Tuesday, December 26, 2023

"रिश्ते संभालते रहिये.."

कभी कभी अपनों से, 
मुलाकातें भी करते रहिये,
मिलना ना हो अगर, 
तो कभी कभी, 
बातें ही करते रहिये। 
और बातें ना हों अगर, 
तो मैसेज ही करते रहिये। 
रिश्ते सहेजते रहिये। 
और हाँ, कई दिनों से अगर,
बातें नहीं भी हुई तो क्या ?
कभी खुद भी कर लीजिये।
रिश्ते संभालते रहिये।
रिश्ते सहेजते रहिये। 
वर्ना अकेले रह जायेंगे। 

"बदलते रिश्ते .."

बहुत सारी बातें,
बातों में कहानियां,
कहानियों में,
आने वाले कल की,
फिर ढ़ेर सारी बातें।  
फिर ना जाने क्यों,
कब और कैसे ?
बातों से रह गए शब्द,
फिर शब्दों से, 
रह गए बस इमोजी। 
अब इमोजी से,
रह गया  only seen,
कितने बदल गए हम,
कितने सिमट गए हम।

Thursday, November 30, 2023

"मुलाकात.."

जिन्दगी के,
सफर में,
कुछ,
ऐसे भी,
रास्तों से,
गुजरे हम।
ना ही,
साथ चला कोई,
और ना ही,
रास्ते में, 
किसी से,
मुलाकात हुई।
#poet_shalabh_gupta ✍️
#जिंदगी #रास्ते #मुलाकात 


Wednesday, November 29, 2023

"मेरे सिवा.."

कल साँझ ढले एक सफर में,
"चाय" ने फिर कहा मुझसे। 
सारी दुनिया में घूम आओ तुम,
मेरे सिवा तुम्हारा कोई नहीं। 

"कवितायेँ तुम्हारी.."

तुम अब, 
खामोश रहने लगे हो। 
बातें भी,
कम करने लगे हो। 
मगर,
कवितायेँ तुम्हारी,
बहुत बोलने लगी हैं। 
मन की बातें,
कहने लगी हैं। 
कल कहा,
किसी ने मुझे। 

Tuesday, November 28, 2023

"धरोहर.."

मकान, दूकान, चांदी, सोना,
कुछ नहीं है पास मेरे। 
मैंने सहेज कर रखी हैं,
तुम्हारी यादें। 
डायरी के कई खाली पन्ने,
और उन कोरे पन्नों में,
बुकमार्क की तरह,
रखे हैं मैंने,
चॉकलेट के खाली रैपर,
और कुछ सूखे हुए,
फूल गुलाब के।
यह फूल आज भी,
महक रहें हैं,
तुम्हारी यादों से। 
मैंने सहेज कर रखी हैं,
कुछ लिखी हुई,
अधूरी प्रेम कवितायेँ। 
कुछ अनकहे शब्द,
जिन्हें अब कहने,
और लिखने की,
ज़रूरत ही नहीं। 
मैंने सहेज कर रखे हैं,
कुछ unseen messages,
कुछ sorry,
कुछ thank you,
यही है धरोहर,
मेरी ज़िन्दगी की। 
और यही है,
बस वसीयत मेरी। 

(सर्वाधिकार सुरक्षित : शलभ गुप्ता ) 

Monday, November 27, 2023

"रेत के किनारे..'

भीगने से,
रह जाते हैं,
जो रेत के किनारे। 
उनके लिए,
बरसती है बारिश,
बार बार,
उस शहर में। 

(मुंबई की बारिश पर लिखी कुछ पंक्तियाँ.. )
कल भी बारिश हुई बहुत मुंबई में.. 

Saturday, November 25, 2023

door not closed..

दरवाजा बंद देखकर,
वो खड़खड़ाता रहा,
देर तलक।  
भिड़े थे बस, 
जरा से, 
बंद नहीं थे मगर,
ठीक से उसने, 
देखा ही नहीं। 

Friday, November 24, 2023

"ख़ामोशी .."

