Sunday, August 29, 2010

"कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे..."



कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
लिखा है - छोटा भाई मेरा कहना मानने लगा है।
पहले आपकी उँगलियाँ पकड़कर चलते थे हम दोनों,
अब वह , मेरी ऊँगली पकड़कर चलने लगा है।
आपके पीछे हम कम झगड़ते हैं , सारे बातें ख़ुद ही निबतातें हैं।
हमे मालूम है, मम्मी हमारी शाम को किससे शिकायत करेगी ?
और यहाँ सब ठीक है मगर, मम्मी कभी-कभी बहुत उदास हो जाती है।
यूँ तो हँसा देते हैं हम उनको मगर,
तकिये में चेहरा छिपा कर फिर वो सो जाती हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
जब कभी चाचू , दादा जी का कहना नहीं मानते हैं,
उस दिन आप , सबको बहुत याद आते हैं।
आप थे तो आँगन में रखे पौधे भी, हर मौसम में हरे भरे रहते थे।
आप नहीं तो इन बरसातों में भी, सारे फूल मुरझाये से रहते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
वैसे तो आपकी "बाइक" चलाना सीख गया हूँ मगर,
भीड़ भरी सड़कों पर आप बहुत याद आते हैं।
स्कूल की फीस , ख़ुद जमा कर देता हूँ
"रिपोर्ट कार्ड" पर भी मम्मी साइन कर देतीं हैं मगर,
"पेरेंट्स मीटिंग्स" में आप बहुत याद आते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर.......
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
और पापा , कल तो "एच पी" की गैस भी बुक कराई मैंने
यूँ तो टेलीफोन और बिजली का बिल भी जमा कर सकता हूँ
मगर, घर से ज्यादा दूर मम्मी भेजती नहीं हैं।
यूँ तो मम्मी हर चीज दिला देती हैं, कभी-कभी हम जिद कर जाते हैं।
और यहाँ सब ठीक है मगर ........
"डेरी मिल्क " अब कम खा पाते हैं।
कल बड़े बेटे का ख़त मिला मुझे, लगता है सचमुच बड़ा हो गया है।
अक्सर , देर रात फ़ोन आपका आता है ।
हम जल्दी सो जाते हैं , मम्मी सुबह बताती हैं।
कभी दिन में भी फ़ोन किया करो, बच्चों की बातें सुना करो।
अच्छा , यह लिखना पापा अब कब आओगे ?
होली पर घर आ जाना ।
मम्मी को "रंग" अब नहीं भाते हैं।
"रंग" तो आप ही दिलाना।
होली पर घर आ जाना ।

Friday, August 27, 2010

प्रिय विवेक जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार !
"आने वाला सुनहरा कल,
आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
आकाश आपने ही छूना है ।
इतिहास नया लिखना है ।
सार्थक उद्देश्य के साथ,
ह्रदय में भर कर आत्मविश्वास ,
बस धीर-धीरे दौड़ना है ।
उपलब्धियों के नये पंख लगाकर,
जीवन रुपी आकाश में ,
सफलता के सर्वश्रेष्ठ उत्कर्ष तक उड़ना है।
यकीं है पूरा है मुझको .....
आकाश आपने ही छूना है ।
इतिहास नया लिखना है ।

मेरे और हमारे ब्लॉग परिवार की ओर से आपको, आपके जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

आने वाला प्रत्येक नया दिन , आपके जीवन में असीम शुभकामनाएँ ओर मंगलकामनाएँ लेकर आये । ऐसी मेरी प्रभु से प्रार्थना है।

आपका ही,
शलभ गुप्ता

Friday, August 20, 2010

"पुराने दोस्त याद आते बहुत है .."

