Monday, December 28, 2009

"यदि आँखों में किसी की, कोई नमी नहीं हैं।"



यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं हैं।

Wednesday, December 23, 2009

"उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं..."



यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
एक तारा हूँ टूटा हुआ,
किसी की मुराद बन जाऊं मैं।
हालातों की तेज़ तपन में ,
किसी पथिक के लिए ,
शीतल पवन बन जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
किसी की पथरायी आँखों में,
आंसू बन कर बरस जाऊं मैं।
चाहे अगले ही पल, मिट जाऊं मैं।
इस दुश्मन दुनिया में,
जो समझे मुझे सच्चा दोस्त अपना,
उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।

Tuesday, December 15, 2009

"माँ, एक बार फिर से मुझको लोरी सुनाकर, सुला जाना"



माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
याद है मुझको बचपन में ,
जब नींद नहीं मुझको आती थी ,
तुम्ही तो लोरी गाकर ,
मुझको रोज सुलातीं थीं।
धीरे - धीरे समय बीत गया,
वक्त की आपा-धापी में ,
लोरियां सब भूल गया।
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में ,
नींदें मुझसे रूठ गयीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
माना , यह वक्त लोरियों का नहीं है...
चक्रव्यहू से निकलना मगर,
मुझको आता नहीं है।
याद है मुझको बचपन में ,
बिना कहे ही सब पहचान लेतीं थी,
क्यों परेशान हूँ मैं ,
सब कुछ जान लेती थीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
नींदों में स्वप्न सलोने दे जाना।

Sunday, December 13, 2009

"हर साँस मेरी , एक ऐसी कहानी लिख रही ..."



यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
संकरा हुआ रास्ता हर मोड़ पर,
कदमों की गति निरंतर,
मंजिल की ओर बढ़ रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
जीवन की मेरी गलतियाँ,
मेरा संबल बन रहीं।
मेरे पैरों के छालों को,
अब धरती भी अनुभव कर रही।
रास्ते की हर ठोकर,
"राज" को और भी निखार रही।
याद रहेगी दुनिया को सदियों तक,
हर साँस मेरी ,
एक ऐसी कहानी लिख रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।

Saturday, December 12, 2009

"तितलियों को उड़ने दिया करो ...."



तितलियों और फूलों को तुमको,
अपनी diary में रखना अच्छा लगता है।
मगर,
यह मुझको ठीक लगता नहीं,
बंधनों में मत बांधों किसी को,
जिंदा ही मत मारो किसी को,
तितलियों को उड़ने दिया करो,
फूलों को महकने दिया करो।
क्योंकिं diary में रखने पर,
इन्द्रधनुषी तितलियाँ हो जाती हैं बेरंग,
फूल खो देते हैं अपनी सुगंध।
खामोश तितलियाँ , मुरझाये फूल ...
देखकर हम उदास हो जाते हैं।
चाह कर भी , हम फिर उन्हें
जीवित नहीं कर सकते ।
इसीलिए ,
मेरा अनुरोध स्वीकार करो,
तितलियों को उड़ने दिया करो।
फूलों को महकने दिया करो।

Thursday, December 10, 2009

"दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा..."



दोस्ती का नया रिवाज़ देखा ।
दुश्मनों के हाथ में गुलाब देखा।
भरी महफ़िल में उसने हाथ मिलाया मगर,
दिल में उसके बहुत फासला देखा।
ख़ुद ही झुक गयीं नज़रें उसकी ,
आईने में जब उसने अपना चेहरा देखा।
अब ना करेगें भरोसा किसी पर,
कई बार ख़ुद को , ख़ुद से यह कहते देखा।
घाव भरते भी , तो भरते किस तरह ...
दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा।

Tuesday, December 8, 2009

"कैक्टस में भी तो , फूल मुस्कराते हैं ..."



कैक्टस में भी तो , फूल मुस्कराते हैं।
ज़रा सी परेशानियों में ही लोग,
हिम्मत हार जाते हैं ।
किनारे बैठे रहने से कुछ नहीं हासिल,
विरले ही समुन्दर पार जाते हैं।

Saturday, December 5, 2009

"स्रष्टि का नियम यही है........"



एक पत्ता पेड़ से टूट कर,
धरती की ओर आ रहा।
हवा के रुख को भांप रहा।
प्रश्न उठ रहे उसके मन में,
यह हवा कहाँ ले जायेगी मुझको,
या फिर पेड़ के ही पास गिरूंगा।
अकेलापन कैसे सह पाऊंगा ?
मैं तो अपने पेड़ के ही संग रहूँगा।
बंधनों से मुक्त होकर भी ना जाने ,
किन बंधनों में बंधा है ?
टूटा पत्ता , ना समझ है ।
व्यर्थ ही शोक में डूबा है।
अरे पगले !
स्रष्टि का नियम यही हैं ।
जीवन की रीत यही है।
बिछुड़ने का तू दुःख ना कर ।
इसी माटी में जन्मा है तू ,
और इसी में मिल जाना है।
मिलने - बिछुड़ने का यह क्रम,
अनवरत चलते जाना है।
फूलों का संग तुझको ,
एक दिन, फिर से पाना है।
"नया पत्ता" बनकर तुझको,
फिर से, इसी पेड़ पर आना है।

Thursday, December 3, 2009

"आने वाले कल के लिए, नई इबारत लिख रहा .."

रात का आखरी प्रहर है,
तेज़ी से गुज़र रहा।
आने वाले कल के लिए,
नई इबारत लिख रहा।
इस भागती - दौड़ती दुनिया में ,
हर इंसान अपना मुकाम तलाश रहा ।
"राह" का पत्थर था जो अब तलक,
अब "मील" का पत्थर बन रहा ।

Wednesday, December 2, 2009

"ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ ...."

सर्वप्रथम , इस कविता के माध्यम से...
आपको सादर नमन करता हूँ।
आपकी "प्रतिक्रियाओं" के संग्रह के सन्दर्भ में ,
अपने मन के कुछ उदगार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।

एक-एक करके बड़ी लगन से ,
आपके विचारों की महकती बगिया से ,
गुलाब की पंखुड़ियों से अधिक नाजुक ,
मेरी भावनाओं से अधिक भावुक,
आपके प्रेरणादायी शब्दों के फूल चुनता हूँ।
उन महकते हुए फूलों से फिर मैं ,
अपनी कविताओं का श्रंगार करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।
मेरे जीवन के लिए मार्गदर्शक बनीं,
आपके द्वारा व्यक्त की गयीं ,
"संजीवन अभिव्यक्तियों" के प्रति,
प्रत्येक पल मैं आपका,
कोटि-कोटि आभार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।