गुमसुम सी है दिल की धडकनें ,
और खोयी-खोयी सी शाम है ।
तन्हाई है अब साथी मेरी,
आंसुओं में भीगी हुई सी शाम है ।
दो कदम चलकर ठहर गये उनके कदम ,
भीड़ भरे रास्तों पर अजनबी सी शाम है ।
गहराने लगा है अँधेरा अब उदासियों का ,
"राज" से बिछुड़ती हुई सी शाम है ।
ज़िन्दगी में अब साँसों का भरोसा नहीं,
रेत की तरह हाथों से फिसलती हुई सी शाम है ।
गुमसुम सी है दिल की धडकनें ,
और खोयी-
खोयी सी शाम है ।
bhut khubsurat aur bhut tanha ye shaam hai.... bhut acchi kavita hai...
ReplyDeleteShaam Ka Har Lamha Kisi Ke Naam Hai...
ReplyDeleteगुमसुम सी है दिल की धडकनें ,
ReplyDeleteऔर खोयी-खोयी सी शाम है ।
तन्हाई है अब साथी मेरी,
आंसुओं में भीगी हुई सी शाम है ... bahut achhi rachna
दो कदम चलकर ठहर गये उनके कदम ,
ReplyDeleteभीड़ भरे रास्तों पर अजनबी सी शाम है ...!
बम्बई जेसी नगरी में --इतनी शिद्धत से लिखी कविता --कहते है की इस नगरी मै दिल नही होता ...?
मेरे ब्लोक पर आपका स्वागत है ...
@ Rashmi Prabha Ji : Aapka Bahut Bahut Aabhar.. Jo Mehsoos Karta Hun , Bas Vahi Likhne Ki Koshish Karta Hun...
ReplyDelete@ Darshan Kaur Ji : मेरे ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है ... यह सच्चे दोस्तों का शहर है ..., बस महसूस करने की बात है .... यहाँ सब मेरा बहुत ख्याल रखते हैं.... यह सपनों का शहर "अपनेपन" का अहसास लिए है ...यह अपनों का शहर है ..
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