Thursday, March 28, 2019

"अबीर गुलाल"

दूर शहर में रहने वाले बच्चे,
जब घर आ जाते हैं। 
माता पिता के लिए वह लम्हें,
"अबीर-गुलाल" हो जाते हैं।
@ शलभ गुप्ता
(होली के दिन लिखी यह चार पंक्तियाँ)

"माता-पिता"

यूँ तो दुनिया देखी है हमने,
हज़ारों लोगों से मिलें हैं।
सच्चे ज़ज़्बात बस,
माता-पिता की दुआओं में मिले हैं।
@ शलभ गुप्ता