Saturday, December 29, 2012

"बेदर्द आंधी .."

गगन में उड़ने के लिए, अपने पंख खोले ही थे उसने।

बेदर्द आंधी ने घोंसला गिरा दिया उसका सारा।

यूँ तो सबसे उसका रिश्ता नहीं था मगर,

उसके दुख में डूब गया जहाँ सारा।

चली गयी है उस जहाँ में वो,

जहाँ से लौट कर आता नही कोई दोबारा।

Tuesday, December 11, 2012

"मेरे बस में हो अगर..."

मेरे बस में हो अगर, तो कोहरे से भरे इन जाड़ों के मौसम में,
माँ-पापा के लिये , यहाँ से "कुछ  धूप" भेज दूँ !
मेरे बस में हो अगर, तो सूरज की तेज तपन में,
बच्चों के लिए, यहाँ से "कुछ छाँव" भेज दूँ !
मेरे बस में हो अगर, तो पतझड़ के मौसम में ,
हमसफ़र के लिए, यहाँ से "कुछ बसंत" भेज दूँ !

 

Saturday, December 8, 2012

""तुलसी" का पौधा बनना ही होगा ..."



मेरी प्रिय "मंजरी",
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।
ना जाने कैसे अपने आप,
बिन बुलाये मेहमान की तरह,
काटों से भरे ये जिद्दी पौधे,
उग आते हैं मेरे घर में,
लहुलुहान कर देते हैं हाथ मेरे,
रोज़ ही हटाता हूँ उन पौधों को,
मगर अगले दिन,
और भी ज़्यादा उग आतें हैं ।
और अब तो,
मेरे मन को भी चुभने लगे हैं।
हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
जीवन कष्टों में ही बीत गया,
वक्त, सचमुच मुझसे जीत गया।
कुछ पल खुशियों के अब देने ही होंगें।
उम्र भर "तपती रही" ज़िन्दगी को,
अब "तपोवन" बनना ही होगा।
मेरी प्रिय "मंजरी",
इसीलिए,
मेरा अनुग्रह तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।
अब तुम्हें खिलना ही होगा।
मेरे घर के आंगन में,
"तुलसी" का पौधा बनना ही होगा।

"तकदीर ..."

"तुझसे बिछुड़ना मेरी तकदीर में नहीं,
देख किसी मोड़ पर ना मिल जाये फिर कहीं।"

Tujhse Bichudna Meri Taqdeer Me Nahi,
Dekh Kisi Mod Pe Naa Mil Jaaye Phir Kahi..

Monday, November 19, 2012

"शायद...."

कुछ दिनों से कुछ खबर नहीं,
खामोश हूँ  मगर बेखबर नहीं।
क्या तुमने सुना मैंने, जो अब तक कहा नहीं,
शायद कुछ  शब्दों  की होती जुबान नहीं।

Monday, November 12, 2012

"एक ही दीप काफी है..."

"बनावटी रोशनियों की चकाचोंध में, कुछ भी दिखाई नहीं देता,
प्रेम का एक ही दीप काफी है, उम्र भर रौशनी देने के लिए। "
( शलभ गुप्ता "राज")
"Banavati Roshniyon Ki Chackachondh Me, Kuch Bhi Dikhayi Nahi Deta,
Prem Ka Ek Hi Deep Kaafi Hai Umrabhar Roshni Ke Liye.."

Friday, November 9, 2012

"कशमकश..."

कहीं होकर भी नहीं हूँ  और कहीं  नहीं होकर भी हूँ ,
अजीब कशमकश में हूँ कि कहाँ हूँ और कहाँ नहीं हूँ .
( शलभ गुप्ता)

"दिल ही जानता है ...."

रिश्ता सच्चा हो तो ,
दूरी का एहसास नहीं होता ..
दिल ही जानता है मगर,
जब कोई अपना पास नहीं होता।

Sunday, November 4, 2012

"अजनबी....."

मेरे शब्दों से इतना प्यार मत  कीजिये ,
अजनबी शहर में अजनबी रहने दीजिये .

Mere Shabdon Ko Itna Pyar Mat Keejiye,
Ajnabi Shahar Me Ajnabi Rahne Deejiye.

Thursday, November 1, 2012

"नादानी है यह मेरी..."

एक कोशिश है खुद से दूर जाने की ,
शब्दों से दूर जाने की,
नादानी है यह मेरी ,
खुद को समझाने की ....

