Saturday, February 28, 2009

हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ..........

कल रात तेरी यादों ने सताया बहुत ,
हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ,
“राज ” को रुलाया बहुत ।
यूँ तो हवा थी थमी हुई मगर,
उम्मीद का दिया टिमटिमाया बहुत।
बहुत छोटी है जिंदगी की किताब मेरी ,
एक ही पन्ने पर अटकी है साँस मेरी ,
लहू से लिखा है , जिस पर तेरा नाम बहुत।
मिल न सके हम , बिछुड़ना पड़ा हमें ,
किस्मत से ज्यादा शायद ,
पा लिया था मैंने बहुत ।
कल रात तेरी यादो ने सताया बहुत
हिचकियाँ सारी रात आतीं रहीं ,
“राज ” को रुलाया बहुत ।

Sunday, February 22, 2009

* * * * " अधूरे प्रश्न " * * * *

मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो

क्यों सुनाता हूँ मै कविता तुम्हें,
ख़ुद से आज पूछने दो

कभी- कभी लगता है,
प्रश्नों की किताब है ज़िन्दगी

जिंदगी के सारे प्रश्नों को ,
आज मुझसे हल करने दो,

ना जाने कैसी यह किताब है जिंदगी की ?
सारे प्रश्न हल भी ना हो पाते है,
कुछ नए प्रश्न हर बार जुड़ जाते हैं

कहाँ से आते है यह प्रश्न ,
किस्सा सारा आज मुझे समझने दो

मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो

यहाँ छोटे प्रश्नों के उत्तर भी ,
पूरे विस्तार से लिखने होते हैं

खाली स्थान वाले प्रश्नों मै भी ,
सही शब्द ही भरने होते हैं

यूँ तो आने वाले नए प्रश्नों के भी ,
सारे उत्तर हैं मेरे पास
...
मगर पहले ,
अधूरे प्रश्नों को आज मुझे हल करने दो

मत सुनो आज कोई कविता मुझसे,
सिर्फ़ ख़ुद से ही बांतें करने दो

Thursday, February 12, 2009

" * * * * १४ फरवरी २००९ * * * * "



इश्क अँधा नहीं, इश्क “मासूम” है ,
आंखों से देख कर दिल में समाने वाला ,
एक खूबसूरत सा एहसास है।
खुशनसीब हैं वो लोग , जिनके पास यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “खामोश” है ,
बिना कुछ कहे बहुत कुछ समझने का एहसास है।
खुशनसीब है वो लोग , जिनके साथ यह एहसास है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क “इंतज़ार” है ,
किसी नज़र को, आज भी किसी का इंतज़ार है।
खुशनसीब है वो लोग ,
जो आज भी करते किसी का इंतज़ार है।
इश्क अँधा नहीं , इश्क एक “कसम” है,
खुशनसीब हैं वो लोग, जिनके लिए
किसी की आँखें आज भी नम हैं ।
इश्क , “राज” के सपनों में आने वाली
एक खूबसूरत परी की ,
प्यारी सी एक "प्रेम कहानी" है।
खुशनसीब हैं , वो लोग जिनको
आज भी याद वो कहानी जुबानी है।

Wednesday, February 11, 2009

हर किसको अपना समझ लेते है. .....

"हर किसी को अपना समझ लेते है,
इस तरह फिर दिल को सज़ा देते हैं ,
गलती यह हम बार-बार करते हैं ,
आँखें रोंती हैं , फिर उम्र भर
लब मगर हमेशा मेरे मुस्करातें हैं "

Tuesday, February 10, 2009

घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,


घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,
आँगन के पौधे बहुत याद आने लगे,
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
सूरज की तेज तपन में थोड़े झुलसे तो होंगे,
बारिशों के मौसम में बहुत भीगे तो होंगे,
जाडों की सर्द हवाओं में भी स्कूल गए तो होंगे।
लगता है वक्त की आग में तप कर ,
अब तो "सोना" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

वो मुझे बहुत याद करते तो होंगे,
कलेंडर को बार-बार देखते तो होंगे।
आंखों से आंसू थम तो गए होंगे,
लोरियों के बिना ही, अब सो जाते तो होंगे।
पर शायद कभी -कभी रातों को, वो जागते तो होंगे।
आँधियों का सामना वो करते तो होंगे,
पतझड़ के मौसम में तोडे टूटते तो होंगे,
बसंत ऋतू में हर तरफ़ महकते तो होंगे।
लगता है हर मौसम में ढल कर अब तो,
मेरे लिए "ल्पवृक्ष" बन गए होंगे।
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

नाज़ुक सी टहनियों पर नन्ही-नन्ही पत्तियां,
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ
उनकी खुशियों में सब खुश तो होंगे,
सारी बातों को अब वो समझते तो होंगे।
लगता है जिन्दगी के इम्तहान में पास होकर,
मेरे लिए "कोहिनूर" बन गए होंगे.

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,

मेरी कविताओं को नए अर्थ दे गया कोई,
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
मन के आँगन में गूंज रहे साज़ नए संगीत के,
दिल की दहलीज़ पर आकर दस्तक दे गया कोई।
धीरे- धीरे से चलकर, दबे पाँव करीब आकर
छ्म से पायल बजा गया कोई।
ख़ुद को भी हम लगने लगे अच्छे अब तो,
बार-बार आईने में चेहरा देख रहा कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।
ज़िन्दगी की तेज तपन में,
बादल बनकर बरस गया कोई।
खोये- खोये से लम्हों को यादगार बना गया कोई।
कुछ अलग है बात उस शक्स में ,
पहली ही मुलाकात में मुझसे ,
इतना घुल-मिल गया कोई।
अजनबी शहर में अपना बना गया कोई।


Monday, February 9, 2009

नींव का पत्थर बनना है मुझे ........