पुराने दोस्त याद आते बहुत है ,
तनहाइयों में रुलाते बहुत है .
“राज" की जिंदगी की राहों में ,
मोड़ आते बहुत है .
किताब में रखे गुलाब के फूल
और तितलियाँ याद आते बहुत है ।
मै यहाँ ठीक हूँ , यह उनको है ख़बर ,
घर से दूर रहने पर मगर ,
हिचकियाँ आती बहुत है .
तनहाइयों में रुलाती बहुत है .
आंसुओं के समंदर में है , “राज” की जिंदगी
और लोग समझते है , हम मुस्कराते बहुत है "

Wednesday, August 18, 2010

महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये ।




महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
जिन्हें उजाला करना था अपने घरों का,
वो चिराग , हजारों घरों के बुझ गये
शमशान सा सन्नाटा है अब धरती के स्वर्ग में ,
अपने ही तो थे यह लोग, ना जाने क्यों बदल गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
"देखगें" , "करेगें" ...बस यही क्रम चलता रहा
हालात अब और भी गंभीर हो गये
सुलग रहे कश्मीर पर,
सभी राजनैतिक दल अपनी रोटियाँ सेकने लग गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
अभी भी वक्त है ,
स्थितियाँ और परिस्थितियाँ बदल सकती हैं
केसर की घाटियाँ फिर से महक सकतीं है
एक बार फिर से घाटी को सेना के हवाले कर देना है
राष्ट्र विरोधी ताकतों को जवाब मुहँ तोड़ देना है
अरे मुट्ठी भर लोगों, जरा होश में आओ
इतिहास गवाह है,
भारत जब अपनी पर जाये
अच्छे- अच्छे सीधे हो गये
महज़बी उन्माद में केसर के फूल झुलस गये
अपने ही तो थे यह लोग, ना जाने क्यों बदल गये

Monday, August 16, 2010

मेरी कर्नाटक यात्रा - मेरे मित्र शंकर नारायण जी के साथ , एक यादगार यात्रा



शहर के कोलाहल से दूर, ज़िन्दगी की तलाश में,
सूरज की तेज़ तपन से दूर, पेडो की ठंडी छांव में ,
चलते चलते गए हम "शंकर जी" के गाँव में।
वैसे तो कुछ दिन ही रहे हम उनके गाँव में,
खुशियाँ सारी समेट ली हमने उनके गाँव में,
चलते चलते गए हम "शंकर जी" के गाँव में
प्राकृतिक नज़ारे हर तरफ़ थे भरपूर ,
कदमो में था समुन्दर, पहाड़ थे ज़रा हमसे दूर,
सर्पीले रास्तों पर, नारियल के पेड़ थे भरपूर,
तस्वीरे हजारों कैद कर ली हमने अपनी आँखों में
फिर आई सुरमई गीतों की शाम सुहानी,
गूँज रही है धुन अब तक कानों में,
नये लोगो से भी हुई मुलाकात,
जीने का नया फिर अहसास जगा ,
मिलकर उनकी बातों में,
तस्वीरे हजारों कैद कर ली हमने अपनी आँखों में
मन तो आख़िर मन है,
ठहर जाऊ यही, लगा सोचने
क्या रखा है संसार की बातों में,
तस्वीरे हजारों कैद कर ली हमने अपनी आँखों में
सिर्फ़ तन लेकर लौटा हूँ , मन रह गया वही ,
बीते हुए पल याद आते है बार- बार ,
सफर का हाल सुनाता हूँ जब में ,
तुमको बातों - बातों में
तस्वीरे हजारों कैद कर ली हमने अपनी आँखों में

Sunday, August 8, 2010

"कल रात हम सो नहीं पाये ..."



कल रात हम सो नहीं पाये।
यादों के बादल, घिर-घिर के आये।
बीतें हुए लम्हों की, चमकती रहीं बिजलियाँ।
दिल के आसमां पर, तुम इन्द्रधनुष बन कर छाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
मेरे सिरहाने आकर बैठ गए, तुम्हारी यादों के साये ।
अब इन आंसुओं को कौन समझाये ,
तुम जब याद आये, बहुत याद आये।
कल रात हम सो नहीं पाये।
राह में हम क्या ठहरे कुछ लम्हों के लिये,
तुम बहुत आगे चले आये।
फिर कभी हम-तुम , मिल नहीं पाये।
फिर भी कुछ अलग है तुम में बात, मेरे दोस्त।
हम आज तक तुम्हें भूल नहीं पाये।
कल रात हम सो नहीं पाये।