अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।
तन तो भीगा खूब मगर, मन रहा प्यासा मेरा पहले की तरह।
पेड़ों पर लगे सावन के झूलों को खाली ही झुलाते रहे,
उन बारिशों से इन बारिशों तक इंतज़ार हम करते रहे।
वो ना आए इस बार भी मगर पहले की तरह ।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।
वो साथ नहीं हैं यूँ तो , कोई गम नहीं है मुझको ।
मुस्कराहटें "राज" की नहीं हैं अब मगर पहले की तरह।
यूँ तो कई फूल चमन में, खिल रहे हैं आज भी मगर ।
खुशबू किसी में नहीं है जो, पागल कर दे मुझको पहले की तरह।
अब के भी बरसीं हैं बारिशें फिर पहले की तरह ।
ab ke sawan me hui,kuch aisi barsaat..
ReplyDeletebadal barse do ghari, naina saari raat..!!! bhut khubsurat rachna hai...
Thanks A Lot Sushma ji....Regards..
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