आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
बारिशों के मौसम में भी अब कविता नहीं बनती ।
कोई कह दे उनसे जाकर , मैं उनका हो नहीं सकता ।
मेरी हथेलियों में अब मिलन की लकीरें नहीं बनती।
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
ख़ुद ही रचा था मैंने , अपनी तबाही का मंजर ।
आंसुओं से भरी आँखें , गवाह बनी थी मेरी ।
दिल पर पत्थर रख कर जब , तुमको रुखसत किया था मैंने।
क्यों निगाहें आज फिर , तुम्हारा इंतज़ार हैं करतीं ?
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
बारिशों के मौसम में भी अब कविता नहीं बनती ।
कोई कह दे उनसे जाकर , मैं उनका हो नहीं सकता ।
मेरी हथेलियों में अब मिलन की लकीरें नहीं बनती।
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
ख़ुद ही रचा था मैंने , अपनी तबाही का मंजर ।
आंसुओं से भरी आँखें , गवाह बनी थी मेरी ।
दिल पर पत्थर रख कर जब , तुमको रुखसत किया था मैंने।
क्यों निगाहें आज फिर , तुम्हारा इंतज़ार हैं करतीं ?
आजकल मुझसे मेरे शब्दों की नहीं बनती ....
shabdo se nhi banti na sahi par bhut khbsurat shabdo se ye rachna to jarur ban gayi....!!!
ReplyDelete@ Sushma ji : Sach, Aajkal Shabd Mera Sath Nahi De Rahe Hain... Yahi Shabd Ab Dushman Ho Gaye Hai Mere... Aapko Kavita Pasand Aayi, Dil Se Shukriya...
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