Monday, December 28, 2009

"यदि आँखों में किसी की, कोई नमी नहीं हैं।"



यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं हैं।

Wednesday, December 23, 2009

"उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं..."



यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
एक तारा हूँ टूटा हुआ,
किसी की मुराद बन जाऊं मैं।
हालातों की तेज़ तपन में ,
किसी पथिक के लिए ,
शीतल पवन बन जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।
किसी की पथरायी आँखों में,
आंसू बन कर बरस जाऊं मैं।
चाहे अगले ही पल, मिट जाऊं मैं।
इस दुश्मन दुनिया में,
जो समझे मुझे सच्चा दोस्त अपना,
उसके लिए हद से भी गुज़र जाऊं मैं।
यूँ ही गुज़र रही है ज़िन्दगी,
किसी काम आ जाऊं मैं ।

Tuesday, December 15, 2009

"माँ, एक बार फिर से मुझको लोरी सुनाकर, सुला जाना"



माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
याद है मुझको बचपन में ,
जब नींद नहीं मुझको आती थी ,
तुम्ही तो लोरी गाकर ,
मुझको रोज सुलातीं थीं।
धीरे - धीरे समय बीत गया,
वक्त की आपा-धापी में ,
लोरियां सब भूल गया।
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में ,
नींदें मुझसे रूठ गयीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
माना , यह वक्त लोरियों का नहीं है...
चक्रव्यहू से निकलना मगर,
मुझको आता नहीं है।
याद है मुझको बचपन में ,
बिना कहे ही सब पहचान लेतीं थी,
क्यों परेशान हूँ मैं ,
सब कुछ जान लेती थीं।
माँ , एक बार फिर से मुझको
लोरी सुनाकर , सुला जाना ।
जागती आखों में निंदियाँ दे जाना ।
नींदों में स्वप्न सलोने दे जाना।

Sunday, December 13, 2009

"हर साँस मेरी , एक ऐसी कहानी लिख रही ..."



यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
संकरा हुआ रास्ता हर मोड़ पर,
कदमों की गति निरंतर,
मंजिल की ओर बढ़ रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।
जीवन की मेरी गलतियाँ,
मेरा संबल बन रहीं।
मेरे पैरों के छालों को,
अब धरती भी अनुभव कर रही।
रास्ते की हर ठोकर,
"राज" को और भी निखार रही।
याद रहेगी दुनिया को सदियों तक,
हर साँस मेरी ,
एक ऐसी कहानी लिख रही।
यात्रा अनवरत चल रही,
जीवन वृतान्त कह रही।

Saturday, December 12, 2009

"तितलियों को उड़ने दिया करो ...."



तितलियों और फूलों को तुमको,
अपनी diary में रखना अच्छा लगता है।
मगर,
यह मुझको ठीक लगता नहीं,
बंधनों में मत बांधों किसी को,
जिंदा ही मत मारो किसी को,
तितलियों को उड़ने दिया करो,
फूलों को महकने दिया करो।
क्योंकिं diary में रखने पर,
इन्द्रधनुषी तितलियाँ हो जाती हैं बेरंग,
फूल खो देते हैं अपनी सुगंध।
खामोश तितलियाँ , मुरझाये फूल ...
देखकर हम उदास हो जाते हैं।
चाह कर भी , हम फिर उन्हें
जीवित नहीं कर सकते ।
इसीलिए ,
मेरा अनुरोध स्वीकार करो,
तितलियों को उड़ने दिया करो।
फूलों को महकने दिया करो।

Thursday, December 10, 2009

"दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा..."



दोस्ती का नया रिवाज़ देखा ।
दुश्मनों के हाथ में गुलाब देखा।
भरी महफ़िल में उसने हाथ मिलाया मगर,
दिल में उसके बहुत फासला देखा।
ख़ुद ही झुक गयीं नज़रें उसकी ,
आईने में जब उसने अपना चेहरा देखा।
अब ना करेगें भरोसा किसी पर,
कई बार ख़ुद को , ख़ुद से यह कहते देखा।
घाव भरते भी , तो भरते किस तरह ...
दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा।

Tuesday, December 8, 2009

"कैक्टस में भी तो , फूल मुस्कराते हैं ..."



कैक्टस में भी तो , फूल मुस्कराते हैं।
ज़रा सी परेशानियों में ही लोग,
हिम्मत हार जाते हैं ।
किनारे बैठे रहने से कुछ नहीं हासिल,
विरले ही समुन्दर पार जाते हैं।

Saturday, December 5, 2009

"स्रष्टि का नियम यही है........"



एक पत्ता पेड़ से टूट कर,
धरती की ओर आ रहा।
हवा के रुख को भांप रहा।
प्रश्न उठ रहे उसके मन में,
यह हवा कहाँ ले जायेगी मुझको,
या फिर पेड़ के ही पास गिरूंगा।
अकेलापन कैसे सह पाऊंगा ?
मैं तो अपने पेड़ के ही संग रहूँगा।
बंधनों से मुक्त होकर भी ना जाने ,
किन बंधनों में बंधा है ?
टूटा पत्ता , ना समझ है ।
व्यर्थ ही शोक में डूबा है।
अरे पगले !
स्रष्टि का नियम यही हैं ।
जीवन की रीत यही है।
बिछुड़ने का तू दुःख ना कर ।
इसी माटी में जन्मा है तू ,
और इसी में मिल जाना है।
मिलने - बिछुड़ने का यह क्रम,
अनवरत चलते जाना है।
फूलों का संग तुझको ,
एक दिन, फिर से पाना है।
"नया पत्ता" बनकर तुझको,
फिर से, इसी पेड़ पर आना है।

Thursday, December 3, 2009

"आने वाले कल के लिए, नई इबारत लिख रहा .."

रात का आखरी प्रहर है,
तेज़ी से गुज़र रहा।
आने वाले कल के लिए,
नई इबारत लिख रहा।
इस भागती - दौड़ती दुनिया में ,
हर इंसान अपना मुकाम तलाश रहा ।
"राह" का पत्थर था जो अब तलक,
अब "मील" का पत्थर बन रहा ।

Wednesday, December 2, 2009

"ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ ...."

