वक्त की आपा धापी में,
जब नई कवितायेँ,
जब नई कवितायेँ,
नहीं लिख पाता हूँ मैं।
तब कमरे के कोने में लगी,
कानिस पर रखी हुई,
पुरानी कविताओं की,
डायरी पर जमी,
धूल की परतों को,
फिर से साफ करके,
उसी जगह रख देता हूँ मैं।
और इस तरह,
बिना लिखे ही,
डायरी के बचे हुए,
कुछ कोरे पन्नों पर,
फिर से एक नई कविता,
लिख देता हूँ मैं।
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