Wednesday, November 30, 2016

"मुस्कराहटें..

बचपन के सुनहरे लम्हों को जी लो भरपूर,
बड़े होकर मासूम मुस्कराहटें हो जाती है बहुत दूर ।

Tuesday, November 22, 2016

"सांझ..."

सांझ ढले घर जाता सूरज ।
मुझको बहुत याद आता सूरज ।
कल आने का वादा करके,
हौले-हौले दूर जाता सूरज ।

Monday, November 21, 2016

"कश्ती.."

लहरों की भी हम कहाँ सुनते हैं ।
बहुत मुश्किल है हमको समझाना ।
अपनी तो आदत है तूफानों से टकराना ।
भवंर से भी कश्ती को निकाल ले जाना ।

Thursday, November 17, 2016

"ख़ामोशी"

हरे भरे पत्तों में वह बात कहाँ,
रास्ते की ख़ामोशी तो ,
सूखे पत्ते ही तोड़ सके।

Tuesday, November 8, 2016

"दीप..."



बनावटी रोशनियों की चकाचोंध में, 
कुछ भी दिखाई नहीं देता,
प्रेम का एक ही दीप काफी है, 
उम्र भर रौशनी देने के लिये।  
(शलभ गुप्ता "राज")