Wednesday, December 26, 2018

"मोड़ .."

घुमावदार सीढ़ियाँ, और जीवन में मोड़ ,
ना आये जब तक, उसे जीना नहीं कहते।
दो कदम चलकर, जो थक जायें कदम,
ऐसे चलने को, फिर चलना नहीं कहते। 
@ शलभ गुप्ता

Monday, December 24, 2018

"स्वेटर.."

माँ, तुम कहाँ हो ?
जाड़े शुरू हुये कई दिन हो गये।
चाहे, सपनों में ही आ जाना।
अपने हाथों से मेरे लिये,
एक "स्वेटर" बुन जाना !
@ शलभ गुप्ता
अपने गृह नगर , मुरादाबाद से !


Wednesday, December 5, 2018

"जाड़ों का मौसम.."

राह में सूरज, 
कोहरे से अठखेलियाँ करने लगा है। 
इसीलिए शायद, 
मेरे शहर में देर से आने लगा है । 
अब मुझे देर से जगाने लगा है । 
गुनगुनी धूप का साथ, 
मन को बहुत भाने लगा है । 
आओ स्वागत करें हम सब मिलकर , 
जाड़ों का मौसम अब आने लगा है । 
© शलभ गुप्ता 
(अपने गृह नगर मुरादाबाद से )


Saturday, November 10, 2018

मन के अंधेरे..

अपने मन के अंधेरे, सारे बांट लें हम, 
रोशन यह अपना शहर हो जायेगा !! 
@ शलभ गुप्ता 

शुभकामनायें...

आजकल डिजिटल हो गयीं,
सारी शुभकामनायें !
अपनों की आवाज सुने,
एक जमाना हो गया !
@ शलभ गुप्ता 

Wednesday, September 26, 2018

"खुशनुमा लम्हें.."

जब भी मिलते हैं खुशनुमा लम्हें,
उन्हें सहेज कर रख लेता हूँ।
@ शलभ गुप्ता


Saturday, September 22, 2018

"खुशनुमा लम्हें.."

जब भी मिलते हैं खुशनुमा लम्हें,
उन्हें सहेज कर रख लेता हूँ।
जब भी आते हैं सर्द मौसम,
तब उन्हें खर्च कर लेता हूँ।
इस तरह ज़िन्दगी के दर्द,
कुछ  कम कर लेता हूँ। 
उस लम्हे में कई ज़िंदगियाँ,
मुस्करा कर जी लेता हूँ। 

@ शलभ गुप्ता

"अंजाने मोड़.."

दूर तक जाना हो तो किसी के साथ चलो,
ज़िन्दगी की राहों में अंजाने मोड़ बहुत हैं।
@ शलभ गुप्ता

Wednesday, July 18, 2018

"बारिशें..."

अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आये इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
वो साथ नहीं हैं यूँ तो, कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं, मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है, जो दिल में बस जाये पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ......
@ शलभ गुप्ता "राज"

(कई वर्ष पूर्व लिखी मेरी एक कविता, इंद्रधनुषी यादों के साथ) 

Tuesday, July 17, 2018

"गमले का जीवन.."

कई दिनों से घर का एक गमला खाली था,
फूलों का पौधा लगाऊँ या मनी-प्लांट का।
कई दिनों से मैं बस यही सोच रहा था।
गमले की हालत पर, मन बहुत उदास था।
कल घर के आँगन में खुशियों की बारिशें हुईं।
गमले की सूखी मिटटी भी, जी भर के मुस्कराई।
जब मेरे द्वारा उस गमले में,
तुलसी के पौधे का आगमन हो गया।
अंतर्मन में सुखद अनुभूति का,
अविरल प्रवाह हो गया।
इस तरह गमले के संग-संग,
मेरा जीवन  भी सार्थक  हो गया।
@ शलभ गुप्ता

( फोटो  के लिए गूगल का आभार )




Saturday, July 14, 2018

"शानू" हमारे घर की शान है...

आशाओं की नित नयी उड़ान है।  
"शानू" हमारे घर की शान है।  
प्रतिकूल हवाओं में भी उसका,
जीवन-दीप प्रकाशमान है।   
उसके होठों पर रहती सदा,
एक प्यारी सी मुस्कान है।  
एक दिन करेगा अपना नाम रोशन, 
माँ सरस्वती का मिला उसे वरदान है।  
16 जुलाई है सोलहवां जन्मदिन,
आप सबका आशीर्वाद उसके साथ है।  
@ शलभ गुप्ता 



Wednesday, July 11, 2018

"कहाँ भीग पाते हैं हम.."