गुम्बद में नहीं लगना है मुझे,
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
सब अगर गुम्बद में ही लगेंगे,
नींव में फिर कौन से पत्थर लगेंगे
आसमान नही छूना है मुझे,
धरती में ही बस रहना है मुझे।
ख़ुद खामोश रहकर सबको
मुस्कराते हुए देखना है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
देवता के चरणों में नही अर्पित होना है मुझे।
फूलों की माला नहीं बनानी है मुझे।
शूल बनकर फूलों की हिफाज़त करनी है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।
कहीं दूर नहीं जाना है मुझे,
कश्ती में ही रहना है मुझे।
मांझी बनकर , सबको पार ले जाना है मुझे।
नींव का पत्थर बनना है मुझे।

पुराने दोस्त याद आते बहुत हैं ..........

पुराने दोस्त याद आते बहुत है ,
तनहाइयों में रुलाते बहुत है .
“राज" की जिंदगी की राहों में ,
मोड़ आते बहुत है .
किताब में रखे गुलाब के फूल
और तितलियाँ याद आते बहुत है ।
मै यहाँ ठीक हूँ , यह उनको है ख़बर ,
घर से दूर रहने पर मगर ,
हिचकियाँ आती बहुत है .
तनहाइयों में रुलाती बहुत है .
आंसुओं के समंदर में है , “राज” की जिंदगी
और लोग समझते है , हम मुस्कराते बहुत है "

Sunday, February 8, 2009

कोई किसी को याद नहीं करेगा ...........

कोई किसी को याद नहीं करेगा , यह ग़लत कहते है लोग।
ज़िन्दगी भर याद आयेगें , मुझे आप सब लोग।
शायद मुझे भी याद करेंगे , मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।
जब खामोश हो जाऊंगा मै , तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।
चला जाऊंगा इस शहर से जब मै, मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।
मैं हूँ एक पेड़ चंदन का, इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।
पत्थर पर घिस कर, जब मिट जाऊंगा मै,तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।
आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ, एक दिन टूट जाऊंगा मै ।
खुशी बहुत है , इस बात की "राज" को मगर
देखकर मुझे, अपनी मुरादें पुरी कर लेंगे लोग।

"इश्मित" की याद में ................


उदय से पहले अस्त हो गया एक तारा,
ना जाने कहाँ खो गया "इश्मित" हमारा ।
लोरियां सुना कर सुलाती थी जिसे,
चिर निद्रा में सो गया, माँ का राज दुलारा।
गगन में उड़ने के लिए, अपने पंख खोले ही थे उसने।
बेदर्द आंधी ने घोंसला गिरा दिया उसका सारा।
यूँ तो सबसे उसका रिश्ता नहीं था मगर,
उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।
सुरमई आवाज़ खामोश हो गई ,
कान्हा की बांसुरी कहीं गुम हो गई।
चला गया है उस जहाँ में वो,
जहाँ से लौट कर आता नही कोई दोबारा।

Saturday, February 7, 2009

काम ज़रा मुश्किल है ..................

अक्षरों को अनुभव से, शब्दों का रूप देना
शब्दों को अहसास से, दिल में जगह देना।
मात्राओं के मध्यम से, फिर शब्दों को सज़ा लेना।
काम ज़रा मुश्किल है, फिर भी तुम कोशिश कर लेना।
शब्दों को अपना बना कर, फिर कविता में पिरो लेना।
कविता में फिर हाल-ऐ-दिल लिख देना।
पंक्तियों में फिर , उनका ज़िक्र कर देना।
काम ज़रा मुश्किल है, फिर भी तुम कोशिश कर लेना।
कविता को फिर तुम, उनको सुना देना।
सुना ना सको , तो आँखों से ही बयां कर देना।
आंखों ही आंखों में मिल जाएगा उत्तर , देख लेना।
काम ज़रा मुश्किल है, फिर भी तुम कोशिश कर लेना।

Friday, February 6, 2009

Today, I read these beautiful lines in a newspaper....

एक सा दिल सबके पास होता है,
फिर क्यों नहीं सब पर विश्वास होता है।
इंसान चाहें कितना ही आम क्यों ना हो,
वोह किसी ना किसी के लिए ज़रूर खास होता है।

Thursday, February 5, 2009

वर्ष गुज़र रहे निरंतर ..........

वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर
टेडी - मेडी जीवन किया रेखाएं , कब होंगी सामानांतर।
भविष्य से जुडा हुआ वर्तमान है,
दिन के उजाले में भी कितना अन्धकार है ।
कई यक्ष प्रश्नों के, मै आज भी ढूंढ रहा उत्तर।
वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर,
ना जाने कब कैसे , कहानी बन गई ज़िन्दगी की,
कुछ ही रीलें शेष है, कब का बीत गया मध्यांतर ।
बनना चाहा अविरल धारा मैंने, पहाडों पर भी रस्ते बनाये मैंने,
"राज" की किस्मत भी कैसी है दोस्तों ,
पहुचें जो मंजिल के करीब, सूख गयीं सब नदियाँ और समुन्दर।
वर्ष गुज़र रहे निरंतर , धीरे- धीरे कम हो रहा अन्तर ।