Sunday, July 17, 2016

"जीवन.."

यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं हैं।
(Shalabh Gupta "Raj')

Wednesday, July 13, 2016

"नये ख्वाब.."

क्या हुआ  जो एक ख्वाब है टूटा, 

कुछ नये ख्वाब मेरी आखों में हैं

(शलभ गुप्ता - "राज")



"मंजिल.."

मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही ....
क़दमों पर अपने , बस भरोसा होना चाहिए। 

ठहरे हुए पानी में क्या मज़ा आएगा,
तैरने के लिए , समुन्दर में तूफान चाहिए।
चलते रहना है निरंतर , ना रुकना है कभी ..
भीड़ से अलग, पद-चिन्ह अपने बनाना चाहिए।
(Shalabh Gupta "Raj")

"कैक्टस.."

कैक्टस में भी तो फूल मुस्कराते हैं।
ज़रा सी परेशानियों में ही लोग,
हिम्मत हार जाते हैं ।
किनारे बैठे रहने से कुछ नहीं हासिल,
विरले ही समुन्दर पार जाते हैं।
(Shalabh Gupta "Raj")

"पृथा थिएटर ग्रुप - मुंबई"

कई वर्षों से चल रहा  निरन्तर,
"पृथा थिएटर" का ये अद्धभुत सफर।
"पटकथा" की यादें हैं धरोहर,
अनुभव के नए रंग मिले,
राजा रवि वर्मा - "चित्रकार" बनकर।
बहुत डराती थी "32/13" की रातें ,
दिल को सुकून देती हैं "मरहम" की बातें।
रेनकोट और छाता छोड़ आना घर पर,
आप सबको भिगोने आये हैं,
अब हम "सावन" बन कर।

(शलभ गुप्ता "राज")
प्रोडक्शन मैनेजर
पृथा थिएटर ग्रुप- मुंबई.