Friday, June 13, 2025

भावपूर्ण_श्रद्धांजलि

ऐसे ही मोड़ कर मेज पर रख दिया।
नहीं पढ़ा गया मुझसे आज का अखबार।
#poet_shalabh_gupta ✍️
#13June2025 

लिखते लिखते कांप रहे हैं मेरे हाथ।
कल फिर आयेगा हादसों का अखबार।
#poet_shalabh_gupta ✍️
#12june2025 

अहमदाबाद विमान दुर्घटना ✈️✈️
#AhmedabadPlane 
#AhmedabadPlaneCrash
#AirIndiaAI171 #ahmedabad 
#planecrash #AirIndia


Wednesday, June 11, 2025

अख़बार..

आज, अख़बार नहीं आया घर पर। 
सच, बहुत सकून  रहा दिन भर।

Friday, June 6, 2025

जन्मदिन मुबारक..

ज़िन्दगी की तेज़ तपन में,
अपनेपन की छाँव मिले।
उम्र के हर मोड़ पर,
ख़ुशियाँ बेमिसाल मिलें।
तितलियों को उड़ने के लिये,
नये- नये आसमान मिलें।
सुख और समृद्धि हमेशा,
आपके घर-आँगन में मिले।
अगणित वर्षों तक चलते रहे,
बधाईयों के यह सिलसिले।
#shalabh_gupta ✍️ 

Friday, May 30, 2025

"नए सवेरे .."

साथ साथ चलकर अँधेरे के,
मिलेंगें नए सवेरे रौशनी के। 
सलामत रखना मेरे हौसले को,
कई फ़र्ज़ निभाने हैं जिंदगी के। 

Tuesday, May 20, 2025

"मेरे प्रिय अमलतास.."

मेरे प्रिय, 
अमलतास!
तुम्हारा शुक्रिया।
इसी तरह मुझे तुम,
राह दिखाते रहना।
सूरज की तेज तपन में,
तुम और निखरते रहना।
मुझे भी सिखा दो तुम,
दर्द में मुस्कराते रहना।
#poet_shalabh_gupta ✍️

जब भी मिल जाते हैं मुझे,
बैठा लेते हैं अपनी छाँव में। 
करते हैं फिर ढेरों बातें,
वृक्ष यह अमलतास के।
#poet_shalabh_gupta ✍️

#MyMobilePhotography 
#saturdaymorning #SaturdayMotivation 
#GoldenShowerTree #अमलतास
#सूरज #तपन #निखरना #दर्द 
#मुस्कुराना #छांव #बातें


Tuesday, December 3, 2024

"कुछ पंक्तियाँ.."

 [१]

खुली किताब की तरह है जीवन मेरा। 

मोबाइल भी तो लॉक नहीं रहता मेरा। 

[२]

हमने तो बस स्टेटस ही बदले। 

और उसने बदल लिए रास्ते।

 

Saturday, November 30, 2024

शीर्षक: "स्वेटर"

माँ, तुम कहाँ हो ?
मैं जानता हूँ आप,
कई वर्ष पूर्व,
हम सबसे,
बहुत दूर चले गए हो।
सर्दियों का मौसम,
अब आने लगा है।
थोड़ा बीमार भी रहता हूँ,
और ठण्ड भी,
कुछ ज़्यादा ही लगती है। 
आपका आशीर्वाद और,
दवाइयों का डिब्बा,
मेरे साथ साथ चलता है। 
तुम तो सब जानती हो माँ,
मुझे बाजार की चीजें पसंद नहीं,
रेडीमेड गर्म कपड़ों में भी,
वो बात नहीं आती है। 
चाहे सपनों में ही आ जाना,
अपने हाथों से मेरे लिए,
एक "स्वेटर" बुन जाना।
#poet_shalabh_gupta ✍️


Thursday, November 21, 2024

"मेरी घड़ी"

वैसे तो मैं,
समय की,
बहुत कद्र करता हूँ। 
हर दिन हाथ में,
घड़ी पहनकर ही निकलता हूँ। 
घड़ी का समय भी,
ठीक ही रखता हूँ। 
फिर भी, 
ना जाने क्यों ?
कुछ दिनों में,
मेरी घड़ी का समय,
५ -१०  मिनट पीछे हो जाता है। 
फिर धीरे धीरे ,
और पीछे होने लगता है। 
ना जाने क्यों ? 
यूँ तो कई बार,
घड़ीसाज को,
अपनी घड़ी मैंने,
दिखाई भी थी। 
परन्तु उसको,
कोई कमी नज़र,
नहीं आई थी। 
सच कहूं तो,
"समय" के साथ मेरी,
 कभी बनी नहीं।
"समय" के साथ,
कभी नहीं चल पाया मैं। 
शायद ही कभी "समय" ने 
मेरा साथ दिया हो। 
मुझे याद नहीं। 
ना जाने क्यों ?
समय का साथ,
निभाना हो,
या किसी के साथ चलना हो,
हमेशा,
देर होती रही मुझसे। 
मोड़ थे बहुत,
और संकरे थे रास्ते। 
और मैं,
अकेले ही,
ज़िन्दगी का सफर,
तय करता रहा। 


(शेष फिर कभी )

Tuesday, November 19, 2024

"अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस"

हमारा क्या है साहब ,
हम तो बस पुरुष हैं। 
अरे कौन मनाता है,
हमारा दिन ?
कोई नहीं मनाता,
हमारा दिन। 
क्या हमारा भी, 
कोई दिन होता है।
अरे हमें तो,
अपनी पसंद के,
कपड़ें पहनने का भी,
अधिकार नहीं। 
हम तो,
खुद भी नहीं मनाते हैं। 
आप तो सब जानते हैं,
गरीब का
कोई दिन नहीं होता। 
हमारा दिन क्या मनाना ?
और कौन हमें मनाता है। 
मनाना तो छोड़िये जनाब,
अरे हमें तो,
रूठने का भी,
अधिकार नहीं। 

(अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस १९ नवंबर पर रचित कविता)

Saturday, November 16, 2024

"नई कविता"

वक्त की आपा धापी में,
जब नई कवितायेँ,
नहीं लिख पाता हूँ मैं। 
तब कमरे के कोने में लगी,
कानिस पर रखी हुई,
पुरानी कविताओं की,
डायरी पर जमी,
धूल की परतों को,
फिर से साफ करके,
उसी जगह रख देता हूँ मैं। 
और इस तरह,
बिना लिखे ही,
डायरी के बचे हुए,
कुछ कोरे पन्नों पर,
फिर से एक नई कविता,
लिख देता हूँ मैं।