Saturday, October 30, 2021

"कुछ पंक्तियाँ .."

[१]
ज़िंदा हूँ, इसीलिए लिखता हूँ। 
लिखता हूँ, तभी तो ज़िंदा हूँ। 
[२]
कुछ घाव ऐसे होते हैं,
जो दिखते भी नहीं हैं। 
जीवन भर कभी मगर,
फिर भरते भी नहीं हैं। 

Wednesday, October 27, 2021

"खुशियां"

क्या ढूंढने आए हो तुम।
चकाचौंध रोशनी से भरे,
इस नकली बाज़ार में।
शायद "खुशियां" !
घर, कार, बाइक, मोबाइल !
बहुत सस्ती होती हैं, यह "खुशियां"।
आजकल किश्तों पर,
मिल जाती हैं बाज़ार में।
मगर बहुत कीमती होते हैं "आंसू",
उनको खरीदना, 
हर किसी के बस की बात नहीं।
किसी का दर्द बांट सको अगर,
किसी की खुशियों की वजह,
अगर तुम बन सको "शलभ",
तो ही तुम सच्चे खरीदार हो।
सच्चे अर्थों में इंसान हो।

Tuesday, October 26, 2021

"चाँद.."

कल बहुत नखरे थे चाँद के,
बहुत देर तक दिखाई दिए नहीं। 
आज तन्हा रह गए आसमान में,
और देखने वाला कोई नहीं। 
(दिनांक : २५ अक्टूबर २०२१, 
करवाचौथ से बाद, रात्रि का चाँद)

"किसी के दिल में.."

फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर,
हज़ारों लोग साथ भी हैं तो क्या,
अगर आप किसी के दिल में नहीं हैं,
तो फिर आप कुछ भी नहीं हैं। 

" इश्क़ की गुनगुनी धूप.."

तेरे वास्ते, इश्क़ की गुनगुनी धूप लाया हूँ। 
सुना है, तेरे दिल का मौसम सर्द बहुत है। 

Friday, October 22, 2021

"दरिया.."

दरिया का पानी,
एक दो दिन में उतर जायेगा। 
कुछ आँखों में मगर,
उम्र भर के लिए ठहर जायेगा। 

Tuesday, October 19, 2021

"आंसू.."

कल शाम बारिश से,
कुछ बूँदें उधार ली थी मैंने। 
पथराई आँखों के वास्ते,
उनसे आंसू बना लिए मैंने। 

Monday, October 18, 2021

"सफर.."

ज़िन्दगी में,
बड़ों का आशीर्वाद,
और सफर में,
घर का बना खाना,
बहुत काम आता है। 

"इतवार.."

बारिश तो बहुत है सफर में,
मगर इंद्रधनुष एक भी नहीं।  
इतवार तो बहुत हैं ज़िन्दगी में,
"शलभ" की छुट्टी एक भी नहीं। 

Monday, October 11, 2021

"लोग.."

बहुत खुशनसीब,
होते हैं वो लोग,
जो "घर" में रहते हैं।
ना जाने कैसे, 
जीते हैं वो लोग,
जो "मकानों" में रहते हैं। 

Tuesday, October 5, 2021

"इसी बहाने.."

फेसबुक, व्हाट्सएप , इस्टाग्राम,
आपके डाउन होने का शुक्रिया। 
घर के सदस्यों की एक दूसरे से,
इसी बहाने कुछ देर बात तो हुई। 

Monday, October 4, 2021

"यादों के कारवां.."

शायद, गलत कहते हैं लोग,
कि समय के साथ,
यादें भी धुँधली हो जाती हैं। 
यादों की उम्र तो,
जीवन से भी ज्यादा होती है। 
कुछ बातें कुछ यादें,
उम्र भर साथ रहती हैं। 
कई बार तो कुछ यादें,
कई जन्मों तक साथ निभाती हैं। 
याद भी वो ही आते हैं अक्सर,
तो हमसे बिछुड़ जाते हैं। 
और जब तक मिलते नहीं,
यादों के कारवां संग चलते हैं। 
जन्म जन्मांतर के रिश्ते हैं,
किसी ना किसी जन्म में,
वो लोग फिर ज़रूर मिलते हैं। 
सही कहा ना मैंने, है ना !
(शेष फिर..)

Saturday, October 2, 2021

"रोटी की कविता.."

पिता जी ठीक कहते थे,
कविता से पेट नहीं भरता। 
गोल, चौकोर या तिकोनी,
थोड़ी जली हुई भी चलेगी,
पेट भरता है बस रोटी से। 
भूखे पेट कविता लिखना,
जैसे आग पर चलना। 
कविता चाहे कितनी भी,
अच्छी क्यों ना  लिखी हो। 
खाली पेट कविता "शलभ",
अब अच्छी नहीं लगती। 
ना ही सुनने वाले को,
ना ही सुनाने वाले को।