सर्वप्रथम , इस कविता के माध्यम से...
आपको सादर नमन करता हूँ।
आपकी "प्रतिक्रियाओं" के संग्रह के सन्दर्भ में ,
अपने मन के कुछ उदगार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।

एक-एक करके बड़ी लगन से ,
आपके विचारों की महकती बगिया से ,
गुलाब की पंखुड़ियों से अधिक नाजुक ,
मेरी भावनाओं से अधिक भावुक,
आपके प्रेरणादायी शब्दों के फूल चुनता हूँ।
उन महकते हुए फूलों से फिर मैं ,
अपनी कविताओं का श्रंगार करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।
मेरे जीवन के लिए मार्गदर्शक बनीं,
आपके द्वारा व्यक्त की गयीं ,
"संजीवन अभिव्यक्तियों" के प्रति,
प्रत्येक पल मैं आपका,
कोटि-कोटि आभार व्यक्त करता हूँ।
ह्रदय में कुछ स्वप्न नये बुनता हूँ।

Monday, November 30, 2009

"मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही .... "

मंजिल चाहे कितनी भी दूर सही ....
क़दमों पर अपने , बस भरोसा होना चाहिए।

ठहरे हुए पानी में क्या मज़ा आएगा,
तैरने के लिए , समुन्दर में तूफान चाहिए।
चलते रहना है निरंतर , ना रुकना है कभी ..
भीड़ से अलग, पद-चिन्ह अपने बनाना चाहिए।

Wednesday, November 18, 2009

"तन तो है मिटटी का ......."

तन तो है मिट्टी का,
चाहे कोई भी ले ले ।
मन तो जिसका होना था ,
अब तो हो गया ।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।
कुछ नहीं रहा अब पास मेरे,
जिसको ले जाना था,
वो सब ले गया।
बना दिया मीरा मुझे,
और मन "घनश्याम" हो गया।

Sunday, November 15, 2009

"आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं ..."

कम पढ़ा लिखा हूँ मगर, इतना हिसाब लगा लेता हूँ मैं।
मिलने से ज़्यादा आपसे , बिछुड़ने के पल पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
वक्त ने दूर कर दिया , मुझको आपसे मगर......
हमेशा आपको अपने ही करीब पाता हूँ मैं।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।
अब कोई नहीं आवाज़ देगा और बुलाएगा मुझको,
फिर भी हर आहट पर चौंक जाता हूँ मैं ।
आप माने या ना माने , मगर सच कहता हूँ मैं।

Friday, November 13, 2009

"हमें हर हाल में मुस्कराना है ....."

"जख्म कितना भी गहरा सही,
दर्द तो बस छुपाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
वक्त , हर समय नहीं रहता एक सा....
हर मौसम आना - जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
निराश होने से कुछ नहीं हासिल,
जो सह गया काटों की चुभन को,
"गुलशन" उसका हो जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।"

Monday, November 9, 2009

"कुछ दूर तलक साथ चलो, भूल कर शिकवे-गिले।"



"कुछ कह रहे हैं हमसे.....
काटों संग यह फूल खिले ।
कुछ दूर तलक साथ चलो,
भूल कर शिकवे-गिले।
जब साथ चलोगे,
तो कुछ बात भी होगी।
दूर है बहुत मंजिल ,
राह आसान भी होगी ।
धीरे-धीरे मिट ही जायेंगे,
मन के यह फासले ....
कुछ दूर तलक साथ चलो,
भूल कर शिकवे-गिले।

Saturday, November 7, 2009

"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं......."

"शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं, जीने की उन्हें कोई आस नहीं है।
गुमनाम ही चले जाते हैं यह लोग, दुनिया में इनका होता कोई नाम नहीं है।
इनके लिए बस एक "रस्म" है , किसी से रिश्तों को निभाना ...
बनावटी मुस्कराहटों से मगर , हकीकत छुपती नहीं है।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......
महफिलों में भी अकेले रह जाते हैं यह लोग,
खुले दिल से कभी यह लोग किसी से मिलते नहीं हैं।
हाशियाँ बन कर रह जाते है यह लोग,
"किंतु-परन्तु" से जिंदगानियां चलती नहीं हैं।
शब्दों में जिनके कोई भाव नहीं हैं.......

Friday, November 6, 2009

"दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ...."

दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं,
समुन्दर में रास्ता बनाना चाहता हूँ मैं ।
किनारे पर लहरों से बातें की बहुत दिन,
अब तूफानों से टकराना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......
छुप-छुप कर देख लिया अब बहुत दिन,
अब उन्हें छू कर देखना चाहता हूँ मैं।
यूँ तो रोज़ मेरे ख्वाबों में आते हैं वो ....
अब उनके ख्वाबों में आना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं .......
छोटी सी उम्र में दुश्मन बना लिए बहुत,
अब एक दोस्त बनाना चाहता हूँ मैं।
कवितायें तो बहुत लिखी हैं मैंने,
अब एक दास्ताँ लिखना चाहता हूँ मैं।
दिल से दिल को जोड़ना चाहता हूँ मैं ......

Monday, November 2, 2009

"कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ...."

कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
किंतु, वक्त की बेड़ियों में जकडा हुआ हूँ मैं ...
तोड़ नहीं पाया , प्रयास किए कई बार ...
निष्फल रहे मगर हर बार ...
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
तन के बंधन से गहरे हैं , भावों के बंधन....
मन से मन हैं आज भी बंधे हुए....
यह और बात है जमाना हुआ उनसे मिले हुए॥
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....
मैं तोड़ता, तो तुम भी आ जाते तोड़ कर सारे बंधन॥
परन्तु यह सम्भव हो ना सका ,
दो सामानांतर रेखाओं की तरह ,
गुज़र रहा जीवन हमारा , कभी ना मिलने की लिए .......
कई बार दिल ने चाहा है , सारे बंधनों को तोड़ना ....

Friday, October 30, 2009

"अगर, आज तुम ना आए तो....."



अगर, आज तुम ना आए तो.....
मेरी प्रतीक्षा के क्षण,
कण -कण करके टूट कर बिखर जायेंगे ।
शायद , फिर कभी समेट नहीं पाऊंगा
आंखों से बहते हुए ज़ज्बातों को ...
गुजरते हुए इंतज़ार के लम्हों को
अगर, आज तुम ना आए तो.....
ज़िन्दगी की बेरंग तस्वीर में ,
कोई रंग नहीं भर पाऊंगा ,
अगर, आज तुम ना आए तो.....
पहले भी जिया है ,
हर लम्हा , कई बार मर-मर के ......
इस तरह अब और ,
मै जी नहीं पाऊंगा ।
अगर, आज तुम ना आए तो.....

Tuesday, October 27, 2009

"मंजिल की तलाश में......"

मंजिल की तलाश में ,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बीत गई है काली रात ग़मों की ,
आशाओं के पंछी चहकने से लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे ,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।
बरसों से रैक में रखी, धूल की परत ज़मीं
Diary के पन्नों को एक बार
फिर से हम पलटने लगे हैं।
कई बरस पहले diary में रखे,
गुलाब के फूल आज एक बार
फिर से महकने लगे हैं।
मंजिल की तलाश में,
अनवरत चल रहे कदम मेरे,
तुम्हें देखकर ठहरने से लगे हैं।

Friday, October 23, 2009

"ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?"



ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
दो कदम आगे चलता हूँ, चार कदम पीछे कर देता है।
जब भी कश्ती उतारता हूँ, समुन्दर में तूफान खड़ा कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
एक-एक करके बड़ी लगन से , खुशियों के बीज बोता हूँ।
खिल भी ना पाते हैं फूल, कि हर मौसम को पतझड़ कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
मुस्कराते हुए लम्हे ना जाने कहाँ खो गये,
एक-एक करके सब मुझसे जुदा हो गये।
भीड़ भरी सड़कों पर भी तन्हा कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?
बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ , हाले दिल बयां करना चाहता हूँ।
लिखने बैठता हूँ जब भी मगर, मुझे नि: शब्द कर देता है।
ऐ - वक्त मेरे, तू बार-बार मेरा इम्तहान क्यों लेता है ?

Sunday, September 27, 2009

"रिश्तों का अहसास कहाँ हो पाता है ...."



दर्द का अहसास कहाँ हो पाता है ,
दर्द हुए बिना..........
रिश्तों का अहसास कहाँ हो पाता है ,
अकेले हुए बिना............
समय का अहसास कहाँ हो पाता है,
समय खोये हुए बिना.....
मंजिल का अहसास कहाँ हो पाता है ,
रास्ता भटके हुए बिना......

Thursday, September 10, 2009

"बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे..."



बोनसाई की तरह , क्षतविक्षित नहीं होना है मुझे ।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
महलों का सजावटी समान नहीं बनना है मुझे।
लोगों के हाथों का खिलौना नहीं बनना है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
अपने अस्तित्व को "एक पहचान" देनी है मुझे।
धरा पर रह कर ही , अपनी जड़ें मजबूत करनी हैं मुझे।
बंधनों में बंधकर , छांह में नहीं रहना है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।
खुले आकाश में रहकर, हर मौसम का सामना करना है मुझे।
ख़ुद तेज तपन में रहकर, सबको छांह देनी है मुझे।
बरगद की तरह, उन्मुक्त होकर बढना है मुझे।

Sunday, August 30, 2009

"थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो ..."



थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
इस अजनबी दुनिया में पहली बार ,
"राज" को मिला कोई अपना ,
इस खुशी में आज हमे , जी भर के रो लेने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
पतझड़ के मौसम में आयीं हैं बहारें,
खुशबू फूलों की फिजा में और ज़रा महकने दो।
थोडी- थोडी है झिझक अभी,
राजे दिल ज़रा धीरे - धीरे खुलने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।
कह लेना तुम भी अपने दिल की बातें ,
वक्त जरा थोड़ा और गुजरने दो।
उम्र पड़ी है अभी सारी, गिले शिकवे भी कर लेंगें
इस वक्त ना तुम कुछ कहो, ना हम कुछ कहें
बस जी भर के एक दूसरे को देखने दो।
थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो।
नई-नई है दोस्ती अभी , और ज़रा बढने दो।

Thursday, August 27, 2009

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं....

जन्म दिन है आज आपका , स्वीकार करो बधाई।
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।
सफलताओं की रोशनी से जगमग रहे आपका जीवन।
खुशी और सफलताओं के आप बने प्रतीक, नाम सार्थक हो आपका।
जब चले बात सफल लोगों की , दुनिया नाम ले बस आपका।
जन्म दिन है आज आपका , स्वीकार करो बधाई।
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।
मिले आपको आपके मन का मीत, जीवन बने संगीत।
शुभकामनाएं हैं हमारी, हर सपना पूरा हो आपका।
तमाम उम्र फूलों से महकता रहे आपका जीवन,
"राज" की है दुआ, जीवन चंदन हो आपका।
जन्म दिन है आज आपका , स्वीकार करो बधाई।
सारी खुशियाँ मिले आपको, यह दुआ है मेरे भाई ।

Tuesday, August 25, 2009

"ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे"

अपने दिल से एक दिन होकर नाराज़,
बातों-बातों में हमने उससे कह दिया।
ऐ दिल, ना परेशान कर मुझे,
और धडकना छोड़ दे।
दिल बोला बड़े इत्मीनान से ,
छोड़ दूंगा मैं उस दिन धडकना ,
"राज", प्यार करना तू जिस दिन छोड़ दे।

Saturday, August 22, 2009

क्या कसूर मेरा ?



जिन पहाडों पर था घर बसाया मैंने,
ज्वालामुखी के थे पहाड़ वो, क्या कसूर मेरा ?
जिन दरख्तों की छाँव में , मैं बैठा पल दो पल
बिना पत्तियों का था दरख्त वो, क्या कसूर मेरा ?
वक्त के तूफानों में भी कश्ती उतारी मैंने,
भावनाओं के भंवर से भी कश्ती निकाली मैंने,
कश्ती डूबी मगर उन किनारों पर आकर,
शांत और स्थिर दिखते थे जो, क्या कसूर मेरा ?
मन के उपवन में ब्रह्मकमल खिलाये थे मैंने,
वसंत ऋतु में पतझर ये कैसा आया ,
पंखुडियाँ भी चुभी शूल सी जो, क्या कसूर मेरा ?

Wednesday, August 12, 2009

"अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो..."



अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो,
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
सपने जो देखें हैं आपने,
एक दिन वह सब सच हो जायेंगे।
स्वर्णिम रथ पर होकर सवार ,
एक दिन आयेगा सपनों का राजकुमार,
ले जायेगा आपको सात समंदर पार,
सब देखते रह जायेंगे ।
अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो,
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
ये माना , कभी-कभी बिना रंगों के चित्र भी
दिल को बहुत लुभाते हैं।
बिना कहे ही दिल की सारी बात,
यह चित्र कह जाते हैं।
कोरे कागज़ पर पेंसिल से बनी ये रेखायें,
कुछ चित्र बनाती जाती हैं।
जो कुछ कह नहीं पाते हम,
वो बातें सब बताती हैं।
अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो,
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।
सतरंगी रंगों से चित्र सारे रंग जाये ,
"राज" की है ये दुआ,
सपने आपके सब सच हो जायें ।
इन्द्रधनुष से एक रंग लेकर देखो तो,
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेगें।
हमको समझो अपना , तो उसका पता बताओ
संदेशा आपका हम पहुचायेगें।
हो सका अगर मुमकिन,
तो उसको साथ लेकर आयेगें।
अपने चित्रों में रंग भर के तो देखो,
आपकी ज़िन्दगी में भी रंग आ जायेंगे ।

