Sunday, April 18, 2010

"पुराने दोस्त याद आते बहुत है ...."



पुराने दोस्त याद आते बहुत है ,
तनहाइयों में रुलाते बहुत है .
“राज" की जिंदगी की राहों में ,
मोड़ आते बहुत है .
किताब में रखे गुलाब के फूल
और तितलियाँ याद आते बहुत है ।
मै यहाँ ठीक हूँ , यह उनको है ख़बर ,
घर से दूर रहने पर मगर ,
हिचकियाँ आती बहुत है .
तनहाइयों में रुलाती बहुत है .
आंसुओं के समंदर में है , “राज” की जिंदगी
और लोग समझते है , हम मुस्कराते बहुत है . "

Thursday, April 15, 2010

जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं .......

जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं .......
अपनी कविताओं से , बाँतें करता हूँ मैं
बाँतो में, फिर तेरा ज़िक्र करता हूँ मैं .
ज़िक्र तेरा आते ही , मेरी कविताओ के
खामोश शब्द बोलने लगते हैं ,
फिर घंटों मुझसे , तेरी बाँतें करते हैं
मेरी कविताओं के शब्द तुमने ही तो रचे है
तुम्हारी ही तरह “शब्द” भावुक है
बाँतें मुझसे करते है , और नैनों से बरसते रहते है
जब भी कभी तन्हा , महसूस करता हूँ मैं
अपनी कविताओं से बांते करता हूँ मैं
अर्ध -विराम सहारा देतें है शब्दों को ,
मात्राएँ , शब्दों के सर पर हाथ रखती हैं
हिचकियाँ लेते शब्दों को पंक्तियाँ दिलासा देतीं है
फिर सिसकियाँ लेते हुए शब्दों को ,
मै सीने से लगाकर , बाहों में भर लेता हूँ,
शब्द मुझमे समां जाते है , मुझको रुला जाते है ।

Thursday, April 1, 2010

"शायद कहीं खो गया हूँ ...."



शायद कहीं खो गया हूँ,
भीड़ का हिस्सा हो गया हूँ ।
चाहा था इतिहास लिखना ,
हाशियाँ हो गया हूँ।
गुणा-भाग की बहुत मगर,
घटता रहा हर पल मगर,
जहाँ से चला था,
वहीँ पहुँच गया हूँ।
फिर से एक बार ,
"शून्य" हो गया हूँ।