस  मुलाकात होगी।  
-  Shalabh Gupta "Raj"

Thursday, June 25, 2015

"मुंबई .."

बारिशों में भीगकर मुंबई सयानी हुई,
जैसे किसी के प्यार में दीवानी हुई !
- Shalabh Gupta

Wednesday, June 24, 2015

"अजनबी.."

"वह अजनबी होकर भी, मेरी दुआओं में शामिल है,
दुनिया में बहुत कम लोगों को, यह मुकाम हासिल है "
Shalabh Gupta "Raj"

Saturday, June 13, 2015

"पुरानी किताब .."

















शहर में रह कर भी अनजान सा हूँ ।
अपनों के बीच भी गुमनाम सा हूँ ।
पत्थरों का मोल लगाती है यह दुनिया,
हीरों के शहर में भी बे-भाव सा हूँ ।
सुबह हो न सकी जिस दिन की कभी,
उस दिन की ढलती शाम सा हूँ ।
वक्त की गर्द क्या चढ़ी नयी किताब पर,
दिखता आजकल पुरानी किताब सा हूँ।
Shalabh Gupta "Raj")


Friday, June 12, 2015

"बंज़र जीवन .."

"यदि आँखों में किसी की कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन जीने के योग्य नहीं हैं।"
( Shalabh Gupta "Raj")

Wednesday, June 10, 2015

"यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें.."

इस भागती - दौड़ती ज़िन्दगी में , 
कुछ पल तो अपनों के लिये रखो दोस्तों,
अधूरेपन से ना व्यक्त करो,
अपनी भावनाओं को ,
वरना अपने भी पराये होते रहेगें, 
यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।
सूरज अपना चक्र कम कर दे अगर, 
यह दिन के उजाले भी जाते रहेगें।
चाँद जल्दी घर जाने लगे अगर, 
सपने अधूरे हमारी आखों में ही रहेगें।
खुल कर ना बरसें बादल अगर, 
धरा पर हम सब फिर प्यासे रहेगें।
अधूरेपन से ना व्यक्त करो,
अपनी भावनाओं को 
वरना अपने भी पराये होते रहेगें, 
यह रिश्ते हाथों से जाते रहेंगें।
- शलभ गुप्ता "राज"

Tuesday, June 9, 2015

"नये सफर.."

यादों के सहारे कब तक जिया जायेगा ,
चल उठ, अब फिर से जिया जायेगा।  
कल की गठरी को मन से उतार,
अब नये  सफर पर चला जायेगा।  
तमाम उम्र झुलसती रही ज़िन्दगी,
अब के बारिशों में खूब भीगा जायेगा।  
भीड़ में भी तन्हा ही चलते रहे "शलभ",
अब किसी को हमराह बनाया जायेगा।  
( शलभ गुप्ता "राज")

Sunday, June 7, 2015

"कहानी.."

हज़ारों लोग मिले , मौज़ों की रवानी में,

तुम ही बस याद रहे , ज़िन्दगी की कहानी में।

Saturday, June 6, 2015

लम्हे..

मुझसे खुश होकर गले मिले , जाते हुये लम्हे।

आते हुये लम्हे बोले, "जन्मदिन की हार्दिक बधाई"!

"जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई"..




















"एक बार फिर से दीजिये,  एक- दूसरे को बधाई।
खुशियों  की सौगात लिये  6 जून की सुबह आई।
सूरज की किरणों ने, प्रेषित  की पहली बधाई।
फिर चिड़ियाँ चहचहायी, "जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई"!
सागर की लहरों ने प्रेषित की दूसरी बधाई।
फिर हवा गुनगुनाई, "जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई"!
एक बार फिर से दीजिये,  एक- दूसरे को बधाई।
खुशियों  की सौगात  लिये  6 जून की सुबह आई।
बधाईयों  के सिलसिले यूँ ही अनवरत चलते रहें,
हम आपको और आप  हमें यूँ ही याद करते रहें।
हज़ारों लोग मिले , मौज़ों की रवानी में ,
तुम ही बस याद रहे , ज़िन्दगी की कहानी में।
ज़िन्दगी से खुश होकर गले मिले , जाते हुये लम्हे।
आते हुये लम्हों ने कहा, "जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई"!
एक बार फिर से दीजिये,  एक- दूसरे को बधाई।
खुशियों  की सौगात लिये 6 जून की सुबह आई।"
- शलभ गुप्ता "राज"


Monday, June 1, 2015

"अमलतास"

अमलतास के फूल हैं यह,

शायद कुछ कह रहे हैं,

कुछ सुना आपने ,

क्या  वही ?

