Wednesday, April 26, 2017

"जुगनू.."

यादों की गठरी लिये,
यह लम्बा सफर,
रात के मुसाफिर,
जुगनू हैं हम,
आंसू बनकर;
आँखों में झिलमिलायेगें, 
तुमको बहुत याद आयेंगें।  
( शलभ गुप्ता )

Saturday, April 15, 2017

"किताब.."


मेरे दिल ने भी चाहा था कई बार,
अपनी कविताओं को एक नाम दूँ मैं।
उदास शब्दों को एक मुस्कराहट दूँ मैं।
तुम आये ज़िन्दगी में बनकर प्यार ,
तुम्हें ही पढ़ा, तुम्हें ही लिखा मैंने ,
हरेक पन्ने पर कई-कई बार।  
वक्त की आंधियां चली कुछ इस तरह,
"शब्द" सारे, ना जाने कहाँ खो गये।
मेरे हाथों में बस कोरे पन्ने ही रह गये।
हम, अपनी किताब लिखने से रह गये।
(शलभ गुप्ता "राज")

Wednesday, April 12, 2017

"दास्ताँ.."
















समुन्दर किनारे बैठकर , लहरों से बातें की बहुत ।
सांझ ढले अपने घर जाता सूरज, लौटते पंछी याद आये बहुत ।
बातें थी कुछ ख़ास दिल में ही रहीं, कहनी थी जो उनसे बहुत ।
खुद से करते रहे हम बातें, कभी रोये कभी मुस्कराये बहुत ।
कालेज के दिन, कैंटीन और "दोस्त" याद आये बहुत ।
दिल के बागवां से, यादों के फूल समेट लाये बहुत ।
आज भी आती है , उन फूलों से खुशबू बहुत ।
तितलियाँ, फूल और यादें , मेरे जीने के लिए हैं बहुत ।
और क्या कहें अब जाने दो , दास्ताँ यह लम्बी है बहुत ।

(शलभ गुप्ता "राज")

Saturday, April 8, 2017

"बेटी.."

[१]
"बेटी" सिर्फ एक शब्द नहीं,
खुशियों का पावन नाम है ।
उससे ही है पूजा-आरती,
वह घर तीरथ-धाम है ।
[२]
तुलसी का पौधा ज़रूरी नहीं,
जहाँ बेटी का जन्म हो जाता है ।
जिस घर में होती है "बेटी",
वह घर मंदिर हो जाता है । 

(शलभ गुप्ता)