Ek Koshish Hai Khud Se Door Jaane Ki,
Shabdon Se Door Jaane Ki,
Nadani Hai Yeh Meri,
Khud Ko Samjhane Ki....
 

Saturday, October 27, 2012

"पत्थर दिल .."

कुछ न कुछ तो ज़रूर ख़ास है मुझमे,

सुना है मेरी बातों से पत्थर दिल भी पिघल जाते हैं .
 

"इन्द्रधनुष ..."

आशाओं के नये इन्द्रधनुष बने,

आप सबकी दुआ रंग लायी है ,

साज के टूटे तारों को जोड़कर ,

फिर धुन एक नयी सजायी है .

 

Wednesday, October 24, 2012

"तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग ..."

कोई किसी को याद नहीं करेगा ,
यह ग़लत कहते है लोग।
ज़िन्दगी भर याद आयेगें ,
मुझे आप सब लोग।
शायद मुझे भी याद करेंगे ,
मेरे जाने के बाद "कुछ" लोग।
जब खामोश हो जाऊंगा मै ,
तब गीत मेरे गुनगुनायेंगे लोग।
चला जाऊंगा इस शहर से जब मै,
मेरे कदमों के निशान ढूढेंगे लोग।
मैं हूँ एक पेड़ चंदन का,
इसलिए मेरे करीब नहीं आते है लोग।
पत्थर पर घिस कर जब फना  जाऊंगा मै,
तब मुझे माथे पर लगायेंगे लोग।
आसमान से टूटता हुआ तारा हूँ,
एक दिन टूट जाऊंगा मै ।
खुशी बहुत है इस बात की "राज" को मगर
देखकर मुझे अपनी मुरादें पूरी  कर लेंगे लोग।
( Shalabh Gupta "Raj")
 

Saturday, October 20, 2012

"तितलियों को उड़ने दिया करो..."


तितलियों और फूलों को तुमको,
अपनी diary में रखना अच्छा लगता है।
मगर, यह मुझको ठीक लगता नहीं,
बंधनों में मत बांधों किसी को,
जिंदा ही मत मारो किसी को,
तितलियों को उड़ने दिया करो,
फूलों को महकने दिया करो।
क्योंकिं diary में रखने पर,
इन्द्रधनुषी तितलियाँ हो जाती हैं बेरंग,
फूल खो देते हैं अपनी सुगंध।
खामोश तितलियाँ , मुरझाये फूल ...
देखकर हम उदास हो जाते हैं।
चाह कर भी , हम फिर उन्हें
जीवित नहीं कर सकते ।
इसीलिए , मेरा अनुरोध स्वीकार करो,
तितलियों को उड़ने दिया करो।
फूलों को महकने दिया करो।

Sunday, October 14, 2012

"घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये ..."

कई महीनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये
घर की हर चीज़ ने पूछा, मेरे करीब आकर
आप क्यों इतने महीनों बाद आये ।
दीवारें भी मिली जी भर के गले मुझसे,
फिर देर रात आसमान से चंदा और तारे
मुझसे मिलने मेरे घर की छत पर आये ।

कई महीनों के बाद जब हम अपने घर आये,
वक्त ने बदल दिया मेरा चेहरा कुछ इस तरह,
घर के दरवाजों को भी हम मेहमान नजर आये ।

Saturday, October 13, 2012

"घर जाने के दिन जब करीब आने लगे ..."

घर जाने के दिन जब करीब आने लगे,
आँगन के पौधे बहुत याद आने लगे,
अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।
सूरज की तेज तपन में थोड़े झुलसे तो होंगे,
बारिशों के मौसम में बहुत भीगे तो होंगे,
जाडों की सर्द हवाओं में भी स्कूल गए तो होंगे।
लगता है वक्त की आग में तप कर ,
अब तो "सोना" बन गए होंगे।

अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

वो मुझे बहुत याद करते तो होंगे,
कलेंडर को बार-बार देखते तो होंगे।
आंखों से आंसू थम तो गए होंगे,
लोरियों के बिना ही, अब सो जाते तो होंगे।
पर शायद कभी -कभी रातों को, वो जागते तो होंगे।
आँधियों का सामना वो करते तो होंगे,
पतझड़ के मौसम में तोडे टूटते तो होंगे,
बसंत ऋतू में हर तरफ़ महकते तो होंगे।
लगता है हर मौसम में ढल कर अब तो,
मेरे लिए "कल्पवृक्ष" बन गए होंगे।

अब तो कुछ बड़े हो गए होंगे ,
शायद मेरे काँधे तक आते होंगे।

नाज़ुक सी टहनियों पर नन्ही-नन्ही पत्तियां,
वो खिलती कलियाँ , घर में आती ढेरों खुशियाँ
उनकी खुशियों में सब खुश तो होंगे,
सारी बातों को अब वो समझते तो होंगे।
लगता है जिन्दगी के इम्तहान में पास होकर,
मेरे लिए "कोहिनूर" बन गए होंगे.

