Thursday, November 21, 2024

"मेरी घड़ी"

वैसे तो मैं,
समय की,
बहुत कद्र करता हूँ। 
हर दिन हाथ में,
घड़ी पहनकर ही निकलता हूँ। 
घड़ी का समय भी,
ठीक ही रखता हूँ। 
फिर भी, 
ना जाने क्यों ?
कुछ दिनों में,
मेरी घड़ी का समय,
५ -१०  मिनट पीछे हो जाता है। 
फिर धीरे धीरे ,
और पीछे होने लगता है। 
ना जाने क्यों ? 
यूँ तो कई बार,
घड़ीसाज को,
अपनी घड़ी मैंने,
दिखाई भी थी। 
परन्तु उसको,
कोई कमी नज़र,
नहीं आई थी। 
सच कहूं तो,
"समय" के साथ मेरी,
 कभी बनी नहीं।
"समय" के साथ,
कभी नहीं चल पाया मैं। 
शायद ही कभी "समय" ने 
मेरा साथ दिया हो। 
मुझे याद नहीं। 
ना जाने क्यों ?
समय का साथ,
निभाना हो,
या किसी के साथ चलना हो,
हमेशा,
देर होती रही मुझसे। 
मोड़ थे बहुत,
और संकरे थे रास्ते। 
और मैं,
अकेले ही,
ज़िन्दगी का सफर,
तय करता रहा। 


(शेष फिर कभी )

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