Friday, August 7, 2009

"आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए"



आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए।
बस कुछ देर अपने आस-पास रहने दीजिए।
खत्म ना हो कभी,
बस यादों का सिलसिला चलने दीजिए।
आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए।
नहीं है मुझको अपनी तबाही का अफ़सोस ,
आप मुझे यूँ ही परेशान रहने दीजिए।
जब तक ना हो खत्म , मेरे आंसुओं को बहने दीजिए।
आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए।
टूट कर रह गया सपनों का घरोंदा मेरा ,
बस यह टूटी हुई दीवारें तो रहने दीजिए।
रौशनी तो सब छीन ली आपने मगर,
बस कुछ देर और उजाला रहने दीजिए।
चला जाऊँगा आपके शहर से मैं ,
बस आखरी बार जी भर के देखने दीजिए।
आप मुझे यूँ ही उदास रहने दीजिए।

Friday, July 24, 2009

"मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा"



मेरी प्रिय "मंजरी",
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
ना जाने कैसे अपने आप,
बिन बुलाये मेहमान की तरह,
काटों से भरे ये जिद्दी पौधे,
उग आते हैं मेरे घर में,
लहुलुहान कर देते हैं हाथ मेरे,
रोज़ ही हटाता हूँ उन पौधों को,
मगर अगले दिन,
और भी ज़्यादा उग आतें हैं ।
और अब तो,
मेरे मन को भी चुभने लगे हैं।
हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
जीवन कष्टों में ही बीत गया,
वक्त, सचमुच मुझसे जीत गया।
कुछ पल खुशियों के अब देने ही होंगें।
उम्र भर "तपती रही" ज़िन्दगी को,
अब "तपोवन" बनना ही होगा।
मेरी प्रिय "मंजरी",
इसीलिए,
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।

Saturday, July 18, 2009

"लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है....."



मंजिल है दूर, मगर चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
सातवें आसमान से आगे हमको जाना है।
मुड़कर ना पीछे कभी देखना है।
मंजिल ना मिले, हमे जब तक...
बस चलते जाना है, चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
अस्तित्व है हमारा , कुछ कर के दिखाना है।
जीवन हमारा व्यर्थ नहीं जाना है।
ज़िन्दगी में करने हैं अभी काम बहुत,
हर क्षेत्र में विजेता बन कर दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
बीता हुआ पल फिर नहीं आना है।
हर पल है मूल्यवान, बातों में नहीं गंवाना है।
जीवनं को सार्थक कर के दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
पल प्रति पल , जीवन और भी कठिन होते जाना है।
असफलताओं के चक्रव्यहू को तोड़ कर जाना है।
अर्थहीन जीवन को, अर्थ पूर्ण बनाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।

Friday, July 17, 2009

"कृष्ण हैं आप मेरे, मुझे सुदामा बना लेना "



आज मन्दिर में रख आया हूँ ,
"विश्वास" की मिटटी से बना हुआ,
"आशाओं" की लौ से जलता हुआ
और "आस्था" के तेल से भरा हुआ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।
अपने घर के आँगन में मेरे नाम का,
एक नन्हा सा पौधा लगा लेना।
ये माना, कोई फूल नहीं कोई खुशबू नहीं है मुझमे
और काटों से भी भरा हुआ हूँ मैं।
आप चाहो तो घर के बाहर ही लगा लेना।
आज मन्दिर में रख आया हूँ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।
अजनबी रिश्तों के बीच अपनेपन की पहचान हूँ मैं,
आस- पास ही रहता हूँ आपके हर पल,
जब चाहो आप, मुझे पुकार लेना।
दुनिया में सबसे अनोखा रिश्ता है अपना,
कृष्ण हैं आप मेरे, मुझे सुदामा बना लेना ।
आज मन्दिर में रख आया हूँ,
एक दीपक आपके नाम, स्वीकार लेना।

Wednesday, July 15, 2009

"बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर"



बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर,
और मेरा दामन भी जला देतीं हैं अक्सर,
गम नहीं मुझे इस बात का दोस्तों,
कि वो मेरा दामन जलाती हैं ।
इस बात का भी दुःख नहीं मुझको,
कि कुछ लोग उस वक्त मेरे दामन को हवा देते हैं।
दुःख है तो "राज" को सिर्फ़ इस बात का ,
इस कोशिश में वह लोग, अपना हाथ जला बैठते हैं।

Thursday, July 9, 2009

"जीवन मेरा संवार दो माँ "



शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
लेखनी को नए विचार दो माँ।
इतना मुझ पर , उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को सार्थक रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
बेरंग शब्दों में , रंग भर दो माँ।
शब्दों को नए अर्थ दो माँ।
"शलभ" को नए आयाम दो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखूं, सबको निहाल कर दूँ माँ।
इतना मुझपर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।

Thursday, July 2, 2009

"नया अध्याय शुरू हुआ है आपके साथ...."



अपने बातों ने बनाया है सजीव मेरे जीवन को,
सबसे अलग, सबसे नया, सबसे सुंदर.....
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक मै आपसे जुडा नहीं था।
नया अध्याय शुरू हुआ है आपके साथ,
हर दिन , हरेक सूर्योदय को हमने
देखा है साथ-साथ, हर किरण को महसूस किया है।
नया दिन हर बार साथ -साथ जिया है।
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक मैं आपसे जुडा नहीं था।
मेरे लिए प्रेरणा हैं , मेरे जीने का सबब हैं आप।
इतना अपनापन और आपसे रूबरू होने का इंतज़ार,
ऐसा पहले कभी नहीं था,
जब तक में आपसे जुडा नहीं था।

Wednesday, June 24, 2009

"प्यार" एक खूबसूरत अहसास है......