Thursday, October 11, 2012

"खामोशियाँ ..."

"खामोशियाँ बोलने लगीं हैं,
"राज" सारे खोलने लगी हैं ,
कान्हा के होंठों का,
बांसुरी को सहारा जो मिला,
गोपियाँ प्रेम-गीत गाने लगी हैं . "
 

Wednesday, October 10, 2012

"एक जख्म नया देखा..."

दोस्ती का नया रिवाज़ देखा ।
दुश्मनों के हाथ में गुलाब देखा।
भरी महफ़िल में उसने हाथ मिलाया मगर,
दिल में उसके बहुत फासला देखा।
ख़ुद ही झुक गयीं नज़रें उसकी ,
आईने में जब उसने अपना चेहरा देखा।
घाव भरते भी , तो भरते किस तरह ...
दिल पर हर बार, एक जख्म नया देखा।

Monday, October 8, 2012

"दर्द..."

"आंसुओं से ही दर्द बयां हो ये ज़रूरी तो नहीं,
मुस्कराहटें भी अक्सर दिल का हाल कह जाती हैं "

"प्लास्टिक की मुस्कान ..."

प्लास्टिक की मुस्कान मिले जिन चेहरों पर,
दोस्तों उनसे मिलना ज़रा संभालकर ,
रिश्तों की अहमियत न हो जहाँ,
कीमती आंसुओं को रखना वहाँ संभालकर "

Friday, October 5, 2012

"वह अजनबी..."

"वह अजनबी होकर भी,
मेरी दुआओं में शामिल है,
दुनिया में बहुत कम लोगों को,
यह मुकाम हासिल है "

Monday, October 1, 2012

"परियों के देश जाना तुम ..."

हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
नैनों से आंसुओं के मोती, कभी ना गिराना तुम ।
मेरी है बस यही दुआ, खुश रहो हमेशा तुम।
पलकों में ख्वाब सुनहरे सजाना तुम।
चाँद तारों से आगे परियों के देश जाना तुम।
हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
अपनापन और प्यार ही प्यार मिले जहाँ ,
सिर्फ़ ऐसी जगह घर बसाना तुम ।
खुशबुओं से महक जाये घर तुम्हारा,
आँगन में ऐसे फूल लगाना तुम ।
हमेशा मुस्कराना और सिर्फ़ मुस्कराना तुम ।
राह में आयें कितनी उलझने, चलते जाना तुम ।
एक दिन मिलेगी मंजिल तुम्हे, देख लेना तुम ।
याद करते हैं जो तुम्हें हमेशा,
कभी-कभी उन्हें भी याद कर लेना तुम ।

Wednesday, June 6, 2012

जन्मदिन है आज आपका.......


जन्मदिन है आज आपका,
स्वीकार करें मेरी शुभकामनायें . 
घर-आँगन में मुस्कराहटों के ,
नित नये  पुष्प खिलते जायें  . 
बारिशों के मौसम में ,
बरसे बूँदें खुशियों की ,
जीवन के आकाश में ,
नित नये इन्द्रधनुष बनते जायें . 
आने वाले प्रत्येक मौसम में,
सुख-सम्रद्धि के नए शिखर मिले आपको,
नित नई सफलतायें आपके कदम  चूमती  जायें .
जन्मदिन है आज आपका,
स्वीकार करें मेरी शुभकामनायें .

Friday, April 13, 2012

"विशाल गगन में उड़ रहा एक पंछी अकेला ......"


