Sunday, May 30, 2010

* * * * * * * * अधूरे प्रश्न * * * * * * * *



"मत सुनो आज कोई कविता मुझसे, सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो
क्यों सुनाता हूँ मै कविता तुम्हें, ख़ुद से आज पूछने दो
कभी- कभी लगता है, प्रश्नों की किताब है ज़िन्दगी
जिंदगी के सारे प्रश्नों को आज मुझसे हल करने दो,
ना जाने कैसी यह किताब है जिंदगी की ?
सारे प्रश्न हल भी ना हो पाते है, कुछ नए प्रश्न हर बार जुड़ जाते हैं
कहाँ से आते है यह प्रश्न , किस्सा सारा आज मुझे समझने दो
मत सुनो आज कोई कविता मुझसे, सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो
यहाँ छोटे प्रश्नों के उत्तर भी , पूरे विस्तार से लिखने होते हैं
खाली स्थान वाले प्रश्नों मै भी , सही शब्द ही भरने होते हैं
यूँ तो आने वाले नए प्रश्नों के भी सारे उत्तर हैं मेरे पास
मगर पहले , अधूरे प्रश्नों को आज मुझे हल करने दो
मत सुनो आज कोई कविता मुझसे, सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो ।"

Wednesday, May 26, 2010

"एक नयी कहानी लिखेंगें ज़रूर ....."



गुलशन, गुलज़ार है कलियों से...
फूल खिलेंगे ज़रूर।
यकीन है पूरा मुझको,
ब्लॉग के सब साथी ,
एक दिन मिलेंगें ज़रूर।
अपनेपन का अहसास लिये,
फूलों की नाज़ुक कलियाँ,
सब मिल कर,
एक नयी कहानी लिखेंगें ज़रूर ।
खिल जाएँ फूल,
तो आप सब , बस इतना करना।
उन फूलों को संभाल कर,
अपने दिल की किताब में रखना।
यकीन है पूरा मुझको,
ता-उम्र उस किताब से,
खुशबू आयेगी ज़रूर।

Sunday, May 23, 2010

"खुले मन से सबसे मिलना चाहिये..."



सिर्फ विस्तार ही नहीं,
गहराई भी चाहिये ।
कहना ही पर्याप्त नहीं,
बातों में असर भी चाहिये।
चारों ओर दीवार बनाकर ,
बैठने से कुछ नहीं हासिल
सीमाओं से पार आकर,
नदिया जैसा उन्मुक्त बहना चाहिये।
अनन्त प्रेम पाने के लिए,
खुद को भी असीम बनना चाहिये।
हटा दो सब दीवारें,
तोड़ दो मन के बंधन सारे ...
खुले मन से सबसे मिलना चाहिये।
कल्पनाओं को सार्थक रूप देना है अगर,
निरर्थक सोच से बाहर आना चाहिये।
"राज", जीवन में सबको अपना बनाना है अगर...
"पोखर" नहीं , "महासागर" बनना चाहिये।

Friday, May 21, 2010

"एक नन्हीं सी परी घर में आयी है .."



आसमान से,
एक नन्हीं सी परी घर में आयी है।
अपने संग-संग,
खुशियाँ हज़ार लायी है।
मुस्कराहटों के फूलों से ,
महकता रहे आँगन,
किलकारियों की सरगम से ,
सुरमय रहे घर का आँगन,
मनोज जी और अंजुली जी के लिए,
वो नन्हीं सी प्यारी गुडिया,
खुशहाल लम्हों की असीम सौगात लायी है।
शुभकामनायें और शुभ आशीर्वाद है हमारा ,
ऐसा लगता है वो लाडली बिटिया ,
मानों , हमारे ही घर आयी है।
सारे परिवार को मेरी ओर से ,
लख-लख बधाई है।

Thursday, May 20, 2010

"यादों की धुंधली तस्वीरें हैं ..."



"यादों की धुंधली तस्वीरें हैं।
बस तस्वीरें ही तस्वीरें हैं।
मिलना और बिछुड़ जाना ,
अपनी-अपनी तकदीरें हैं।"

Tuesday, May 18, 2010

"इस शहर के लोग मुझे ......"

"इस शहर के लोग मुझे,
प्यार बहुत करते हैं।
जब भी मिलते हैं मुझसे,

खुले दिल से मिलते हैं।
क्यों ना करूँ मैं हर पल ,

अब ख्याल उन सबका,
अच्छे लोग इस दुनिया में,

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। "

Friday, May 14, 2010

"हम दुनिया, ऐसी एक नई बना दें ...."

"अगर यही दस्तूर है दुनिया का,
आओ, मिलकर यह दस्तूर मिटा दें।
बस प्यार ही प्यार हो दुनिया में ,
हम दुनिया, ऐसी एक नई बना दें। "

Sunday, May 9, 2010

"माँ" सिर्फ एक शब्द नहीं,


"माँ" सिर्फ एक शब्द नहीं,
सम्पूर्ण जीवन का वृतांत है।
उससे ही है हमारा अस्तित्व ,
संसार में एक पहचान है।
हर दिन उनके लिए ख़ास है,
"माँ" का साथ, जिनके पास है।
माँ के लिए , एक ही दिन नहीं,
सारा जीवन उनके नाम है।
उससे ही है हमारा अस्तित्व ,
संसार में एक पहचान है।

Wednesday, May 5, 2010

"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे ....."



"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,
आँगन के पौधे बहुत याद आने लगे,
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
सूरज की तेज तपन में थोड़े झुलसे तो होंगे,
बारिशों के मौसम में बहुत भीगे तो होंगे,
जाडों की सर्द हवाओं में भी स्कूल गए तो होंगे।
लगता है वक्त की आग में तप कर ,
अब तो "सोना" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
वो मुझे बहुत याद करते तो होंगे,
कलेंडर को बार-बार देखते तो होंगे।
आंखों से आंसू थम तो गए होंगे,
लोरियों के बिना ही, अब सो जाते तो होंगे।
पर शायद कभी -कभी रातों को, वो जागते तो होंगे।
आँधियों का सामना वो करते तो होंगे,
पतझड़ के मौसम में तोडे टूटते तो होंगे,
बसंत ऋतू में हर तरफ़ महकते तो होंगे।
लगता है हर मौसम में ढल कर अब तो,
मेरे लिए "कल्पवृक्ष" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
नाज़ुक सी टहनियों पर नन्ही-नन्ही पत्तियां,
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ
उनकी खुशियों में सब खुश तो होंगे,
सारी बातों को अब वो समझते तो होंगे।
लगता है जिन्दगी के इम्तहान में पास होकर,
मेरे लिए "कोहिनूर" बन गए होंगे । "

Saturday, May 1, 2010

"मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई ...."

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
मन के आँगन में गूंज रहे साज़ नए संगीत के,
दिल की दहलीज़ पर आकर दस्तक दे गया कोई।
धीरे- धीरे से चलकर, दबे पाँव करीब आकर
छ्म से पायल बजा गया कोई।
ख़ुद को भी हम लगने लगे अच्छे अब तो,
बार-बार आईने में चेहरा देख रहा कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
ज़िन्दगी की तेज तपन में,
बादल बनकर बरस गया कोई।
खोये- खोये से लम्हों को यादगार बना गया कोई।
कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
इतना घुल-मिल गया कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।