Monday, June 27, 2022

"रेत पर नाम.."

मेरे दिल में,
धड़कता है,
यह शहर तेरा। 
सांझ ढले,
मुझसे मिलने,
समुन्दर किनारे,
आ जाना। 
लहरों ने,
संभालकर रखा है,
आज भी,
रेत पर नाम मेरा।   


Thursday, June 23, 2022

"ज़िन्दगी.."

जिसको,
ठोकर खाकर,
संभलना आ गया।  
समझो उसको,
ज़िन्दगी,
जीना आ गया।  

"अपना कुछ भी नहीं.."

"शरीर" माता पिता का,
"आत्मा" परमात्मा की। 
उपहार में मिले,
पैंट  - शर्ट के,
कपड़े सिलवाकर,
बड़े बेटे द्वारा, 
मेरे लिए,
ऑनलाइन मंगवाए,
नए एक जोड़ी,
जूतों को पहनकर,
बन गए हम बाबू जी। 
अपना कुछ भी नहीं।   

Wednesday, June 8, 2022

"पूरे 27 बरस बाद.."

भवाली, भीमताल यात्रा की बातें और यादें 
इन पंक्तियों में : (5 जून 2022)

आये हो कितने बरस बाद,
इन पहाड़ों ने पूछा मुझसे। 
आया हूँ पूरे 27 बरस बाद,
हिसाब लगाकर कहा उससे। 



"अपनों के गांव में.."

भवाली, भीमताल यात्रा की बातें और यादें 
इन पंक्तियों में : (5 जून 2022)
[१] 
इन पहाड़ों से रिश्ते मेरे बड़े पुराने हैं। 
सफर के रास्ते सारे जाने पहचाने हैं। 
[२]
ज़िन्दगी के सारे गुलाब देकर उसे,
कैक्टस सारे अपने नाम कर लिए। 
[३]
शहर के कोलाहल से दूर, पेड़ों की ठंडी छाँव में। 
चलते चलते आ ही गए हम, अपनों के गांव में।