A.C. कमरों में बैठकर,
T.V. पर बारिशों का हाल देखकर,
शहर में हुए जलभराव की, 
अख़बार में छपी तस्वीरें देखकर,
कहाँ भीग पाते हैं हम।  
@ Shalabh Gupta


Friday, June 29, 2018

"इन बारिशों के मौसम में ..."

तुम भीगना इस बार बारिशों में,
मुझे नहीं भीगना है। 
मुझे तो ढेर सारे पौधे लगाने हैं ,
इन बारिशों के मौसम में।

@ शलभ गुप्ता


Saturday, June 23, 2018

"मेघा .."

मेघा, तुम कब आओगे ?
मेरे देश ।  
आपकी प्रतीक्षा में,
साँसें रह गयी शेष । 

शलभ गुप्ता "राज"

Tuesday, June 19, 2018

"कुछ आंसू.."


"कुछ आंसू.."

डायरी के कुछ पन्नों के कोने,
मैंने मोड़कर रखे हैं।  
कुछ मुस्कारते लम्हें मैंने, 
आज भी सहेज कर रखे हैं।  
शायद लौट आओगे तुम एक दिन।  
इसीलिए इन पथराई आँखों में,
ख़ुशी के कुछ आंसू मैंने,
आज भी सहेज कर रखे हैं।  
  
@ शलभ गुप्ता "राज"

Friday, June 8, 2018

"तुलसी महके सदा आँगन में.."

6 जून है जन्मदिन आपका,
शुभकामनायें करें स्वीकार।
तुलसी महके सदा आँगन में ,
नित नयी रंगोली सजे घर-द्वार।
"सुख"-"समृद्धि" हमेशा संग रहें,
होंठ मुस्कराते रहें बार-बार।
आपके जीवन की "जन्मपत्री" पर,
"खुशियों" के हों अमिट हस्ताक्षर।
अनगिनित बाधाएं मिले राह में,
या समय रहे प्रतिकूल,
चलते रहें; चलते रहें, 
जीवन पथ पर निरंतर।
मेरी ओर से करें स्वीकार,
"कविता" का यह उपहार।
6 जून है जन्मदिन आपका,
शुभकामनायें करें स्वीकार।

@ शलभ गुप्ता "राज"

Wednesday, May 16, 2018

"इन बारिशों के मौसम में..."

तुम भीगना इस बार बारिशों में,
मुझे नहीं भीगना है। 
मुझे तो ढेर सारे पौधे लगाने हैं ,
इन बारिशों के मौसम में। 
रंग-बिरंगे गमलों में ,
सफ़ेद फूलों के पौधे। 
जो तुम्हे बहुत पसंद थे। 
यूँ तो कोई खुशबू नहीं थी उनमें,
मगर तुम्हारे छूने से महक जाते थे।
आ जाना फिर एक बार,
फूलों को छूने के लिए ,
आँगन को महकाने के लिए। 

@ शलभ गुप्ता

Saturday, May 12, 2018

"धूप ..'

चाहे कितने बंद कर लो दरवाजे सारे।
सुबह होने पर फिर आयेगा सूरज,
धूप को हौले-हौले घर में आना ही है।
ज़िन्दगी को फिर से मुस्कराना ही है। 
@ शलभ गुप्ता


Wednesday, May 9, 2018

"चिड़ियों, मैं कहीं भी रहूँ ..."













चिड़ियों, मैं कहीं भी रहूँ ,
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरे बच्चे सुबह और शाम ,
छत पर "दाना" रख दिया करेगें ।
सब कुछ तुम्हारा ही तो है ।
इन "दानों" पर हक़ तुम्हारा है ।
तुम कभी चिंता मत करना ।
मेरी छत पर रोजाना ,
इसी तरह आते रहना ।
अपने हिस्से का "दाना",
तुम इसी तरह चुगते रहना ।

@ शलभ गुप्ता 

"कुछ फूल..."

कुछ फूल यादों के,
मोहब्बत की राहों में।
सारे जवाब मिल गये,
उनकी नम आँखों में।

@ शलभ गुप्ता




















( अपने मोबाइल द्वारा ली गयी ये तस्वीर )

Monday, April 30, 2018

"ठंडी छाँव .."

हर मौसम में मुस्कराता हूँ।  
तपन में और भी निखर जाता हूँ।  
पथिक का साथ निभाता हूँ।  
धूप में भी ठंडी छाँव बन जाता हूँ।  
@ शलभ गुप्ता 





Thursday, April 19, 2018

"बचपन के दिन.."

