Thursday, November 21, 2024

"मेरी घड़ी"

वैसे तो मैं,
समय की,
बहुत कद्र करता हूँ। 
हर दिन हाथ में,
घड़ी पहनकर ही निकलता हूँ। 
घड़ी का समय भी,
ठीक ही रखता हूँ। 
फिर भी, 
ना जाने क्यों ?
कुछ दिनों में,
मेरी घड़ी का समय,
५ -१०  मिनट पीछे हो जाता है। 
फिर धीरे धीरे ,
और पीछे होने लगता है। 
ना जाने क्यों ? 
यूँ तो कई बार,
घड़ीसाज को,
अपनी घड़ी मैंने,
दिखाई भी थी। 
परन्तु उसको,
कोई कमी नज़र,
नहीं आई थी। 
सच कहूं तो,
"समय" के साथ मेरी,
 कभी बनी नहीं।
"समय" के साथ,
कभी नहीं चल पाया मैं। 
शायद ही कभी "समय" ने 
मेरा साथ दिया हो। 
मुझे याद नहीं। 
ना जाने क्यों ?
हमेशा वो ही आगे रहा। 

(शेष फिर.. )

Tuesday, November 19, 2024

"अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस"

हमारा क्या है साहब ,
हम तो बस पुरुष हैं। 
अरे कौन मनाता है,
हमारा दिन ?
कोई नहीं मनाता,
हमारा दिन। 
क्या हमारा भी, 
कोई दिन होता है।
अरे हमें तो,
अपनी पसंद के,
कपड़ें पहनने का भी,
अधिकार नहीं। 
हम तो,
खुद भी नहीं मनाते हैं। 
आप तो सब जानते हैं,
गरीब का
कोई दिन नहीं होता। 
हमारा दिन क्या मनाना ?
और कौन हमें मनाता है। 
मनाना तो छोड़िये जनाब,
अरे हमें तो,
रूठने का भी,
अधिकार नहीं। 

(अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस १९ नवंबर पर रचित कविता)

Saturday, November 16, 2024

"नई कविता"

वक्त की आपा धापी में,
जब नई कवितायेँ,
नहीं लिख पाता हूँ मैं। 
तब कमरे के कोने में लगी,
कानिस पर रखी हुई,
पुरानी कविताओं की,
डायरी पर जमी,
धूल की परतों को,
फिर से साफ करके,
उसी जगह रख देता हूँ मैं। 
और इस तरह,
बिना लिखे ही,
डायरी के बचे हुए,
कुछ कोरे पन्नों पर,
फिर से एक नई कविता,
लिख देता हूँ मैं। 

Tuesday, June 18, 2024

"मरुस्थल.."

बातों ही बातों के,
फूल खिलते थे जहाँ। 
खामोशियों के मरुस्थल,
रह गए अब वहाँ। 

Tuesday, May 21, 2024

"माँ .."

सुकून से सो जाते हैं, 
बच्चे रात में,
माँ का लोरी सुनाना, 
बहुत ज़रूरी है। 
संवर जाती है, 
जिंदगी बच्चों की,
घर में एक माँ, 
बहुत ज़रूरी है। 

(अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे पर विशेष)

Friday, May 10, 2024

"मेहंदी.."

मेहंदी उसने हाथों में लगाई है,
और निखरे - निखरे हम हैं। 
फूल उसने गेसूओं में लगाए हैं,
और महके - महके हम हैं। 

Monday, March 25, 2024

"रंग कच्चे सारे.."

नकली बाज़ार के रंग कच्चे सारे,
फूल टेसू के अब कहाँ खिलते हैं। 
रंग से जो मन को इस दुनिया  में,
ऐसे लोग हमें अब कहाँ मिलते हैं। 

Monday, February 19, 2024

"संविदा.."

ज़िन्दगी की,
नौकरी में,
कुछ दर्द,
संविदा पर,
मिले थे मुझे। 
कुछ इस तरह,
मेरा साथ, 
भाने लगा उन्हें। 
धीरे धीरे,
वो दर्द सारे,
permanent हो गए। 
और छोड़कर अब,
जीते नहीं मुझे।  

Saturday, February 17, 2024

"व्हाट्सऐप स्टेटस.."

अब तुमसे,
बातें नहीं करता हूँ,
तो क्या। 
व्हाट्सऐप के,
स्टेटस पर,
गाने तो आज भी,
तुम्हारी पसंद के ही,
लगाता हूँ मैं। 
अकेले होकर भी,
तन्हा नहीं,
रहता हूँ मैं। 
पांच मिनट के,
उस गाने में फिर,
मीलों तुम्हारे संग,
चलता हूँ मैं। 

शेष फिर........ 

Tuesday, February 6, 2024

"अहमियत.."

वो हर दिन,
बहुत परेशां करता था मुझे। 
धीरे धीरे मैंने,
उसकी अहमियत ही,
कम कर दी ज़िंदगी से। 
मैं उसे भूलने लगा,
फिर सब ठीक होने लगा। 
अब मैं सुकूं से रहता हूँ,
और मेरा "दर्द" परेशां।