भीमताल के प्रवास के समय.......
सफर यूँ ही चलते रहें...
हम बस यूँ ही लिखते रहें।
[१]
हम समुन्दर का शहर,
छोड़ आये तो क्या ?
बादल बनकर सागर,
मुझसे मिलने आया है।
[२]
इन पहाड़ों से मेरे रिश्ते बड़े पुराने हैं।
सफर के रास्ते सारे जाने पहचाने हैं।
[३]
कभी नहीं लुभाये मुझे, वो सीधे साधे रास्ते।
खुद के लिए चुने मैंने, पहाड़ों के सर्पीले रास्ते।