कुछ महीने पहले , एक पत्रिका को पढ़ते हुये एक पंक्ति पर मेरी निगाहें ठहर गयीं थी।
वह पंक्ति थी --"इश्क, दौलत और जवानी तीनो अंधे होते हैं, इनकी आँखें नहीं होती हैं।"
उस को पढने के बाद मेरे मन ने कुछ शब्द बुने थे , उन शब्दों को इस कविता के रूप में आपके साथ share करना चाहता हूँ।
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इश्क अँधा नहीं, इश्क “मासूम” है ,
आंखों से देख कर दिल में समाने वाला ,
एक खूबसूरत सा एहसास है।
खुशनसीब हैं वो लोग , जिनके पास यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “खामोश” है ,
बिना कुछ कहे बहुत कुछ समझने का एहसास है।
खुशनसीब है वो लोग , जिनके साथ यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “इंतज़ार” है ,
किसी नज़र को, आज भी किसी का इंतज़ार है।
खुशनसीब है वो लोग ,
जो आज भी करते किसी का इंतज़ार है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क एक “कसम” है,
खुशनसीब हैं वो लोग, जिनके लिए
किसी की आँखें आज भी नम हैं ।
इश्क , “राज” के सपनों में आने वाली
एक खूबसूरत परी की ,
प्यारी सी एक "प्रेम कहानी" है।
खुशनसीब हैं , वो लोग जिनको
आज भी याद वो कहानी जुबानी है।
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फिर भी मुझे यह कहना है कि, "प्यार" को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। "प्यार" एक खूबसूरत अहसास है जिसको सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है। यह "अहसास" ही उम्र भर एक दूसरे को "प्यार" के बंधन में बांधे रखता है।

Monday, June 22, 2009

"मेरे सिरहाने आकर बैठ गए, तुम्हारी यादों के साये"



कल रात हम सो नहीं पाये।
यादों के बादल, घिर-घिर के आये।
बीतें हुए लम्हों की, चमकती रहीं बिजलियाँ।
दिल के आसमां पर,तुम इन्द्रधनुष बन कर छाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
मेरे सिरहाने आकर बैठ गए, तुम्हारी यादों के साये ।
अब इन आंसुओं को कौन समझाये ,
तुम जब याद आये, बहुत याद आये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
राह में हम क्या ठहरे कुछ लम्हों के लिये,
तुम बहुत आगे चले आये।
फिर कभी हम-तुम , मिल नहीं पाये।
फिर भी कुछ अलग है तुम में बात, मेरे दोस्त।
हम आज तक तुम्हें भूल नहीं पाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।

Sunday, June 21, 2009

"हम , अपनी किताब लिखने से रह गये"



आपके शब्द मुझको, भाव-विभोर कर गये।
पुरानी यादों को , फिर से ताज़ा कर गये।
मेरे दिल ने भी चाहा था कई बार,
अपनी कविताओं को एक नाम दूँ मैं।
उदास शब्दों को , एक मुस्कराहट दूँ मैं।
दिल भी धड़का था, अहसास बन कर कई बार।
अहसास भरे शब्दों को, बहुत प्यार से
पन्नों पर लिखा था मैंने हर बार।
वक्त की आंधियां चली , कुछ इस तरह
"शब्द" सारे , ना जाने कहाँ खो गये।
मेरे हाथों में बस कोरे पन्ने ही रह गये।
हम , अपनी किताब लिखने से रह गये।
बातें करते थे इतिहास लिखने की ,
हम, इस दुनिया में "गुमनाम" होकर रह गये।

Saturday, June 20, 2009

"अपने अस्तित्व को ही अपनी पहचान बनाना है"

इस प्रथ्वी पर हमारा अस्तित्व होना महत्वपूर्ण है, यह बात जब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब हमारा जन्म एक मनुष्य के रूप में हुआ हो।
यह जीवन एक बार मिलता है, इस जीवन को सार्थक बनाना हमारा कर्तव्य है। हर व्यक्ति के पास 24 घंटे होते हैं, यह उसके विवेक पर निर्भर करता है कि वह इन 24 घंटे का प्रयोग किस प्रकार से करे।

हमारा अस्तित्व , हमारे लिए मूल्यवान है, हमारे कर्म ही हमारी पहचान हैं। जीवन पथ पर चलना है निरंतर , जीवन में सही उद्देश्य को पाना ही, जीवन की सार्थकता का परिणाम है।
लंबा जीवन जीने से अधिक महत्वपूर्ण है कि हमने जीवन को किस प्रकार से जिया है । क्या हमने अपने जीवन में कुछ ऐसा किया है जो सबसे अलग हो, सबसे नया हो। हमने अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कोई सार्थक प्रयास किया है या नहीं।
हमें अपनी सजीवता को प्रर्दशित करना है। माध्यम "सघन" हो या "विरल", बस सकारात्मक सोच के साथ अविरल धारा की तरह आगे चलते जाना है। बहता हुआ "जल" बनना है , ठहरा हुआ "पानी" नहीं।
अपने अस्तित्व को ही अपनी पहचान बनाना है। जीवन में सफल होकर दिखाना है।

Friday, June 19, 2009

"अपने शहर की तेज़ धूप में भी, ठंडक सी लगती है"

अपने शहर और घर आकर जो मैंने महसूस किया है, वह अहसास दो-दो पंक्तियों के माध्यम से लिखने की कोशिश करता हूँ।

[1] परदेस की चांदनी में, अब तो तपन सी लगती है।
अपने शहर की तेज़ धूप में भी, ठंडक सी लगती है।

[२] बोझिल पलकें कह रहीं हैं , उनकी कहानी सारी।
आखों ही आखों में गुजारी हैं, रातों की नीदें सारी।

Friday, June 12, 2009

"यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है"



हर लम्हा , एक अलग "अहसास" होता है।
यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है।
"मिलन" के लम्हों को , शब्दों में बयां कैसे करें ,
मिलन से पहले का "अहसास" ही, बहुत ख़ास होता है।
बारिशें आतीं हैं, किसी की यादें लेकर
रिम-झिम बूंदों में , अपने पन का "अहसास" होता है।
यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है।
अपनी ज़िन्दगी में, तुम्हें तलाश किया था मैंने।
पहली बार छुआ था मैंने तुम्हारे हाथों को,
जब तुम्हारी रेखाओं से, अपनी रेखाओं को मिलाया था मैंने।
आज भी, उस "स्पर्श" का "अहसास" मुझे होता है।
यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है।
अपनी रेखाओं में जब, तुम को नहीं पाया था मैंने।
मैं ही जानता हूँ, वो हाल तुम्हें कैसे बताया था मैंने।
बिना कुछ कहे, फिर आखों से ही समझाया था मैंने।
दर्द का अहसास, इन आंसुओं को खूब होता है।
यह "अहसास" ही, बस मेरे साथ होता है।

Wednesday, June 10, 2009

"एक बार फिर क्या तुम आओगी ?"



नन्हें - नन्हें वो गुलाबी प्यारे से फूल, जो पसंद थे तुमको,
अपनी किताब में संभाल-संभाल कर,
सबसे छुपा कर रखती थी हर रोज़ एक फूल को ,
जैसे हजारों फूल हों , उस नन्हें से पौधे में
जितने भी तोड़तीं थी तुम,
उससे भी ज़्यादा खिल आते थे अगले दिन
आज वही गुलाबी फूलों का नन्हा सा पौधा,
मेरे घर के आँगन में , फिर एक बार
कई बरसों बाद , ना जाने कैसे अपने आप खिलने लगा है।
कलियाँ भी आने लगीं हैं पौधे में,
बन के फूल , अब मुस्करायेंगी कुछ दिनों में।
"राज" बस यही सोचते हैं हर पल,
उन गुलाबी फूलों को चुराने, मेरे घर के आँगन में,
पहले जैसी दोड़ती हुई ना सही , दबे पाँव ही सही,
हकीकत में ना सही, ख्वाबों में ही सही,
अपने आँचल में उन फूलों को समेटने ,
एक बार फिर क्या तुम आओगी ?
पंखुडियों को किताबों में सजाने
फिर एक बार क्या तुम आओगी?

