Friday, April 22, 2011

"आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने...."

आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
आखों में आंसू आने की अब कोई बात नहीं,
अपनों से ख़ुद को अलग कर लिया मैंने।
जिन चिरागों को जलाने में जल गया हाथ मेरा,
उन चिरागों को आज बुझा दिया मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
अब ना लगे दिल पर कोई चोट नई,
यह सोचकर , दिल को पत्थर कर लिया मैंने।
डूबती है तो डूब जाने दो मंझधार में,
तूफानों में अपनी कश्ती को उतार दिया मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।
ना रह पायेंगें आप सब के बिना ,
फिर भी यह कदम उठा लिया मैंने।
जिन दोस्तों की जान थे हम,
उन दोस्तों को आज छोड़ दिया हमने।
ऐ मेरे खुदा, अब तू ही बता क्या गुनाह किया था मैंने।
ऊँची- ऊँची इमारतों में रहने वालों के, कद हमेशा छोटे देखे मैंने।
आज एक किस्सा ख़त्म कर दिया मैंने।
अपने जिस्म से दिल को अलग कर दिया मैंने।

4 comments:

  1. ना रह पायेंगें आप सब के बिना ,
    फिर भी यह कदम उठा लिया मैंने।
    जिन दोस्तों की जान थे हम,
    उन दोस्तों को आज छोड़ दिया हमने।
    यह क्या किया दिल अपना निकल दिया ? बहुत खूब मुबारक हो

    ReplyDelete
  2. @ Sunil Kumar Ji : Ab Sara Kissa Hi Khatm Ho Gaya, Ab Dil Nahin Hai.....

    ReplyDelete
  3. Dil ko nikal kar jo nek kaam apne kiya haae vo taarife kaabil haae srimaan Raj.
    n dil hoga ,n kissa ?

    ReplyDelete
  4. @ Darshan Kaur Ji : Aapka Dil Se Sukriya, Aapko Kavita Pasand Aayi...

    ReplyDelete