Sunday, June 12, 2011

"मेरी आखों पर पहरे हैं ..."

तुम्हारी यादों के आंसू,
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।

2 comments:

  1. @ Sushma ji : Thanks .....
    "भीगने की जब आदत हो गयी,
    चार दिन बरस कर बारिशें थम गयीं "

    ReplyDelete