"अब इस शहर को छोड़ कर जाने का मन है"



अब इस शहर को छोड़ कर जाने का मन है।
आखों में हैं यादों के मोती, भारी बहुत मन है।
आप सबसे मुलाकात, अब शायद ही फिर होगी ।
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है , मगर यकीन कुछ कम है।
अब इस शहर को छोड़ कर जाने का मन है।
आखों में हैं यादों के मोती, भारी बहुत मन है।
जब से चले हैं, आज तक सफर में हैं।
मंजिल तक जो साथ चले हमारे,
किसी शख्स के इरादों में कहाँ इतना दम है।
अब इस शहर को छोड़ कर जाने का मन है।
आखों में हैं यादों के मोती, भारी बहुत मन है।

Thursday, June 4, 2009

"कब बन गई एक नई कहानी, पता ही ना चला"



अजनबी शहर था, कब हो गया अपना पता ही ना चला।
एक फूल गुलाब का चाहा था,
कब बागवाँ हो गया अपना पता ही ना चला।
कल रात घना था अँधेरा, कहीं कुछ दिखता ना था।
किस ओर जाऊं मैं , यह सोच ही रहा था।
कब थाम लिया उसने मेरा हाथ आकर, पता ही ना चला।
लंबा था सफर, जाना था बहुत दूर ,
"राज" को सफर में हमसफ़र मिला खूबसूरत बहुत।
कब आ गई मंजिल, पता ही ना चला।
कुछ वर्षों से मेरी कविताओं को शब्द मिलते ना थे,
एक-दो पंक्तियों से आगे हम लिखते ना थे।
कब बन गई एक नई कहानी, पता ही ना चला ।

Tuesday, June 2, 2009

"अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं..."



ऐसा नहीं कि , बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं।
आती हैं घटायें , किसी अजनबी की तरह।
खुले दिल से अब बरसती नहीं हैं।
पहले जैसे इन्द्रधनुष , अब बनते नहीं हैं।
बूंदों में अब, अपने पन का अहसास नहीं हैं।
ऐसा नहीं कि , बूंदों से मुझे प्यार नहीं है।
अब की बारिशों पर , मुझे ऐतबार नहीं हैं।

"बारिशों के मौसम अब आने वाले हैं....."



बारिशों के मौसम अब आने वाले हैं,

मुझको बहुत रुलाने वाले हैं।

क्योकिं ,

बारिशों के मौसम में भीगना मुझे यूँ अच्छा लगता है,

हम कितना भी रो लें, किसी को क्या पता चलता है।

Saturday, May 30, 2009

"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना......



जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मुझे तो आदत है खंडहरों में रहने की,
मेरे लिए नया आशियाना आप बनाते क्यों हैं ?
हो गई है आदत अब तन्हाईयों की मुझे,
अपनी महफिल में , आप मुझे बुलाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?
मंजिल पर जाकर ही रुकना था मुझको मगर,
ज़िन्दगी में मेरी , इतने मोड़ आते ही क्यों हैं ?
"शलभ" का तो काम है, फ़ना हो जाना मिट जाना ।
चंद साँसे बाकी हैं मेरी , आप मुझे अब बचाते क्यों हैं ?
जो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते,
वो ख्वाब , आप मुझे दिखातें क्यों हैं ?

"राज सारे दिल के खोल रहा कंगना ..."



आप से हुयी मुलाकात, हकीकत है या सपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
आपकी ओर से आ रही हवाओं में
अपनेपन का एक प्यारा सा अहसास है।
यह अहसास ही अब मेरे साथ है।
मेरी हिचकियाँ कह रही, याद कर रहा कोई अपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
रिश्ते पहले बन जाते हैं, जन्म हम बाद में पाते हैं ।
यह पता चला मुझे आपसे मिलकर,
मानों कई जन्मों का रिश्ता हो अपना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।
राज सारे दिल के खोल रहा कंगना।
बार-बार एक ही बात कह रहा कंगना।
बस अब मुझे "सजना" के लिए ही है सजना।
जब से गये हैं आप हम से मिलकर,
बस तभी से ढूँढ रहे हैं दिल हम अपना।

"हम भारतीयों के जिस्म पर ही बार-बार आतंकवाद और नस्लवाद के घाव क्यों"



कभी कभी, हमारे विचारों में मतभेद हो सकता है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों ने हम सबकी भावनाओं को बहुत आहत किया है। मेरी इस बात से आप सभी सहमत होंगें। ऐसा मेरा विश्वास है।
इस ब्लॉग के माध्यम से हम सभी इस घट्ना का कड़े शब्दों में विरोध करते हैं, और दोषी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही के लिए ऑस्ट्रेलिया की सरकार से मांग करते हैं।

"हम सब एक हैं, हमे अपने देश और दुनिया में रहने वाले हर भारतीय से प्यार है।" यह संदेश इस ब्लॉग के माध्यम से हमे पूरी दुनिया के हर इंसान तक पहुँचाना है।

हम भारतीयों के जिस्म पर ही बार-बार आतंकवाद और नस्लवाद के घाव क्यों ? आख़िर कब तक हम सहेंगें ? कब तक ....? "दुश्मन को भी क्षमा करने की हमारी संस्कृति" का कब तक यह दुनिया फायदा उठाती रहेगी ? कब तक ....?

जय हिंद !

आपका हमवतन,

शलभ गुप्ता

Wednesday, May 27, 2009

"कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें"



कुछ वर्ष पूर्व , अपने शहर में मुझे डा0 विष्णु कान्त शास्त्री जी के ओजस्वी विचारों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी यह पंक्तियाँ मुझे हर पल याद रहती हैं।

"हारे नहीं जब हौसले , कम हुए तब फासले।

दूरी कहीं कोई नहीं, केवल समर्पण चाहियें।

कुछ कर गुजरने के लिए, मौसम नहीं बस मन चाहियें।"

शलभ गुप्ता

Tuesday, May 26, 2009

"किसी के मीत कब छूटे नहीं हैं ...."



किसी ने क्या खूब लिखा है दोस्तों.........