अभी-अभी जो सुना है मैंने,

शायद वही !


Friday, May 8, 2015

"अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम .."

जिस समुन्दर को रोज देखा करते थे हम ।
लहरों से खूब बातें किया करते थे हम ।
अब उन किनारों को दूर छोड़ आये हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
दिल में आता हैं , सब कुछ भूल जाएँ हम ।
ना किसी को याद करें, ना किसी को याद आयें हम ।
मगर इन "यादों" को कहाँ ले जाएँ हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
"यादें" सहारा होती है जीवन का ,
मेरे साथ रहती हैं हमेशा "यादें" और "हम" ।
पहले भी तन्हा थे और आज भी तन्हा हैं हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
शिकवा नहीं किसी से ना शिकायत है कोई,
चलो, कुछ लम्हों के लिए तो मुस्करा लिये हम ।
उनकी "ख़ामोशी" , सब कुछ समझ गये हम ।
अपनी आखों में हजारों समुन्दर ले आये हम ।
(Shalabh Gupta "Raj")

Saturday, April 4, 2015

"नयी शुरुआत..."

घना अँधेरा और बड़ी लम्बी रात है ।
चलोअब कुछ लम्हों की ही तो बात है ।
खत्म हो जायेगी यह काली रात ,
एक सूर्योदय , फिर नयी शुरुआत है ।

Friday, March 20, 2015

अपने हिस्से का "दाना"....





आजकल,
चिड़ियाँ भी कम नज़र आने लगी हैं ,
मेरी छत की मुंडेर पर ।
क्या इन्हें भी पता चल गया मेरे जाने का ?
चिड़ियों, तुम चिंता मत करना ।
मैंने , बहुत सारे "अनाज के दाने "..
लाकर रख दिये हैं ,
मेरी छत पर बने एक कमरे में ।
घर में सबको कह दिया है,
और अच्छे से सबको समझा भी दिया है ।
मेरे दोनों बच्चे सुबह और शाम ,
छत की मुंडेर पर "दाना" रख दिया करेगें ।
सब कुछ तुम्हारा ही तो है ।
इन "दानों" पर हक़ तुम्हारा है ।
मैं कहीं भी रहूँ ,
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरी छत पर रोजाना ,
इसी तरह आते रहना ।
अपने हिस्से का "दाना",
तुम इसी तरह चुगते रहना ।

Saturday, February 21, 2015

"बेटी.."

[१]
"बेटी" सिर्फ एक शब्द नहीं,
खुशियों का पावन नाम है ।
उससे ही है पूजा-आरती,
वह घर तीरथ-धाम है ।
[२]
तुलसी का पौधा ज़रूरी नहीं,
जहाँ बेटी का जन्म हो जाता है ।
जिस घर में होती है "बेटी",
वह घर मंदिर हो जाता है । 

" बेटियाँ.."

नाज़ुक सी टहनियों पर फूलों की लड़ियाँ,
वो खिलती  कलियाँ घर में आती ढेरों खुशियाँ ,
ओंस की बूंदों जैसी होती हैं बेटियाँ ,
जीने का सबब होती हैं बेटियाँ ,
माता-पिता की अनमोल धरोहर हैं बेटियाँ ,
अपने घर में भी मेहमान होती हैं बेटियाँ ,
विदा करके उनको निभाना है दस्तूर,
फिर उम्रभर बहुत याद आती हैं बेटियाँ।  

"माँ .."

सकून से सो जाते हैं बच्चे रात भर,
माँ का लोरी सुनाना ज़रूरी है।
संवर जाती है ज़िन्दगी बच्चों को,
घर में एक माँ बहुत ज़रूरी है। 

Wednesday, February 11, 2015

एक यादगार तस्वीर..

मुरादाबाद में 8 फरवरी 2015 को आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मलेन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर जनाब मंसूर उस्मानी जी, "यश- भारती" से सम्मानित कवि डॉ. विष्णु सक्सेना जी एवं संस्कार भारती-मुरादाबाद के महानगर अध्यक्ष बाबा संजीव आकांक्षी  जी के साथ.. एक यादगार तस्वीर !