“बच्चे नहीं जानते ,
कि बच्चे क्या होते हैं ।
चोट उनको लगे ,
अहसास दर्द के हम को होते हैं ।
दर्द अपना छुपा कर ,
उनको फिर समझाते हैं .
मुझको अब अपने ,
बचपन के दिन याद आते हैं ।
@ शलभ गुप्ता 

Wednesday, March 28, 2018

मेरी एक कविता "माँ" !

"कौतुहल" राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका के मार्च 2018,
के अंक में प्रकाशित मेरी एक कविता "माँ" ! 
माँ , एक बार फिर से मुझको ,
लोरी सुनाकर , सुला जाना। 
(शलभ गुप्ता)



Sunday, March 18, 2018

"चतुर्थ पुण्यतिथि पर.."

आज, पूज्य पापा जी की चतुर्थ पुण्यतिथि पर हम सभी उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।  आपका आशीर्वाद और प्यार, हम सबको जीवन के कठिन पलों में भी धैर्य और हौसला बनाये रखने की शक्ति प्रदान कर रहा है।
आपका जीवन दर्शन, हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। आपको शत-शत नमन ! 

घर अब खाली सा लगता है । घर में नहीं, अब मन लगता है ।




Wednesday, March 7, 2018

मेरे मन की बात: पंछियों के साथ - फरवरी 2018

"कौतुहल" राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका के फरवरी 2018 के अंक में प्रकाशित,
 मेरे मन की बात: पंछियों के साथ। 



 

Wednesday, February 21, 2018

ना जाने कहाँ खो गया "ईशान" हमारा...

उदय से पहले अस्त हो गया एक तारा,
ना जाने कहाँ खो गया "ईशान" हमारा ।
लोरियां सुनाकर  सुलाती थी जिसे,
चिरनिद्रा में सो गया माँ का राज दुलारा।  
उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।
नन्हें परों से भी ऊंचाइयों तक उड़ा करता था। 
बातों से ही सबको अपना बना लेता था,    
ना जाने किसकी नज़र लग गयी उसको,
बेदर्द आंधी ने सफर ख़त्म किया सारा।
उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।
घर अब खाली सा लगता है ।
घर में नहीं, अब मन लगता है ।
ना जाने कैसी खामोशी है घर में ,
क्या हो गया यह कुछ ही दिन में ।
आँगन में लगे पेड़ों पर ,
अब चिड़ियाँ गुनगुनाती नहीं। 
घर में लगे म्यूजिक सिस्टम को,
अब कोई भी बजाता नहीं। 
कान्हा की बांसुरी कहीं गुम हो गई।
उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।
चला गया है उस जहाँ में वो,
जहाँ से लौट कर आता नही कोई दोबारा।

जन्म : 17 मई 2003 
अवसान : 9 फरवरी 2018 




Thursday, February 1, 2018

"नाटक और रंगमंच"

"नाटक और रंगमंच" से जुडी कुछ रोचक बातें !! 
इंटरनेट से प्राप्त जानकारी और थिएटर के अपने कुछ अनुभवों को, 
इस लेख के माध्यम से आप सब के साथ साझा करना चाहता हूँ। 

("कौतुहल" राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका के जनवरी 2018 के अंक में प्रकाशित) 




  

Saturday, January 27, 2018

"गणतंत्र दिवस"

राष्ट्रीय पर्व "गणतंत्र दिवस" के उपलक्ष पर, महाराजा हरिशचंद्र महाविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में काव्य पाठ करते हुए।



Tuesday, January 23, 2018

"26 नवम्बर"

"कौतुहल" राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका, नवम्बर 2017 के अंक में ,
 प्रकाशित मेरी एक कविता हुई, जिसका शीर्षक है "26 नवम्बर".
आशा करता हूँ, आप सबको भी कविता पसंद आएगी..
सम्पादक महोदय को एक बार फिर से धन्यवाद !




Monday, January 1, 2018

"कुछ तारीखें.."

यूँ तो ज़िन्दगी में,
कई कैलेंडर बदल गये। 
कुछ तारीखें आज भी,
संभालकर रखी हैं मैंने। 
@ शलभ गुप्ता 

कैलेंडर-2018

चलो आज कुछ तो बदला है ,
ज़िन्दगी नहीं तो कैलेंडर ही सही। 
@ शलभ गुप्ता