घने कोहरे का मौसम,
अभी तो आया नहीं है। 
फिर यह आगे का रास्ता,
दिखाई देता क्यों नहीं है।
ऐसा मैंने कुछ कहा नहीं,
कुछ शब्दों के अर्थ होते नहीं। 
कोई बात नहीं है फिर भी,
लबों पर हंसी क्यों नहीं है। 
यह कैसी ख़ामोशी है,
साथ सब चल रहें हैं मगर,
भीड़ भरे रास्तों पर "शलभ",
एक दूसरे से बातें क्यों नहीं हैं। 

"ना जाने क्यों ?"

कभी,
ऐसा भी होता है,
कि, 
किसी पर, 
लिखी कविता,
हम सारी दुनिया को,
सुना आते हैं। 
मगर,
बस उसी को,
नहीं सुना पाते,
जिस पर,
कविता लिखी है।

Wednesday, November 22, 2023

"Someone.."

यूँ तो,
उस शख्स से मैं,
कभी मिला ही नहीं। 
वो मेरा है,
ऐसा भी मैंने,
कभी कहा ही नहीं।  
और, 
सच कहूं तो,
ऐसी, 
कोई बात भी नहीं। 
चाहे,
कई दिनों तक,
उससे बात ना हो,
फिर भी,
चलता है।  
मगर,
फिर भी,
ना जाने क्यों,
उसे खोने से,
मेरा दिल, 
डरता है। 

"Sometimes in life.."

कभी कभी,
जीवन में,
एक लम्हा,
ऐसा भी आता है। 
जब,
अपनों की आवाजें,
शोर लगती हैं। 
और,
खामोशियों के,
सन्नाटे,
अच्छे लगते हैं। 
कवितायेँ,
कहानियां,
लिखने वालों के,
शब्द भी,
मौन रहने लगते हैं। 
अच्छा नहीं लगता है,
फिर किसी से,
बात करना।
शायद,
तुमसे भी नहीं। 
बस खुद से ही,
होती हैं ढेरों बातें। 
कभी अपने ही,
हाल पर ही,
मुस्कराते हैं। 
ऊपर वाले ने,
हमें आँखें तो दीं,
मगर,
आसूं नहीं दिए। 
और वैसे भी,
कहते हैं कि,
कवियों के शब्द,
उनके 
आसूं ही तो होते हैं। 
दिल के हाल,
फिर कागज़ पर,
बयां होते हैं। 
लिखना है अभी,
बहुत कुछ। 
मगर,
शेष फिर। 
 

Monday, November 20, 2023

International Men's Day

हमारा दिन, 
कौन मनाता है साहब !
हमारा दिन क्या मनाना,
और हमें कौन मनाता है,
हमें तो रूठने का भी, 
अधिकार नहीं है।    

(अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस १९ नवम्बर २०२३ को लिखी पंक्तियाँ )

Thursday, November 16, 2023

"दीवारें.."

अब किससे करेंगें, 
हम दिल की बातें। 
उससे गले मिलकर,
खूब रो लेते थे हम। 
नया paint हुआ है,
जब से मेरे घर में। 
बदल गयीं हैं दीवारें,
फिर हो गए अकेले हम। 

"आंसू.."

कल शाम,
मेरे शहर में हुई, 
बारिश से,
उधार ली हुई बूँदें,
मेरे बहुत काम आयीं।
मेरी पथराई,
आँखों के वास्ते,
आंसू बनाने के काम आयीं। 

"limited edition.."

दुनिया का बदलता रुख देखकर,
अब हम limited edition हो गए। 
ज़िन्दगी के बिखरे पन्नों को समेट कर,
अब हम जिल्द वाली किताब हो गए। 

"बातें.."

कभी कभी,
मोबाइल को,
स्विच ऑफ करना,
अच्छा लगता है। 
फिर दीवारों से,
बहुत देर तलक,
खुद की बातें करना,
अच्छा लगता है।  

"तितली.."

हर पल में एक ज़िन्दगी जिया करो,
कुछ लम्हें खुद को भी दिया करो। 
कभी कभी ऑफलाइन भी रहा करो,
तितली बनकर आसमान में उड़ा करो। 

"खालीपन.."

त्यौहार बीते,
बच्चे लौटे। 
घर में,
फिर वही,
खंडहरों सा,
खालीपन। 

"unseen.."