"सपने किस नयन के टूटे नहीं हैं।
किसी के मीत कब छूटे नहीं हैं।
अमृत के नाम पर विष पी गया हूँ,
अधर मेरे मगर हुये झूठे नहीं हैं। "


शलभ गुप्ता

Monday, May 25, 2009

"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है......"



किसी की लिखी हुई यह दो पंक्तियाँ, मुझे अक्सर याद आती हैं और हमेशा निरंतर चलने के लिए मेरा हौसला बढाती रहतीं हैं।

"जब से चला हूँ , मंजिल पर नज़र है।
मैंने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।"

चलते-चलते बशीर बद्र जी का एक शेर याद आ गया है , वह भी आपको सुनाता चलूँ....

"तुम्हारे शहर के सारे दिये तो सो गये लेकिन,
हवा से पूछना दहलीज़ पर ये कौन जलता है। "

आपका ही,
शलभ गुप्ता

"इसी अहसास के साथ हमे ज़िन्दगी को जीना है.."



हमेशा की तरह आपका दिन मंगलमय हो !

शायद किसी ने ठीक ही कहा है,

"बाटों , जीवन प्रवाह है और जो भी जीवंत है उसमे प्रवाह होगा।"

यह बात बिल्कुल सही है जब हम अपने अनुभव ( चाहे कैसे भी हों ), अपने विचार एक दूसरे के साथ share करते है । यह हमारे जीवंत होने का अहसास कराता है। इसी अहसास के साथ हमे ज़िन्दगी को जीना है । अपनी भावनाओं को हमेशा खुले मन से ही व्यक्त करना है।

शलभ गुप्ता

Thursday, May 21, 2009

"मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं..."



मेरे शब्द, आपके शब्दों से बातें करने को तरसते हैं।
क्योंकि, हम बस सिर्फ़ आप पर ही लिखते हैं।
आपके शब्दों को अधिकार है, ख़फा होने का मगर
ज़रा सी बात की क्यों , इतनी सज़ा देते हैं।
हमे एहसास है अपनी गुस्ताखी का ,
आप तो दुश्मनों को भी माफ़ कर देते हैं।
नाराज़गी का कोई और रास्ता इख्तियार कीजीये
मेरे शब्दों पर ना इतने बंधन लगाईये ,
शब्दों को आज ज़रा दिल खोल कर मिलने दीजीये।

Wednesday, May 20, 2009

" चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा......"



You are right sir ji, "Self motivation is the key to success".

यह बात तब और भी जरूरी हो जाती है जब हम अकेलें रहतें हों। सारे decisions ख़ुद ही लेने हों। फिर परिणाम चाहे कुछ भी हो।
Abhimannu भी चक्रव्यहू से निकलने का रास्ता नहीं जानते थे, लेकिन वह फिर भी परिणाम की चिंता किए बिना चक्रव्यहू में गए थे।
किनारे पर बैठ कर तो हम तैरना नहीं सीख सकते हैं, लहरों का सामना तो करना ही होगा। डूब जाने के डर से तो हम कभी तैरना नहीं सीख पायेंगें ।
अगर ज़िन्दगी को सही अर्थों में जीना है तब, इतना risk तो लेना ही होगा। चक्रव्यहू में तो जाना ही होगा।
बस, हौसला नहीं खोना है। हिम्मत नहीं हारनी है। लगातार प्रयास करते रहना है। फिर देखना , एक दिन सफलता जरूर हमारे साथ होगी।

शलभ गुप्ता

Tuesday, May 19, 2009

"सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है । "



आज सिर्फ़ दो lines के माध्यम से अपनी बात आपसे कहना चाहता हूँ।
पहली लाईन है :-
"मेरी असफलता मुझे यह बताती है कि मैंने सफलता की कोशिश ठीक प्रकार से नहीं की । "
( यह line मुझे मेरी गलतियों का एहसास कराती रहती है ताकि यह गलतियाँ फिर से ना हों। )
दूसरी लाईन है :-
"सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है । "
(यह line मुझे लगातार आगे बढने के लिए प्रेरित करती रहती है )


शलभ गुप्ता

Monday, May 18, 2009

"तेज रफ़्तार और बिना मंजिल का सफर कभी पूरा नहीं होता है"



आईये, कुछ लम्हों के लिए आपको शब्दों की यात्रा पर साथ ले चलें। कभी -कभी, यह कुछ देर की यात्राएँ और छोटी - छोटी बातें उम्र भर के लिए यादगार बन जाती हैं।
मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि तुम Bike तेज क्यों नहीं चलाते हो ? इस पर मैं उनसे कहता हूँ, कि जब Bike तेज चलाने की उम्र थी तब मेरे पास bike नहीं थी और अब जब bike है तो तेज चलाने की उम्र नहीं है।
जीवन में कुछ जिम्मेदारियों का अहसास हमारी गति को control में रखता है। यह जिम्मेदारियां ही हैं जो हमें सही अर्थो में जीना सिखाती हैं। जब हम किसी काम के प्रति जिम्मेदार होंगें, तब ही उस काम को सही दिशा देने में सफल होंगे।
तेज रफ़्तार और बिना मंजिल का सफर कभी पूरा नहीं होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने जीवन की कार्यशैली की गति को इतना कम कर दें कि हम मंजिल तक पहुँच ही ना पायें।

जीवन में संतुलित गति ही हमारे जीवन को संतुलन में रख पाती है।

विचारों के बादल मेरी धरती पर हमेशा बरसते रहें .........
यह शब्दों की यात्राएँ हमेशा चलती रहें..........

आपका ही,
Shalabh Gupta

Thursday, May 14, 2009

किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए .....






शायद सब ठीक कहते हैं, जो जैसा है वैसा ही रहेगा । बस जुड़ते रहिये और मिलते रहिये। लेकिन लोग ऐसे क्यों होते हैं ? यह बात एक शहर की नहीं है हर जगह ऐसा ही हो रहा है।
आज लोग इंसानों को एक वस्तु की तरह use करते हैं। फिर उसका misuse करते हैं। अरे भाई , हम भी एक इंसान है। कहते हैं कि दिल और दिमाग की दौड़ में, जीत दिमाग की होती है। नही चाहिए मुझे यह जीत।
किसी के आंसुओं में डूबी हुई खुशी मुझे नहीं चाहिए।
आज सब सिकंदर बनना कहते हैं, पुरु बनना क्यों नहीं ? शायद मेरे पास भगवान् ने सिकंदर जैसा दिमाग नहीं दिया। हम सब क्या हासिल करना चाहते हैं ?
आज हम सब चाँद तक पहुँच गए है , पर क्या किसी के दिल तक पहुँच पाये हैं ? शायद नहीं।
नहीं चाहिए मुझे ऐसा दिमाग जो हमें लोगों के दिलों से दूर कर दे। मेरा तो यह मानना है कि किसी को यदि मेरे आसुओं में खुशी मिलती है तो वो ही सही , आख़िर हम किसी को खुशी तो दे रहे हैं।
अपनी एक कविता की चार पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात आपके सामने रखना चाहता हूँ।


"हर किसी को अपना समझ लेते है,
इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं ,
गलती यह हम बार-बार करते हैं ,
आँखें रोंती हैं , फिर उम्र भर
लब मगर हमेशा मेरे मुस्कराते हैं। "


और यह सोचना अगर ग़लत है तो यह गलती हम बार - बार करना चाहेंगें ।

आपका ही ,
शलभ गुप्ता

आने वाला कल , एक नई इबारत लिखकर रहेगा .....



