Sunday, June 26, 2011

"जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ..."




माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
याद है मुझको बचपन में ,
जब नींद नहीं मुझको आती थी ,
तुम्ही तो लोरी गाकर ,
मुझको रोज सुलातीं थीं।
धीरे - धीरे समय बीत गया,
वक्त की आपा-धापी में ,
लोरियां सब भूल गया।
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में ,
नींदें मुझसे रूठ गयीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
माना , यह वक्त लोरियों का नहीं है...
चक्रव्यहू से निकलना मगर,
मुझको आता नहीं है।
याद है मुझको बचपन में ,
बिना कहे ही सब पहचान लेतीं थी,
क्यों परेशान हूँ मैं ,
सब कुछ जान लेती थीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
नींदों में स्वप्न सलोने दे जाना।

4 comments:

  1. @ Sushma Ji: Shukriya...
    Zindagi, Har Roz Ek Naya Sawaal Lekar Aati Hai, Aakhon Me Ab Neend Nahi Aati Hai...

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  2. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति बधाई आपको और हम तो यही कहेंगे माँ तुझे सलाम ...

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  3. @ Sunil Ji : Maa To Bas Maa Hai...Maa Tujhe Salaam ... Aapka Dil Se Shukriya...

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