कुछ इस तरह भी,
सामाजिक दस्तूर,
निभाने चाहिए। 
कुछ messages,
unseen,
रहने चाहिए।   

दो पंक्तियाँ ..

हम आज भी वहीं ठहरें हैं,
मेरे आंसुओं पर पहरे हैं। 

दीवारों के तो जाले हट गए,
मन के हटें तो कुछ बात बने। 

Thursday, November 9, 2023

व्हाट्स एप का स्टेटस..

अपना व्हाट्स एप का स्टेटस,
जल्दी जल्दी बदल रहा है वो। 
कहना कुछ चाहता है मगर,
लिख कुछ और रहा है वो। 

Monday, November 6, 2023

"खुशियाँ .."

भले ही,
अकेले रहना,
सुहाता हो। 
साथ, 
किसी का,
मन को,
ना भाता हो। 
फिर भी,
जीने के लिए,
खुद ही,
ढूढ़ने पड़ते हैं,
मुस्कराने,
के बहाने। 
क्योंकि,
खुशियों का,
कोई,
गूगल मैप,
नहीं होता।  
(कवि : शलभ गुप्ता)

Tuesday, October 31, 2023

"शायद, ऐसा ही हूं मैं.."

ना कभी, 
सोने की चमक ने,
भरमाया मुझे। 
ना कभी,
चांदी की चांदनी ने।
इस अजनबी दुनिया में,
तुम्हारा ही साथ बस,
आज तक भाया मुझे।
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।
ना रंगों की पहचान मुझे,
ना ब्रांडेड कपड़ों का,
है शौक मुझे।
ना अच्छे जूतों की,
पहचान मुझे।
दर्जी के सिले हुए,
कपडें ही अक्सर,
पहनता हूं मैं।
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।
मोटी मोटी किताबें, 
नहीं पढ़ी मैंने।
बड़ी बड़ी डिग्रियां भी,
नहीं हैं पास मेरे।
हां बस,
लोगों के चेहरों को, 
अच्छी तरह से,  
पढ़ लेता हूं मैं।
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।
महफिलों का भी,
शौक नहीं है मुझे।
ना ही मंचों से,
कविता पढ़ने का।
अपनी लिखी कविताएं,
तुमको ही तो,
बस सुनाता हूं मैं।
भीड़ में भी अक्सर,
तन्हा रह जाता हूं मैं।
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।
हर रोज,
"good morning",
के मैसेज नहीं करता मैं।
जो मेरा है,
मेरा ही रहेगा।
हर दिन जताने की,
आदत नहीं है मुझे।
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।
व्हाट्सएप और मेसेंजर पर,
कितनी भी चैट कर लूँ। 
जब तक न सुनूँ आवाज़,
दिन में एक बार मैं, 
अच्छा नहीं लगता मुझे। 
पता नहीं कैसा हूं मैं,
शायद, ऐसा ही हूं मैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित : 
© शलभ गुप्ता 

Wednesday, October 25, 2023

"दो कप चाय.."

शायद,
आज तक,
चाय बनानी, 
नहीं आयी मुझे। 
एक कप बनाता हूँ,
मगर,
हमेशा की तरह,
दो कप,
बन जाती है मुझसे। 
आधा कप पानी, 
को उबालकर,
उसमे फिर,
आधा कप दूध,
मिलाकर,
आधा चम्मच चीनी,
एक चम्मच पत्ती और,
थोड़ा अदरक डालकर, 
ही तो बनाता हूँ चाय। 
फिर भी,
दो कप चाय,
बन जाती है। 
पता नहीं क्यों ?
श्रीमती जी,
चाय पीती नहीं।
दोस्त बहुत मसरूफ रहते हैं,
अपने कारोबार में। 
मिलने अब आते नहीं। 
फिर भी दो कप चाय,
बन जाती है मुझसे। 
पता नहीं क्यों ?
यूँ तो कोई आएगा नहीं,
अब मिलने मुझसे। 
इंतज़ार भी नहीं है,
किसी का अब मुझे। 
कोई आने वाला भी नहीं है,
फिर भी ना जाने क्यों,
दो कप चाय,
बन जाती है मुझसे। 
पता नहीं क्यों ?  

Wednesday, October 18, 2023

मेरे हिस्से की सांसें ..

