Tuesday, February 25, 2020

ऐ ज़िन्दगी, तेरा शुक्रिया !!

ऐ ज़िन्दगी, तेरा शुक्रिया !!
धीरे धीरे ही सही,
फिर से चलने लगी है।
जैसे घर के आँगन में,
मुंडेर पर ठहरी हुई धूप,
रौशनी बिखरने लगी है। 

"रात .."

रात जैसे नदी है कोई ठहरी हुई।
यादों की कश्ती गुज़रती ही नहीं।

"अजनबी.."

वह अजनबी होकर भी,
मुझे अपना सा लगता है।
पिछले जनम का शायद,
उससे कोई रिश्ता लगता है।