Tuesday, July 25, 2017

"यादें और सावन.."

छा जाओ, बरस जाओ,
दिलों में, शहर में।
कभी यादें बनकर।
कभी सावन बनकर।
@ शलभ गुप्ता 

"मैंने देखा है अक्सर.."

हाईवे से गुज़रते हुए ,
सड़क के दोनों ओर,
हरे-भरे पेड़ों के बीच,
मैंने देखा है अक्सर,
कई पेड़ सूखे हुए।
@ शलभ गुप्ता 

Monday, July 17, 2017

"हमनें देखा है अक्सर,..."

प्रेम की डगर पर,
भीड़ भरे चौराहों पर,
हमनें देखा है अक्सर,
लोगों को रास्ता बदलते हुए।  
आजकल महफिलों में,
हमनें देखा है अक्सर,
प्लास्टिक की मुस्कान लिए,
दोस्तों को बातें करते हुए।  
बड़े-बड़े शहरों की,
ऊँची-ऊँची इमारतों में,
हमनें देखा है अक्सर,
बुज़ुर्गों को गुमसुम रहते हुए। 
@ शलभ गुप्ता "राज"


Friday, July 14, 2017

"नैना .."

बोझिल पलकें, नैना हैं भारी।
जाने कहाँ गयी नींदें हमारी।
@ शलभ गुप्ता 

Wednesday, July 12, 2017

"अजनबी सी.."

हज़ार गम हैं ज़िन्दगी में,
किसी से शिकायतें क्या करो ?
दुनिया लगे जब अजनबी सी,
खुद से बातें किया करो ।
@ शलभ गुप्ता "राज"

Monday, July 10, 2017

"ये बारिशें भी प्रेमिका की तरह हैं.."

A.C. कमरों में बैठकर,
T.V. पर बारिशों का हाल देखकर,
शहर में हुए जलभराव की, 
अख़बार में छपी तस्वीरें देखकर,
कहाँ भीग पाते हैं हम।  
साल भर बारिशों का इंतज़ार ,
करते हैं.. और फिर ; 
बारिशों में भीगने से डरते हैं।  
छाता संग लेकर चलते हैं।  
हर रोज भीगना ज़रूरी नहीं,
कभी-कभी तो भीग ही सकते हैं।  
ये बारिशें भी प्रेमिका की तरह हैं,
हर रोज मिलने नहीं आती हैं।   
इसीलिए जब भी बारिशें आयें ,
जी भरकर भीगना।  
मोबाइल, घडी वगैरह ;
सब घर पर रख आना ।  
आना तो बस भीगने आना।  
@ शलभ गुप्ता "राज"

Friday, July 7, 2017

"घर के दरवाजे.."

घर की दीवारों को,
बारिशों में भीगता देखकर,
मेरे घर के दरवाजे,
आजकल बहुत उदास हैं।
@ शलभ गुप्ता "राज"

Thursday, July 6, 2017

"मैं ग्रीष्म हूँ - 2"

(श्रीकांत पुराणिक द्वारा निर्देशित नाटक
"ग्रीष्म" के लिये मेरी एक कविता )
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मैं ग्रीष्म हूँ ,
दिल की दूरियाँ मिटाने आया हूँ।
इस अजनबी शहर को,
अपना बनाने आया हूँ।
हालातों की तेज तपन में,
बारिशों की खुशबू लाया हूँ।
प्रेम के गीत सुनाने आया हूँ।
रंगमंच है ये ज़िन्दगी,
नाटक नये दिखाने आया हूँ।
@ शलभ गुप्ता "राज"
पृथा थिएटर , मुंबई
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Tuesday, July 4, 2017

"मैं ग्रीष्म हूँ .."

मैं ग्रीष्म हूँ ,
ज़रा देर से आया हूँ। 
हालातों की तेज तपन में,
बारिशों की खुशबू  लाया हूँ। 
कंकरीट के इस शहर को,
अपना बनाने आया हूँ। 
कुछ गीत नये लिखने आया हूँ। 
कुछ कवितायेँ सुनाने आया हूँ।
मैं ग्रीष्म हूँ ,
ज़रा देर से आया हूँ। 
@ शलभ गुप्ता "राज"
पृथा थिएटर , मुंबई 
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(श्रीकांत पुराणिक द्वारा निर्देशित नाटक 
"ग्रीष्म"  के लिये लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ )
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"शलभ..."

"शलभ" नाम है मेरा,
बड़ी दूर से आया हूँ।
हालातों की तेज तपन में,
चन्दन की खुशबू  लाया हूँ।
कंकरीट के इस शहर को,
अपना बनाने आया हूँ।
कुछ गीत नये लिखने आया हूँ।
कुछ कवितायेँ सुनने आया हूँ।
@ शलभ गुप्ता "राज"

Monday, July 3, 2017

"बारिश.."

थोड़ी देर के लिए ही सही,
बारिश बन कर आ जाओ,
मेरे आँगन में।
बरस जाओ,
दिल के हर कोनों में।
महक जाओ,
घर के सारे बंद कमरों में।
@ शलभ गुप्ता "राज"
पृथा थिएटर , मुंबई 
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(श्रीकांत पुराणिक द्वारा निर्देशित नाटक 
"सावन"  के लिये लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ )
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