Wednesday, October 14, 2015

पापा जी की घड़ी..

कई बार नयी घड़ी लाकर दी थी पापा जी नें ,
एक भी ठीक नहीं रख पाया मैं ,
क़ुछ ना जाने कहाँ खो गयीं ,
कुछ वक्त से पहले ही ठहर गयीं।
पापा जी अपनी घड़ी को बहुत ध्यान से रखते थे।
पिछले वर्ष, जब पापा जी हमसे बहुत दूर चले गये ,
उस वक्त भी उनके सिरहाने रखी ,
उनके हाथ की घड़ी ठीक चल रही थी ,
उस कठिन समय में भी सही समय बता रही थी।
मेरे पास आज भी , अपनी एक भी घड़ी नहीं है।
पापा जी की उस घड़ी को अब मैं ,
अपने हाथ में बांधने लगा हूँ।
शायद अब, समय की अहमियत समझने लगा हूँ।
@ शलभ गुप्ता "राज"