Saturday, October 27, 2012

"पत्थर दिल .."

कुछ न कुछ तो ज़रूर ख़ास है मुझमे,

सुना है मेरी बातों से पत्थर दिल भी पिघल जाते हैं .
 

"इन्द्रधनुष ..."

आशाओं के नये इन्द्रधनुष बने,

आप सबकी दुआ रंग लायी है ,

साज के टूटे तारों को जोड़कर ,

फिर धुन एक नयी सजायी है .

 

Wednesday, October 24, 2012

"तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग ..."

कोई किसी को याद नहीं करेगा ,
यह ग़लत कहते है लोग।
ज़िन्दगी भर याद आयेगें ,
मुझे आप सब लोग।
शायद मुझे भी याद करेंगे ,
मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।
जब खामोश हो जाऊंगा मै ,
तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।
चला जाऊंगा इस शहर से जब मै,
मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।
मैं हूँ एक पेड़ चंदन का,
इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।
पत्थर पर घिस कर जब फना  जाऊंगा मै,
तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।
आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ,
एक दिन टूट जाऊंगा मै ।
खुशी बहुत है इस बात की "राज" को मगर
देखकर मुझे अपनी मुरादें पूरी  कर लेंगे लोग।
( Shalabh Gupta "Raj")
 

Saturday, October 20, 2012

"तितलियों को उड़ने दिया करो..."


तितलियों और फूलों को तुमको,
अपनी diary में रखना अच्छा लगता है।
मगर, यह मुझको ठीक लगता नहीं,
बंधनों में मत बांधों किसी को,
जिंदा ही मत मारो किसी को,
तितलियों को उड़ने दिया करो,
फूलों को महकने दिया करो।
क्योंकिं diary में रखने पर,
इन्द्रधनुषी तितलियाँ हो जाती हैं बेरंग,
फूल खो देते हैं अपनी सुगंध।
खामोश तितलियाँ , मुरझाये फूल ...
देखकर हम उदास हो जाते हैं।
चाह कर भी , हम फिर उन्हें
जीवित नहीं कर सकते ।
इसीलिए , मेरा अनुरोध स्वीकार करो,
तितलियों को उड़ने दिया करो।
फूलों को महकने दिया करो।

Sunday, October 14, 2012

"घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये ..."

कई महीनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये
घर की हर चीज़ ने पूछा, मेरे करीब आकर
आप क्यों इतने महीनों बाद आये ।
दीवारें भी मिली जी भर के गले मुझसे,
फिर देर रात आसमान से चंदा और तारे
मुझसे मिलने मेरे घर की छत पर आये ।

कई महीनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये ।

Saturday, October 13, 2012

"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे ..."

घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,
आँगन के पौधे बहुत याद आने लगे,
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
सूरज की तेज तपन में थोड़े झुलसे तो होंगे,
बारिशों के मौसम में बहुत भीगे तो होंगे,
जाडों की सर्द हवाओं में भी स्कूल गए तो होंगे।
लगता है वक्त की आग में तप कर ,
अब तो "सोना" बन गए होंगे।

अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

वो मुझे बहुत याद करते तो होंगे,
कलेंडर को बार-बार देखते तो होंगे।
आंखों से आंसू थम तो गए होंगे,
लोरियों के बिना ही, अब सो जाते तो होंगे।
पर शायद कभी -कभी रातों को, वो जागते तो होंगे।
आँधियों का सामना वो करते तो होंगे,
पतझड़ के मौसम में तोडे टूटते तो होंगे,
बसंत ऋतू में हर तरफ़ महकते तो होंगे।
लगता है हर मौसम में ढल कर अब तो,
मेरे लिए "कल्पवृक्ष" बन गए होंगे।

अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

नाज़ुक सी टहनियों पर नन्ही-नन्ही पत्तियां,
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ
उनकी खुशियों में सब खुश तो होंगे,
सारी बातों को अब वो समझते तो होंगे।
लगता है जिन्दगी के इम्तहान में पास होकर,
मेरे लिए "कोहिनूर" बन गए होंगे.

Thursday, October 11, 2012

"खामोशियाँ ..."

"खामोशियाँ बोलने लगीं हैं,
"राज" सारे खोलने लगी हैं ,
कान्हा के होंठों का,
बांसुरी को सहारा जो मिला,
गोपियाँ प्रेम-गीत गाने लगी हैं . "
 

Wednesday, October 10, 2012

"एक जख्म नया देखा..."

दोस्ती का नया रिवाज़ देखा ।
दुश्मनों के हाथ में गुलाब देखा।
भरी महफ़िल में उसने हाथ मिलाया मगर,
दिल में उसके बहुत फासला देखा।
ख़ुद ही झुक गयीं नज़रें उसकी ,
आईने में जब उसने अपना चेहरा देखा।
घाव भरते भी , तो भरते किस तरह ...
दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा।

Monday, October 8, 2012

"दर्द..."

"आंसुओं से ही दर्द बयां हो ये ज़रूरी तो नहीं,
मुस्कराहटें भी अक्सर दिल का हाल कह जाती हैं "

"प्लास्टिक की मुस्कान ..."

प्लास्टिक की मुस्कान मिले जिन चेहरों पर,
दोस्तों उनसे मिलना ज़रा संभालकर ,
रिश्तों की अहमियत न हो जहाँ,
कीमती आंसुओं को रखना वहाँ संभालकर "

Friday, October 5, 2012

"वह अजनबी..."

"वह अजनबी होकर भी,
मेरी दुआओं में शामिल है,
दुनिया में बहुत कम लोगों को,
यह मुकाम हासिल है "

Monday, October 1, 2012

"परियों के देश जाना तुम ..."

हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
नैनों से आंसुओं के मोती, कभी ना गिराना तुम ।
मेरी है बस यही दुआ, खुश रहो हमेशा तुम।
पलकों में ख्वाब सुनहरे सजाना तुम।
चाँद तारों से आगे परियों के देश जाना तुम।
हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
अपनापन और प्यार ही प्यार मिले जहाँ ,
सिर्फ़ ऐसी जगह घर बसाना तुम ।
खुशबुओं से महक जाये घर तुम्हारा,
आँगन में ऐसे फूल लगाना तुम ।
हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
राह में आयें कितनी उलझने, चलते जाना तुम ।
एक दिन मिलेगी मंजिल तुम्हे, देख लेना तुम ।
याद करते हैं जो तुम्हें हमेशा,
कभी-कभी उन्हें भी याद कर लेना तुम ।