विशाल गगन में उड़ रहा एक पंछी अकेला ......
शाम होने को आई मगर,
कहाँ करे विश्राम , कोई नहीं उसका बसेरा।
वक्त ने काट दिए "पर" उसके,
होंसलों के परों से उड़ रहा , अब भी वह पंछी अकेला ।
उसके विशाल गगन में , ना सूरज है ना अब चंदा कोई ।
हर तरफ़ है बस अँधेरा ।
कहाँ करे विश्राम , कोई नहीं उसका बसेरा।
उड़ते- उड़ते ना जाने कैसे ,
यह कौन से शहर में आ गया वह ।
यूँ तो लाखों मकान है इस शहर में ,
और आसमान छूती इमारतें भी ।
जिस छत की मुंडेर पर सुकून से वह बैठ सके ,
घर उसके लिए एक भी ऐसा नहीं।
लहुलुहान है जिस्म उसका उड़ते-उड़ते,
लगता नहीं अब शायद ,
इस शहर में वह विश्राम कर पायेगा।
और साँसें इतनी भी बाकी नहीं,
कि वह वापस चला जायेगा।
उड़ते-उड़ते ही वह शायद , अब तो फ़ना हो जायेगा।
फिर यह शहर किसी नए पंछी की तलाश में,
फिर से आसमान में देखने लग जायेगा।

Friday, March 16, 2012

"बिजलियाँ ..."

बिजलियाँ तो अक्सर गिरा करती हैं मुझ पर,
और मेरा दामन भी जला देतीं हैं अक्सर,
गम नहीं मुझे इस बात का दोस्तों,
कि वो मेरा दामन जलाती हैं ।
इस बात का भी दुःख नहीं मुझको,
कि कुछ लोग उस वक्त
मेरे दामन को हवा देते हैं।
दुःख है तो "राज" को
सिर्फ़ इस बात का ,
इस कोशिश में वह लोग,
अपना हाथ जला बैठते हैं।

Tuesday, March 6, 2012

"चाहे, हौले-हौले चल ..."

अपने क़दमों पर कर भरोसा ,
एक ही रास्ते पर चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
उबड़-खाबड़ देख कर,
रास्ता ना बदल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
गिरकर, संभलता चल ।
ठोकरों से सीखता चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।
रंग-बिरंगी कारें देख कर,
मन ना मचल ।
समय तेरा भी आयेगा ,
जरा सब्र तो कर ।
मिल ही जायेगी मंजिल,
आज , नहीं तो कल !
अपने क़दमों पर कर भरोसा ,
एक ही रास्ते पर चल ।
चाहे, हौले-हौले चल ।

Friday, February 24, 2012

"तस्वीरे ज़िन्दगी की...."

एक बार कहा था किसी ने , कि “बोलती हैं तस्वीरें ” ,
आज महसूस हुआ मुझे , सच बोलती है तस्वीरें ”
बिना शब्दों के ही , सारी कहानी कहती है तस्वीरें ..
कभी फूलों की तरह मुस्कराती हैं तस्वीरें ,
कभी इन्द्रधनुष में रंग भरती हैं तस्वीरें ,
अक्सर अपने आंसू छुपा जाती हैं तस्वीरें ,
बिना कुछ कहे , बहुत कुछ कह जाती है तस्वीरें ..
ज़िन्दगी के सारे रंग दिखा जाती हैं तस्वीरें ...
हर हाल में मुस्कराना सिखा जाती है तस्वीरें ...
बिना कुछ कहे , बहुत कुछ कह जाती है तस्वीरें ..

Monday, February 20, 2012

"मंजिल है दूर, मगर चलते जाना है..."

मंजिल है दूर, मगर चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
सातवें आसमान से आगे हमको जाना है।
मुड़कर ना पीछे कभी देखना है।
मंजिल ना मिले, हमे जब तक...
बस चलते जाना है, चलते जाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
अस्तित्व है हमारा , कुछ कर के दिखाना है।
जीवन हमारा व्यर्थ नहीं जाना है।
ज़िन्दगी में करने हैं अभी काम बहुत,
हर क्षेत्र में विजेता बन कर दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
बीता हुआ पल फिर नहीं आना है।
हर पल है मूल्यवान, बातों में नहीं गंवाना है।
जीवनं को सार्थक कर के दिखाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।
पल प्रति पल , जीवन और भी कठिन होते जाना है।
असफलताओं के चक्रव्यहू को तोड़ कर जाना है।
अर्थहीन जीवन को, अर्थ पूर्ण बनाना है।
लक्ष्य को एक दिन ज़रूर पाना है।

Tuesday, February 7, 2012

"हमें हर हाल में मुस्कराना है..."

"जख्म कितना भी गहरा सही,
दर्द तो बस छुपाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
वक्त , हर समय नहीं रहता एक सा....
हर मौसम आना - जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।
निराश होने से कुछ नहीं हासिल,
जो सह गया काटों की चुभन को,
"गुलशन" उसका हो जाना है।
हमें हर हाल में मुस्कराना है ।"

Friday, January 27, 2012

"यदि आँखों में किसी की , कोई नमी नहीं हैं..."

यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं हैं।