Saturday, February 21, 2015

"बेटी.."

[१]
"बेटी" सिर्फ एक शब्द नहीं,
खुशियों का पावन नाम है ।
उससे ही है पूजा-आरती,
वह घर तीरथ-धाम है ।
[२]
तुलसी का पौधा ज़रूरी नहीं,
जहाँ बेटी का जन्म हो जाता है ।
जिस घर में होती है "बेटी",
वह घर मंदिर हो जाता है । 

" बेटियाँ.."

नाज़ुक सी टहनियों पर फूलों की लड़ियाँ,
वो खिलती  कलियाँ घर में आती ढेरों खुशियाँ ,
ओंस की बूंदों जैसी होती हैं बेटियाँ ,
जीने का सबब होती हैं बेटियाँ ,
माता-पिता की अनमोल धरोहर हैं बेटियाँ ,
अपने घर में भी मेहमान होती हैं बेटियाँ ,
विदा करके उनको निभाना है दस्तूर,
फिर उम्रभर बहुत याद आती हैं बेटियाँ।  

"माँ .."

सकून से सो जाते हैं बच्चे रात भर,
माँ का लोरी सुनाना ज़रूरी है।
संवर जाती है ज़िन्दगी बच्चों को,
घर में एक माँ बहुत ज़रूरी है। 

Wednesday, February 11, 2015

एक यादगार तस्वीर..

मुरादाबाद में 8 फरवरी 2015 को आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मलेन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर जनाब मंसूर उस्मानी जी, "यश- भारती" से सम्मानित कवि डॉ. विष्णु सक्सेना जी एवं संस्कार भारती-मुरादाबाद के महानगर अध्यक्ष बाबा संजीव आकांक्षी  जी के साथ.. एक यादगार तस्वीर !