Friday, September 19, 2014

"ऐ - बारिशों.."

बिन बुलाये मेहमान की तरह ,
हर रोज़ चली आती हो,
मेरी प्रिय बारिशों,
अब तो लौट जाओ जरा।

शलभ गुप्ता "राज"
मुंबई