I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Tuesday, January 18, 2011
"कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।"
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
लिखा है - छोटा भाई मेरा कहना मानने लगा है।
पहले आपकी उँगलियाँ पकड़कर चलते थे हम दोनों,
अब वह , मेरी ऊँगली पकड़कर चलने लगा है।
आपके पीछे हम कम झगड़ते हैं , सारे बातें ख़ुद ही निबटातें हैं।
हमे मालूम है, मम्मी हमारी शाम को किससे शिकायत करेगी ?
और यहाँ सब ठीक है मगर, मम्मी कभी-कभी बहुत उदास हो जाती है।
यूँ तो हँसा देते हैं हम उनको मगर,
तकिये में चेहरा छिपा कर फिर वो सो जाती हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
जब कभी चाचू , दादा जी का कहना नहीं मानते हैं,
उस दिन आप , सबको बहुत याद आते हैं।
आप थे तो आँगन में रखे पौधे भी,हर मौसम में हरे भरे रहते थे।
आप नहीं तो इन बरसातों में भी, सारे फूल मुरझाये से रहते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
वैसे तो आपकी "बाइक" चलाना सीख गया हूँ मगर,
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं।
स्कूल की फीस , ख़ुद जमा कर देता हूँ
"रिपोर्ट कार्ड" पर भी मम्मी साइन कर देतीं हैं मगर,
"पेरेंट्स मीटिंग्स" में आप बहुत याद आते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर.......
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
और पापा , कल तो "एच पी" की गैस भी बुक कराई मैंने
यूँ तो टेलीफोन और बिजली का बिल भी जमा कर सकता हूँ
मगर, घर से ज्यादा दूर मम्मी भेजती नहीं हैं।
यूँ तो मम्मी हर चीज दिला देती हैं, कभी-कभी हम जिद कर जाते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर ........
"डेरी मिल्क " अब कम खा पाते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
अक्सर , देर रात फ़ोन आपका आता है ।
हम जल्दी सो जाते हैं , मम्मी सुबह बताती हैं।
कभी दिन में भी फ़ोन किया करो, बच्चों की बातें सुना करो।
अच्छा , यह लिखना पापा अब कब आओगे ?
होली पर घर आ जाना ।
मम्मी को "रंग" अब नहीं भाते हैं।
"रंग" तो आप ही दिलाना।
होली पर घर आ जाना ।
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अच्छी भावनाएँ व्यक्त की हैं आपने.
ReplyDeleteNice Poem :)
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