शायद बहुत कुछ,
बाकी है अभी। 
मेरे हिस्से की,
गुनगुनी धुप,
मेरे हिस्से की सांसें। 
शायद लिखनी है अभी,
कुछ नई प्रेम कवितायेँ। 
शायद मिलना है अभी,
कुछ नए दोस्तों से,
करनी है उनसे,
ढेर सारी बातें। 
शायद किसी दिन,
चलना है मुझे,
संग तुम्हारे,
समुंदर किनारे,
देर तलक। 
एक जीवन में मिला,
मुझे दूसरा जीवन। 
बहुत कुछ बदल गया,
इस एक वर्ष में। 
शुक्रिया ज़िन्दगी। 
शायद कहना है,
अभी बहुत कुछ,
शेष लिखूंगा फिर बातें।    

कुछ लोग..

बिना मिले, बिना देखे हुए,
कभी कभी, कुछ लोग,
ना जाने कब,
धीरे धीरे हमारी,
ज़िन्दगी बन जाते हैं। 
हम जान भी नहीं पाते हैं। 
चाहे उनसे बात हो,
या न हो फिर भी,
जीने का सबब,
बन जाते हैं। 
मिले नहीं कभी मगर,
फिर भी अक्सर याद आते हैं। 
कभी कभी, कुछ लोग,
ज़िन्दगी बन जाते हैं।  

(शेष फिर... अगली कविता में.)

माँ, तुम कहाँ हो ?

माँ, तुम कहाँ हो ?
मैं जानता हूँ आप,
कई वर्ष पूर्व हम सबसे,
बहुत दूर चले गए हो। 
तुम्हारे हाथ के बने स्वेटर ही,
तो पहनते थे हम बचपन में। 
सर्दियों का मौसम आने को है,
थोड़ा बीमार भी रहता हूँ अब,
ठण्ड भी कुछ ज़्यादा ही लगती है। 
आपका आशीर्वाद और,
दवाइयों का डिब्बा अब,
मेरे साथ साथ चलता है। 
तुम तो सब जानती हो माँ,
मुझे बाजार की चीजें पसंद नहीं,
रेडीमेड गर्म कपड़ों में भी,
वो बात नहीं आती है। 
चाहे सपनों में ही आ जाना,
अपने हाथों से मेरे लिए,
एक "स्वेटर" बुन जाना। 


समुन्दर के शहर में..

ना जाने क्या बात है,
इस समुन्दर के शहर में। 
जितना भूलना चाहो,
उतना याद आता है।  

शाम की "चाय"

कुछ इस तरह से भी,
साथ निभाती है ज़िन्दगी। 
शाम की "चाय" बनकर,
जब मिल जाती है ज़िन्दगी। 

Thursday, October 12, 2023

"अपनों की आवाजें,.."

व्हाट्सअप के,
इस दौर मैं,
अपनों की आवाजें,
कहीं गम हो गई हैं। 
कुछ दिनों के लिए ही सही,
यह बंद हो जाये,
तब शायद,
हम दोस्तों से,
बातें कर पाएं,
उनकी आवाज को,
हम सुन पाएं।  

Thursday, October 5, 2023

"सच्चे दोस्त.."

इस मतलबी दुनिया में,
झूठे हैं सब रिश्ते सारे। 
सच कहते हो "शलभ",
बेजुबां हैं सच्चे दोस्त हमारे। 



Monday, October 2, 2023

"अनुवाद.."

सरल है बहुत किसी के,
शब्दों का अनुवाद करना। 
ख़ामोशी को समझना "शलभ",
हर किसी के बस की बात नहीं। 

विगत ३० सितम्बर को अनुवाद दिवस था,
तब यह पंक्तियों का सृजन हुआ। 

Monday, September 25, 2023

"दिल की बात.."

मतलबी दुनिया में अब,
किससे बात की जाए।
छज्जे पर रखे पौधों से,
दिल की बात की जाए।
#poet_shalabh_gupta #मतलबी #दुनिया #दिल #बात #पौधे #घर


Thursday, September 21, 2023

"दिल मेरा.."

जब से Stent पड़ें हैं मेरे सीने में,
दिल मेरा बहुत Stunt करता है। 
दिमाग कहता है जरा "हौले चलना",
कमबख्त और तेजी से धड़कता है। 

#पोएट_शलभ_गुप्ता 

"श्री गणेश चतुर्थी.."

