I am Shalabh Gupta from India. Poem writing is my passion. I think, these poems are few pages of my autobiography. My poems are my best friends.
Thursday, September 28, 2017
"विश्व हृदय दिवस - 29 सितम्बर 2017"
एक दिन अपने दिल से होकर नाराज़,
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल ना परेशान कर, और धडकना छोड़ दे।
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल ना परेशान कर, और धडकना छोड़ दे।
दिल बोला बड़े इत्मीनान से ,
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना
"शलभ" प्यार करना, तू जिस दिन छोड़ दे।
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना
"शलभ" प्यार करना, तू जिस दिन छोड़ दे।
© ® शलभ गुप्ता
29 सितम्बर 2017
विश्व हृदय दिवस की आप सभी को बधाई।
Monday, September 25, 2017
Sunday, September 24, 2017
Monday, September 18, 2017
"बड़े बेटे का खत.."
आत्मकथा के कुछ पन्नों पर, मैंने कुछ कवितायेँ भी लिखी हैं। उन कविताओं में से, लगभग 10 वर्ष पूर्व लिखी एक कविता, आपके लिए। मुंबई की कई काव्य गोष्ठियों और मंचों पर इस कविता को मेरे द्वारा सुनाया भी गया। अब तो, दोनों बेटे भी बड़े हो गए हैं।
सूरत शहर की पावन धरती को भी नमन करता हूँ, जहाँ रहकर मैं, इस कविता का सृजन कर पाया।
इस कविता का शीर्षक है "बड़े बेटे का खत" !
लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
लिखा है - छोटा भाई मेरा कहना मानने लगा है।
पहले आपकी उँगलियाँ पकड़कर चलते थे हम दोनों,
अब मेरी ऊँगली पकड़कर वो चलने लगा है।
आपके पीछे हम कम झगड़ते हैं ,
लिखा है - छोटा भाई मेरा कहना मानने लगा है।
पहले आपकी उँगलियाँ पकड़कर चलते थे हम दोनों,
अब मेरी ऊँगली पकड़कर वो चलने लगा है।
आपके पीछे हम कम झगड़ते हैं ,
सारे बातें ख़ुद ही निबटातें हैं।
हमे मालूम है मम्मी हमारी,
हमे मालूम है मम्मी हमारी,
शाम को किससे शिकायत करेगी ?
और यहाँ सब ठीक है मगर,
और यहाँ सब ठीक है मगर,
मम्मी कभी-कभी बहुत उदास हो जाती है।
यूँ तो हँसा देते हैं हम उनको मगर,
तकिये में चेहरा छिपा कर फिर वो सो जाती हैं।
जब कभी चाचू, दादा जी का कहना नहीं मानते हैं,
उस दिन आप, सबको बहुत याद आते हैं।
आप थे तो आँगन में रखे पौधे भी,
यूँ तो हँसा देते हैं हम उनको मगर,
तकिये में चेहरा छिपा कर फिर वो सो जाती हैं।
जब कभी चाचू, दादा जी का कहना नहीं मानते हैं,
उस दिन आप, सबको बहुत याद आते हैं।
आप थे तो आँगन में रखे पौधे भी,
हर मौसम में हरे भरे रहते थे।
आप नहीं तो इन बरसातों में भी,
आप नहीं तो इन बरसातों में भी,
सारे फूल मुरझाये से रहते हैं।
वैसे तो आपकी "बाइक" चलाना सीख गया हूँ मगर,
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं।
स्कूल की फीस, ख़ुद जमा कर देता हूँ
"रिपोर्ट कार्ड" पर भी मम्मी साइन कर देतीं हैं मगर,
"पेरेंट्स मीटिंग्स" में आप बहुत याद आते हैं।
और पापा, कल तो गैस भी बुक कराई मैंने।
यूँ तो बिजली का बिल भी जमा कर सकता हूँ।
मगर, घर से ज्यादा दूर मम्मी भेजती नहीं हैं।
यूँ तो मम्मी हर चीज दिला देती हैं,
वैसे तो आपकी "बाइक" चलाना सीख गया हूँ मगर,
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं।
स्कूल की फीस, ख़ुद जमा कर देता हूँ
"रिपोर्ट कार्ड" पर भी मम्मी साइन कर देतीं हैं मगर,
"पेरेंट्स मीटिंग्स" में आप बहुत याद आते हैं।
और पापा, कल तो गैस भी बुक कराई मैंने।
यूँ तो बिजली का बिल भी जमा कर सकता हूँ।
मगर, घर से ज्यादा दूर मम्मी भेजती नहीं हैं।
यूँ तो मम्मी हर चीज दिला देती हैं,
कभी-कभी हम जिद कर जाते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर ,
"डेरी मिल्क" अब कम खा पाते हैं।
अक्सर, देर रात फ़ोन आपका आता है ।
हम जल्दी सो जाते हैं, मम्मी सुबह बताती हैं।
कभी दिन में भी फ़ोन किया करो,
और यहाँ सब ठीक है मगर ,
"डेरी मिल्क" अब कम खा पाते हैं।
अक्सर, देर रात फ़ोन आपका आता है ।
हम जल्दी सो जाते हैं, मम्मी सुबह बताती हैं।
कभी दिन में भी फ़ोन किया करो,
बच्चों की बातें सुना करो।
अच्छा, यह लिखना पापा अब कब आओगे ?
दीपावली पर घर आ जाना ।
मम्मी जी को पटाखों से डर लगता है।
अच्छा, यह लिखना पापा अब कब आओगे ?
दीपावली पर घर आ जाना ।
मम्मी जी को पटाखों से डर लगता है।
पटाखे तो आप ही दिलाना।
दीपावली पर घर आ जाना ।
दीपावली पर घर आ जाना ।
@ शलभ गुप्ता
Saturday, September 16, 2017
Friday, September 15, 2017
Thursday, September 14, 2017
"मेरी आखों पर पहरे हैं .."
तुम्हारी यादों के आंसू,
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
मेरी पलकों पर आकर ठहरे हैं ।
बरस नहीं सकते मगर,
मेरी आखों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
जुदा हुये थे जिस मोड़ पर,
हम आज तक वहीं ठहरे हैं ।
किस तरह याद करें तुमको,
मेरी हिचकियों पर पहरे हैं ।
"राज" बहुत गहरे हैं ।
@ शलभ गुप्ता "राज"
कुछ वर्ष पूर्व लिखी एक कविता
Monday, September 11, 2017
Sunday, September 10, 2017
Friday, September 8, 2017
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