"आने वाला कल , एक नई इबारत लिखकर रहेगा।

आपके विचारों का, मेरी कविताओं से मिलन होकर रहेगा।

ख़ुद से ज़्यादा यकीन है मुझे , आप पर ...

आप देखना एक दिन, मेरा यह सपना सच होकर रहेगा।"


शलभ गुप्ता

Wednesday, May 13, 2009

इस शहर के लोग मुझे, प्यार बहुत करते हैं ......



यह शब्दों की दुनिया भी बहुत अजीब होती है। इन शब्दों की वजह से ही हम किसी अजनबी को भी एक अटूट बंधन में बाँध लेते हैं और कभी- कभी इन शब्दों के कारण ही अपनों से भी रिश्ते टूट जाते हैं।

इस शहर के लोग मुझे, प्यार बहुत करते हैं।
जब भी मिलते हैं मुझसे,खुले दिल से मिलते हैं।
क्यों ना करूँ मैं हर पल , अब ख्याल उन सबका,
अच्छे लोग इस दुनिया में,बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।

Tuesday, May 12, 2009

श्री सिद्धि विनायक जी के दर्शन ( 11 May 2009, 11:40 A.M.)

श्री गणेशाय नमः

कल सुबह वह यादगार पल आ ही गया, जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था। श्री सिद्धि विनायक जी का आर्शीवाद मुझे प्राप्त हुआ और मेरी सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की मनोकामना पूरी हुई।

यदि हमे अपने उद्देश्य और सही गंतव्य का पता होता है तब कदमों को अपने आप गति मिल जाती है। और कदम ख़ुद ही उस मंजिल की ओर चलने लगते हैं। अगर हमे अपने गंतव्य का पता नहीं है तब या तो हमारे कदम रुक- रुक कर चलेगे , कहीं ठहर जायेंगे या फिर मार्ग से भटक जायेंगे। कहते है सबसे तेज़ गति मन की होती है। कई बार मन की तेज़ गति हमें परेशान भी करती है। इसीलिए मेरा मानना है कि किसी कार्य में हमको सफलता तब ही मिलेगी जब हमारी मन ओर कदमों की गति एक समान है।

शलभ गुप्ता

Saturday, May 9, 2009

एक ज़िन्दगी जीने दो.




लम्हा - लम्हा मिलती है,

हर लम्हें को जीने दो.

हर लम्हें में मुझको,

एक ज़िन्दगी जीने दो.

Wednesday, May 6, 2009

मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी ( Happy Mother's Day - 10 May 2009)

आज मैं आपको मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह एक अत्यन्त भावनात्मक कहानी है। मेरा विश्वास है कि आपके दिल को छू जायेगी ।

एक बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़कर मेले में जाता है। वहां सुंदर गुब्बारे , लाल-हरी ज़री की टोपियाँ , वर्फी- जलेबी मिठाई की दुकानें देखकर बच्चा एक के बाद एक चीज मागंता है।

माँ के पास पैसे नहीं थे। इसलिए वह बच्चे को कुछ नहीं दिला पाती है। बच्चे को गुस्सा आता है, उसे अपनी माँ बुरी लगने लगती है। भीड़ में माँ की उंगली छूट जाती है।

बच्चा खो जाता है। मारे डर के जब वह रोने लगता है तब गुब्बारेवाला, टोपीवाला, मिठाईवाला उसे अपनी-अपनी चीजें देकर शांत करने की कोशिश करते हैं। बच्चा हर चीज लेने से इनकार कर देता है। उसे सिर्फ़ अपनी माँ चाहियें।

आपका ही ,
शलभ गुप्ता

Saturday, May 2, 2009

सिद्धि विनायक मन्दिर , मुंबई



वैसे तो मेरा मुंबई जाना बहुत बार हुआ है। शायद पूरा मुंबई ही देखा है मैंने। परन्तु अभी तक मुझे सिद्धि विनायक जी के दर्शनों का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है। इसीलिए अक्सर मुझे यह महसूस होता है कि अभी तक कुछ नहीं देखा मैंने।
मेरी यह भगवान से हार्दिक इच्छा है कि इस महीने मुझे सिद्धि विनायक जी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो जाए। मेरा जीवन सफल हो जाएगा।

सिद्धि विनायक जी के दर्शनों की अभिलाषा के साथ,
शलभ गुप्ता

Tuesday, April 28, 2009

मेरी शिर्डी यात्रा ( २६ अप्रैल २००९)



रविवार को बाबा के दर्शनों का सपना साकार हुआ, मन्दिर के वातावरण में मुझे एक नई उर्जा का अनुभव हुआ। मन्दिर के पवित्र प्रांगन में बैठकर बहुत देर तक मैंने बाबा से बात की। बाबा बड़ी खामोशी से सब सुनते रहे और मुस्कराते रहे।

वहां , मैंने यह महसूस किया कि हर व्यक्ति बाबा से ही बातें कर रहा था। जिसे जो बाबा से मांगना था , मांग रहा था। सब लोग, मन्दिर से बड़ी प्रसन्नता और संतुष्ट भावः से बाहर आ रहे थे। मानों , बाबा सबके प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों और सबकी झोली भर रहे हों। सबके चेहरों पर मैंने सच्ची खुशी का अनुभव किया। लाखों भक्तों की भीड़ थी, परन्तु वहां एकदम शान्ति का वातावरण था।

सचमुच, वहां के वातावरण में एक अलोकिक शक्ति है , जो हमें जीवन में सदा अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है।

शायद, मुझे भी मेरे प्रश्नों का उत्तर मिल गया था। मैं भी, संतुष्ट भावः से मन्दिर से बाहर आने लगा था।

ॐ साईं राम ..... ॐ साईं राम .....ॐ साईं राम......

ॐ साईं राम ......ॐ साईं राम..... ॐ साईं राम......