बस यही कामना प्रभु आपसे,
इस बार सबके घर जाना। 
उनके आँगन में खुशियों के,
हरसिंगार सजाकर आना। 

आप सभी को श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक मंगलकामनाएं. 


Thursday, September 14, 2023

"गुमशुदा.."

गुमशुदा हूँ मैं कई बरसों से,
मिल जाऊं तो, घर छोड़ आना। 
#Poet_Shalabh_Gupta 

#उत्तरप्रदेश #गुजरात #महाराष्ट्र #उत्तराखण्ड 
#मुरादाबाद #सूरत #मुंबई #भीमताल #भवाली 

ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहे !






"नई कवितायेँ .."

{१]
इन पहाड़ों की पगडंडियों पर,
कुछ दूर अकेले चलने दो मुझे। 
पुरानी डायरी के खाली पन्नों पर,
कुछ नई कवितायेँ लिखने दो मुझे। 

[२]
ढूंढ रहा हूँ खुद को बरसों से,
शयद आज कहीं मिल जाऊं मैं। 



Friday, September 1, 2023

"प्रिय सितम्बर.."

प्रिय सितम्बर !
कैसे हो तुम।
कहां रहे इतने दिन,
बहुत समय बाद,
मिले हो तुम।
चलो, घर चलो।
चाय साथ पियेंगे,
शिकवे शिकायत,
मिल कर दूर करेंगें।
कुछ कहना तुम बातें,
कुछ हम अपनी कहेंगे।

#poet_shalabh_gupta 




Friday, August 18, 2023

"भीमताल .."

भीमताल के प्रवास के समय....... 
सफर यूँ ही चलते रहें... 
हम बस यूँ ही लिखते रहें। 

[१]
हम समुन्दर का शहर,
छोड़ आये तो क्या ?
बादल बनकर सागर,
मुझसे मिलने आया है। 

[२]
इन पहाड़ों से मेरे रिश्ते बड़े पुराने हैं। 
सफर के रास्ते सारे  जाने पहचाने हैं। 

[३]
कभी नहीं लुभाये मुझे, वो सीधे साधे रास्ते। 
खुद के लिए चुने मैंने, पहाड़ों के सर्पीले रास्ते। 




"बारिश .."

अपनेपन का अहसास दे जाते हो,
ना जाने तुम कहाँ से आ जाते हो। 
कभी यादें कभी बारिश बनकर,
सफर में साथ निभाने आ जाते हो।  

Monday, March 20, 2023

"पूज्य पापा जी.."

पूज्य पापा जी की नवम पुण्य तिथि पर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित। 
18 मार्च 2023

[१] 
कुछ देर के लिए ही सही, मैं बचपन में लौट जाऊं। 
आपकी ऊँगली थामकर, आज  मेले में घूम आऊं। 

[२]
यूँ तो आपकी दुआयें हमेशा साथ चलती हैं। 
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं। 

"ज़िन्दगी.."

 यह उन दिनों की बात है,
जब फुर्सत में थी ज़िन्दगी। 
अब तो खुद को देखे हुए,
एक ज़माना बीत गया। 

Saturday, March 11, 2023

"बातें ..."

मित्र मेरे जब तुम,
मुझसे मिलने आना। 
तो अपना मोबाइल,
घर छोड़ कर आना। 
करनी हैं आज तुमसे,
ढेर सारी बातें मुझे। 

Monday, March 6, 2023

"खुदगर्ज़.."

थोड़ा खुदगर्ज़ बन कर देखते हैं। 
खुद के लिए जी कर देखते हैं। 
कांधा, दर्द और आंसू भी अपने,
दिल को पत्थर कर के देखते हैं। 
अपने ग़मों को छुपा के देखते हैं। 
झूठ मूठ मुस्करा के देखते हैं। 

Wednesday, March 1, 2023

"लिमिटेड एडिशन.."

दुनिया का बदलता रुख देखकर,
अब हम लिमिटेड एडिशन हो गए। 
ज़िंदगी के बिखरे पन्नों को समेटकर,
अब हम ज़िल्द वाली किताब हो गए।